जयपुर. वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि नृसिंह चतुर्दशी के रूप में मनाई जाती है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इस तिथि पर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु को मारा था. ये भगवान विष्णु के 10 प्रमुख अवतारों में से चौथा अवतार है. इस बार ये पर्व बुधवार 6 मई को है. लेकिन, कोरोना संकट के चलते वर्षों पुरानी परम्परा टूटेगी. क्योंकि ना ही नृसिंहदेव खम्ब उखाड़ेंगे और ना ही घूम कर दर्शन देंगे.
दरअसल, भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखा जाता है. इनकी पूजा में चंदन का उपयोग खासतौर से किया जाता है. ये विष्णु भगवान का रौद्र रूप के अवतार है. इसलिए इन्हें गुस्से को कम करने के लिए चंदन का लेप लगाया जाता है क्योंकि चंदन ठंडक पहुंचाता है. इसलिए इसका उपयोग पूजा में विशेष तौर से किया जाता है.वहीं इस बार 6 मई को नृसिंह जयंती पर सिर्फ मंदिरों में पुजारी ही अभिषेक और पूजन करेंगे. जबकि सालों पुरानी घूम कर दर्शन देने व खम्बे से रौद्र अवतार लेने का दृश्य श्रद्धालुओं को देखने को नहीं मिलेगा.
ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था. उसके राज्य में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता तो उसको दंड दिया जाता था. जबकि उसका पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था. यह बात जब हिरण्यकशिपु को पता चली तो पहले उसने प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया.
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लेकिन, हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया. हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई. तब भी विष्णु भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई. जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था, तब विष्णु भगवान नृसिंह अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध किया.