जयपुर. पिछले कुछ सालों में समाज और धार्मिक भावना आहत होने के आरोपों से बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री विवादों में रही है. एक बार फिर फिल्म 'मासूम सवाल' पर इसी तरह के आरोप लगे हैं. फिल्म के एक पोस्टर में सैनिटरी पैड पर (Masoom Sawaal Poster Controversy) फिल्म के कलाकारों के साथ ही भगवान कृष्ण की तस्वीर दिखाने पर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई है.
वहीं, विवाद बढ़ता देख फिल्म के डायरेक्टर और एक्ट्रेस ने इस पर (Hindi Movie Masoom Sawaal) जवाब देते हुए कहा है कि किसी की भी धार्मिक भावनाएं आहत करने का उनका कोई इरादा नहीं था. लेकिन फिल्म के पोस्टर को लेकर जयपुर की महिलाओं ने भी कड़ी आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा कि फिल्म का सब्जेक्ट बहुत अच्छा है, लेकिन इसमें इस तरह से पोस्ट को विवादित बनाकर पब्लिसिटी लेने से जो फिल्म का मूल मुद्दा है वह डाइवर्ट हो गया है.
क्या कहती हैं जयपुर की महिलाएं : डॉक्टर अनुपमा सोनी ने कहा कि फिल्म एक अच्छे सब्जेक्ट पर बनी है. महिलाओं को माहवारी के समय जिस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, उसको अगर इस फिल्म में दिखाया गया है तो यह समाज में अच्छे बदलाव की ओर काम करेगी. लेकिन जिस तरह से फिल्म रिलीज होने से पहले पोस्टर में भगवान श्री कृष्ण की फोटो लगाने पर जो विवाद हुआ है, उस पर भी फिल्म मेकर्स को गंभीरता से सोचना चाहिए. फिल्म अगर अच्छे मकसद से बनाई गई है और किसी भी वजह से उसको लेकर विवाद होता है तो मुझे लगता है कि जो फिल्म का मूल मकसद है, वह कहीं ना कहीं डाइवर्ट हो जाएगा.
अनुपमा सोनी ने कहा कि महिलाओं की इस समस्या पर (Allegations of Hurting Religious Sentiments) गंभीरता के साथ खुले मंच पर चर्चा होनी चाहिए. फिल्म के जरिए किसी की भावना आहत नहीं हो, इसका भी ख्याल रखना चाहिए. पोस्टर को लेकर कोई विवाद हो रहा है तो समय रहते उस पोस्टर को बदल देना चाहिए, ताकि जिस मकसद से फिल्म बनाई गई है उसी मकसद के साथ फिल्म को लोग देखें.
सामाजिक कार्यकर्ता मनीषा सिंह ने कहा कि मासूम सवाल फिल्म के पोस्टर में भगवान श्री कृष्ण की फोटो लगाकर एक बार फिर फिल्म मेकर्स ने इस फिल्म को इसलिए विवादत किया है, ताकि इसको पब्लिसिटी मिल सके. इससे पहले भी कई ऐसी फिल्में बनी हैं, जिनमें आम लोगों की भावनाओं को आहत किया गया है. मनीषा ने कहा कि फिल्म जिस विषय पर बनी है, वह एक गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दा है. इस पर काम होना चाहिए. महिलाएं माहवारी के समय अपनी स्वच्छता का ध्यान रखें, इसको लेकर हम भी लगातार जागरूकता अभियान चलाते हैं. लेकिन उसके साथ इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि हमारी किसी भी तरह के काम से किसी दूसरे की भावना आहत नहीं हो. फिल्म में अगर रूढ़िवादी और अंधविश्वास को दिखाया गया है तो वह एक अच्छा विषय है, लेकिन पोस्टर में भगवान श्री कृष्ण का फोटो लगाकर झूठी पब्लिसिटी हासिल करना सही तरीका नहीं है.
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दलित महिलाओं के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सुमन देवठिया ने कहा कि फिल्म में जो पोस्टर दिखाया गया है, जिसको लेकर विवाद हो रहा है, उस पर ये समझने की जरूरत है कि क्या यह फिल्म किसी तरह से अंधविश्वास या रूढ़िवादी सोच को बढ़ावा दे रही है. अगर फिल्म वैज्ञानिक सोच को स्थापित करती है तो बेहतर है. जब भी फिल्में बनती हैं, किसी सामाजिक मुद्दे पर तो उससे समाज में अच्छा मैसेज आता है. समाज को जागरूक करने की दिशा में फिल्मों का एक महत्वपूर्ण योगदान शुरू से रहा है, लेकिन जिस तरह से इस पोस्टर को लेकर विवाद हो रहा है तो इस पर इस बात की गंभीरता को सोचना होगा कि जिस मकसद से फिल्म बनी है. उस मकसद से फिल्म प्रचलित हो. लेकिन किसी विवाद के बीच फिल्म रिलीज होती है तो फिल्म का जो सब्जेक्ट है उसकी गंभीरता खत्म हो जाती है.
कॉलेज स्टूडेंट्स निकिता शिल्ला कहती हैं कि पीरियड्स के समय लड़कियों को अपने परिवार में ही कई बार अंधविश्वास और रूढ़िवादी सोच का सामना करना पड़ता है. फिल्म में जिस तरह से इस विषय को चुना है (Film on Women Menstruation) वह एक अच्छा विषय है. इसके जरिए जागरूकता बढ़ेगी, लेकिन पोस्टर में जो भगवान की तस्वीर दिखाई गई है और जिसको लेकर सोशल मीडिया पर लगातार कमेंट पढ़ रहे हैं कि लोगों की भावनाएं उस आहत हुई हैं. फिल्म मेकर्स को लोगों की भावनाओं की ओर भी ध्यान देने की जरूरत है. फिल्म मौजूदा वक्त में जिस तरह की सोच के साथ बनाई गई है, वह उसी पर आधारित हो ना कि किसी तरह की कोई विवादों में मूल मुद्दे से हट जाए .