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नसबंदी ऑपरेशन के बाद गारंटी नहीं है कि महिला गर्भवती नहीं होगी: उपभोक्ता आयोग

जयपुर जिला उपभोक्ता आयोग ने कहा है कि नसबंदी ऑपरेशन होने के बाद सौ फीसदी गारंटी नहीं है कि महिला गर्भवती नहीं होगी. ऐसे में अगर ऑपरेशन के बाद भी गर्भ धारण होता है तो इसके लिए चिकित्सालय को उत्तरदायी नहीं माना जा सकता.

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नसबंदी ऑपरेशन के मामले में उपभोक्ता आयोग में हुई सुनवाई
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Published : Jan 6, 2021, 10:54 PM IST

Updated : Jan 7, 2021, 12:28 AM IST

जयपुर. जिला उपभोक्ता आयोग क्रम संख्या-4 ने कहा है कि नसबंदी ऑपरेशन होने के बाद सौ फीसदी गारंटी नहीं है कि महिला गर्भवती नहीं होगी. अदालत ने इस संबध में मेट्रो हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर और डॉ. ज्योत्सना सिंह के खिलाफ दायर दस लाख रुपए के क्षतिपूर्ति के मामले में दायर परिवाद को खारिज कर दिया है. आयोग ने अपने आदेश में कहा कि नसबंदी के बाद बच्चे का जन्म कुछ निश्चित प्राकृतिक कारणों के चलते भी हो सकता है. ऐसे में इसे चिकित्सक की लापरवाही नहीं मानी जा सकती.

विष्णु प्रजापत की ओर से दायर परिवाद में कहा गया था कि उसने जुलाई 2004 को अपनी पत्नी का नसबंदी ऑपरेशन कराया था. लेकिन सितंबर 2011 में उसने संतान को जन्म दिया. विष्णु प्रजापत ने अस्पताल से क्षतिपूर्ति की राशि मांगी लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उसके साथ मारपीट कर भगा दिया.

पढ़ें- वेस्टर्न डेडीकेटेड कॉरिडोर राजस्थान के उद्योगों के लिए माइलस्टोन साबित होगा : कटारिया

अस्पताल प्रशासन और चिकित्सक की ओर से अधिवक्ता प्रेमचंद देवन्दा ने कहा कि संतान परिवादी की इच्छा से पैदा हुई है. परिवादी की पत्नी की 8 मार्च 2011 को जांच की गई थी. उस समय उसे तीन महीने का गर्भ था इसके बावजूद उसने एमटीपी नहीं कराई. इसके अलावा ऑपरेशन के बाद कुछ प्राकृतिक कारणों से भी गर्भ ठहर सकता है. दोनों पक्षों को सुनने के बाद आयोग ने परिवाद को खारिज कर दिया है.

जयपुर. जिला उपभोक्ता आयोग क्रम संख्या-4 ने कहा है कि नसबंदी ऑपरेशन होने के बाद सौ फीसदी गारंटी नहीं है कि महिला गर्भवती नहीं होगी. अदालत ने इस संबध में मेट्रो हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर और डॉ. ज्योत्सना सिंह के खिलाफ दायर दस लाख रुपए के क्षतिपूर्ति के मामले में दायर परिवाद को खारिज कर दिया है. आयोग ने अपने आदेश में कहा कि नसबंदी के बाद बच्चे का जन्म कुछ निश्चित प्राकृतिक कारणों के चलते भी हो सकता है. ऐसे में इसे चिकित्सक की लापरवाही नहीं मानी जा सकती.

विष्णु प्रजापत की ओर से दायर परिवाद में कहा गया था कि उसने जुलाई 2004 को अपनी पत्नी का नसबंदी ऑपरेशन कराया था. लेकिन सितंबर 2011 में उसने संतान को जन्म दिया. विष्णु प्रजापत ने अस्पताल से क्षतिपूर्ति की राशि मांगी लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उसके साथ मारपीट कर भगा दिया.

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अस्पताल प्रशासन और चिकित्सक की ओर से अधिवक्ता प्रेमचंद देवन्दा ने कहा कि संतान परिवादी की इच्छा से पैदा हुई है. परिवादी की पत्नी की 8 मार्च 2011 को जांच की गई थी. उस समय उसे तीन महीने का गर्भ था इसके बावजूद उसने एमटीपी नहीं कराई. इसके अलावा ऑपरेशन के बाद कुछ प्राकृतिक कारणों से भी गर्भ ठहर सकता है. दोनों पक्षों को सुनने के बाद आयोग ने परिवाद को खारिज कर दिया है.

Last Updated : Jan 7, 2021, 12:28 AM IST
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