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Special: राजस्थान यूनिवर्सिटी की 34 साल पुरानी गुलदाउदी प्रदर्शनी पर भी लटकी कोरोना की तलवार

बीते 34 साल में राजस्थान विश्वविद्यालय की पहचान बन चुकी गुलदाउदी प्रदर्शनी पर भी कोरोना की मार पड़ी है. बीते साल तक जिस गुलदाउदी के 70 किस्मों के 5 हजार पौधों को तैयार कर बेचा गया था. इस बार ना तो उसकी इतनी बड़ी खेप तैयार की जा सकी है और ना ही इस बार वृहद पैमाने पर इस प्रदर्शनी को लगाने का प्लान है. देखें स्पेशल स्टोरी...

Chrysanthemum Exhibition at RU, Rajasthan University News
गुलदाउदी प्रदर्शनी पर भी कोरोना की मार
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Published : Jun 28, 2020, 5:29 PM IST

जयपुर. गुलदाउदी का फूल, जिसमें खुशबू तो नहीं होती, लेकिन इसकी खूबसूरती स्वतः लोगों को आकर्षित करती है. यही वजह है कि साल 1986 में राजस्थान विश्वविद्यालय ने 200 पौधों की खेप के साथ गुलदाउदी प्रदर्शनी शुरू की थी. आज 34 साल बाद 70 किस्मों में करीब 5000 पौधे हर साल यहां बेचे जाते हैं. विश्व में 8 ग्रुप में गुलदाउदी की पैदावार होती है. इनमें से 6 ग्रुप पोमपोम, बटन, स्पाइडर, इनकवर्ड, कोरियन सिंगल, कोरियन डबल की तकरीबन 60 से 80 किस्में यहां तैयार की जाती हैं.

साल 2012 तक तो गमले सहित महज 40 रुपये में ये पौधा लोगों के घरों की शान बन जाया करता था. बीते साल तक इसके दाम 100 रुपये तक जा पहुंचे. लोगों के बीच अपनी छाप छोड़ चुके गुलदाउदी की उम्र भले ही 3 महीने हो, इसके बावजूद भी लोग बड़े शौक से इसे अपने घर लेकर जाते हैं. हालांकि 2020 जो अपने साथ कोरोना संकट लेकर आया. ये संकट ना सिर्फ इंसानों पर पड़ा बल्कि उन सभी वस्तुओं पर भी पड़ा, जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इंसानों के साथ जुड़ाव है.

गुलदाउदी प्रदर्शनी पर भी कोरोना की मार

पढ़ें- Special: अब पाली में नहीं होगी पानी की किल्लत, नल में आएगा 24 घंटे पेयजल

राजस्थान विश्वविद्यालय की नर्सरी में उगने वाला गुलदाउदी भी इन्हीं में से एक है. जो इस बार शायद इतने रंग नहीं बिखेर पाएगा, जो हर साल देखने को मिला करते थे. जिसकी बड़ी वजह कोरोना और इससे प्रभावित हुई सेवाएं भी हैं. दरअसल, इस पौध को तैयार करने में 10 से 12 कर्मचारी 4 से 6 महीने झोंकते हैं, लेकिन इस बार ये कर्मचारी विश्वविद्यालय नर्सरी तक ही नहीं पहुंच सके. लॉकडाउन के दिनों में तो महज एक कर्मचारी ही इन हजारों पौधों का रखवाला था. जो करीब 5000 पौधों को तो खराब होने से बचा ना सका.

प्रदर्शनी लगने के चांस न के बराबर

नर्सरी प्रभारी प्रोफेसर रामावतार शर्मा ने बताया कि नवंबर एंड या दिसंबर फर्स्ट में लगने वाली प्रदर्शनी की तैयारी शुरू तो कर दी गई है. लेकिन इस बार बड़े पैमाने में प्रदर्शनी लगने के चांस ना के बराबर हैं. हालांकि अंतिम फैसला गार्डन समिति का होगा. उन्होंने बताया कि अभी भी 6 ग्रुप की करीब 60 से ज्यादा किस्मों पर काम किया जा रहा है.

समृद्धि का सिंबल माना जाता है गुलदाउदी

गुलदाउदी के बारे में जानकारी देते हुए रामावतार शर्मा ने कहा कि साउथ ईस्ट एशिया इसकी उत्पत्ति मानी जाती है. ये सूरजमुखी कुल का पौधा है. इसके फेमस होने का एक बड़ा कारण ये भी है कि जापान के सम्राट ने इसे अपने क्राउन में रखा था. इसे समृद्धि का सिंबल भी माना गया. यही वजह है कि लोगों में इस पौधे को लेकर काफी क्रेज है. ये सबसे बड़ा फूल होता है, जिसका घेराव करीब 8 से 9 इंच तक का होता है.

पढ़ें- Special: दौसा में अनहोनी का कौन होगा जिम्मेदार, कई अग्निकांड होने के बाद भी नहीं फायर ब्रिगेड का इंतजाम

वैसे गुलदाउदी की सैंपलिंग को तैयार करने में 2 से 3 महीने का समय लगता है. हालांकि इसके बाद इन्हें गमलों में प्लांट किया जाता है, और नवंबर एंड तक जा कर ये तैयार हो पाती है. हालांकि 10 से 20 दिन का डिफरेंस वेदर कंडीशन के ऊपर निर्भर करता है. कुल मिलाकर नर्सरी से घरों तक पहुंचने में गुलदाउदी का फूल 4 से 6 महीने का सफर तय करता है, लेकिन इस बार कोरोना की मार की वजह से ये सफर बीच में ही थमता दिख रहा है.

जयपुर. गुलदाउदी का फूल, जिसमें खुशबू तो नहीं होती, लेकिन इसकी खूबसूरती स्वतः लोगों को आकर्षित करती है. यही वजह है कि साल 1986 में राजस्थान विश्वविद्यालय ने 200 पौधों की खेप के साथ गुलदाउदी प्रदर्शनी शुरू की थी. आज 34 साल बाद 70 किस्मों में करीब 5000 पौधे हर साल यहां बेचे जाते हैं. विश्व में 8 ग्रुप में गुलदाउदी की पैदावार होती है. इनमें से 6 ग्रुप पोमपोम, बटन, स्पाइडर, इनकवर्ड, कोरियन सिंगल, कोरियन डबल की तकरीबन 60 से 80 किस्में यहां तैयार की जाती हैं.

साल 2012 तक तो गमले सहित महज 40 रुपये में ये पौधा लोगों के घरों की शान बन जाया करता था. बीते साल तक इसके दाम 100 रुपये तक जा पहुंचे. लोगों के बीच अपनी छाप छोड़ चुके गुलदाउदी की उम्र भले ही 3 महीने हो, इसके बावजूद भी लोग बड़े शौक से इसे अपने घर लेकर जाते हैं. हालांकि 2020 जो अपने साथ कोरोना संकट लेकर आया. ये संकट ना सिर्फ इंसानों पर पड़ा बल्कि उन सभी वस्तुओं पर भी पड़ा, जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इंसानों के साथ जुड़ाव है.

गुलदाउदी प्रदर्शनी पर भी कोरोना की मार

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राजस्थान विश्वविद्यालय की नर्सरी में उगने वाला गुलदाउदी भी इन्हीं में से एक है. जो इस बार शायद इतने रंग नहीं बिखेर पाएगा, जो हर साल देखने को मिला करते थे. जिसकी बड़ी वजह कोरोना और इससे प्रभावित हुई सेवाएं भी हैं. दरअसल, इस पौध को तैयार करने में 10 से 12 कर्मचारी 4 से 6 महीने झोंकते हैं, लेकिन इस बार ये कर्मचारी विश्वविद्यालय नर्सरी तक ही नहीं पहुंच सके. लॉकडाउन के दिनों में तो महज एक कर्मचारी ही इन हजारों पौधों का रखवाला था. जो करीब 5000 पौधों को तो खराब होने से बचा ना सका.

प्रदर्शनी लगने के चांस न के बराबर

नर्सरी प्रभारी प्रोफेसर रामावतार शर्मा ने बताया कि नवंबर एंड या दिसंबर फर्स्ट में लगने वाली प्रदर्शनी की तैयारी शुरू तो कर दी गई है. लेकिन इस बार बड़े पैमाने में प्रदर्शनी लगने के चांस ना के बराबर हैं. हालांकि अंतिम फैसला गार्डन समिति का होगा. उन्होंने बताया कि अभी भी 6 ग्रुप की करीब 60 से ज्यादा किस्मों पर काम किया जा रहा है.

समृद्धि का सिंबल माना जाता है गुलदाउदी

गुलदाउदी के बारे में जानकारी देते हुए रामावतार शर्मा ने कहा कि साउथ ईस्ट एशिया इसकी उत्पत्ति मानी जाती है. ये सूरजमुखी कुल का पौधा है. इसके फेमस होने का एक बड़ा कारण ये भी है कि जापान के सम्राट ने इसे अपने क्राउन में रखा था. इसे समृद्धि का सिंबल भी माना गया. यही वजह है कि लोगों में इस पौधे को लेकर काफी क्रेज है. ये सबसे बड़ा फूल होता है, जिसका घेराव करीब 8 से 9 इंच तक का होता है.

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वैसे गुलदाउदी की सैंपलिंग को तैयार करने में 2 से 3 महीने का समय लगता है. हालांकि इसके बाद इन्हें गमलों में प्लांट किया जाता है, और नवंबर एंड तक जा कर ये तैयार हो पाती है. हालांकि 10 से 20 दिन का डिफरेंस वेदर कंडीशन के ऊपर निर्भर करता है. कुल मिलाकर नर्सरी से घरों तक पहुंचने में गुलदाउदी का फूल 4 से 6 महीने का सफर तय करता है, लेकिन इस बार कोरोना की मार की वजह से ये सफर बीच में ही थमता दिख रहा है.

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