जयपुर. राजस्थान में एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच (Dissatisfaction in Gehlot Government) कुर्सी की खींचतान शुरू होती दिखाई दे रही है. पहले सचिन पायलट फिर अशोक गहलोत और फिर 15 दिन में सचिन पायलट के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की दोबारा मुलाकात के बाद से राजस्थान में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं.
वहीं, एक बार फिर साल 2020 की तरह यह राजनीतिक सरगर्मियां राज्यसभा चुनाव के पहले (Gehlot Pilot Political Combination) शुरू हुई हैं. 2020 में भी राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले दोनों नेताओं के बीच विवाद खुलकर सामने आया था, जिसके बाद ही कांग्रेस में उठापटक हुई और सचिन पायलट कैंप के विधायक नाराज होकर मानेसर चले गए. जबकि गहलोत कैंप के विधायक 34 दिन तक पहले जयपुर और फिर जैसलमेर के होटलों में बाड़ाबंदी में रहे.
पायलट ने बदली रणनीति तो गहलोत ने भी शुरू किया याद दिलाना 2020 में खरीद-फरोख्त का किस्सा : गहलोत और पायलट के बीच चल रहा शीत युद्ध (Gehlot Vs Pilot) अब एक बार फिर तेजी पकड़ रहा है, लेकिन इस बार सचिन पायलट ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. इस बार सचिन पायलट अपनी नाराजगी के कारण मीडिया में जताने की बजाए कांग्रेस पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी के सामने बंद कमरे में रख रहे हैं और बाहर आकर वह नपे-तुले अंदाज में गहलोत पर सीधा हमला करने की बजाय बात घुमा कर यह कह रहे हैं कि क्या कारण है कि पिछले 20 साल से राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रिपीट नहीं होती है.
भले ही पायलट सरकार रिपीट नहीं होने की बात कहते हों, लेकिन इसके पीछे वह सवाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व पर ही उठा रहे हैं. क्योंकि साल 1998 से अब तक कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रहे हैं और पायलट इशारों में यही आलाकमान को कहते हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थान में न पहले सरकार रिपीट करवा सके और न आगे करवा सकेंगे. सचिन पायलट ने सोनिया गांधी से मुलाकात (Sachin Pilot Sonia Gandhi Meeting) करने के बाद यहां तक कह दिया कि राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन करना है या फिर रणनीति बदलनी है, इस पर अंतिम निर्णय सोनिया गांधी को लेना है. लेकिन धरातल से जुड़े होने के नाते उन्होंने सच्चाई से कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को अवगत करवा दिया है.
पायलट का नाम लिए बगैर गहलोत ने भी 2020 में विधायकों के खरीद-फरोख्त के षड्यंत्र को फिर दी हवा : ऐसा नहीं है कि केवल सचिन पायलट कांग्रेस आलाकमान के सामने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं, बल्कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी सचिन पायलट पर अप्रत्यक्ष तौर पर लगातार हमले कर रहे हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फिर यह कहना शुरू कर दिया है कि साल 2020 में उन्हें किस तरह से 34 दिन तक विधायकों के साथ बाड़ाबंदी में रहना पड़ा था और उस समय जो विधायक हमारे साथ थे उन्हें बाहर जाने के 10-10 करोड़ के ऑफर थे. लेकिन कांग्रेस विधायक उनके साथ खड़े रहे. गहलोत एक बार फिर खरीद-फरोख्त के आरोप भले ही बिना कोई नाम लिए लगा रहे हों, लेकिन यह बात साफ है कि यह आरोप वह कांग्रेस के ही सचिन पायलट समेत उन 18 विधायकों पर लगाते हैं जो उस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरोध में मानेसर चले गए थे.
क्यों राजयसभा चुनाव गहलोत-पायलट और कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण ? राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर राजस्थान में कुर्सी को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शुरू हुई अदावत बताती है कि राज्यसभा चुनाव (Congress Strategy for Rajya Sabha Election) गहलोत-पायलट और कांग्रेस पार्टी, तीनों के लिए ही महत्वपूर्ण है. दरअसल, 4 जुलाई को राजस्थान में चार राज्यसभा की सीटें खाली होने जा रही हैं, जिनमें से 2 सीट पर कांग्रेस और एक सीट पर भाजपा आसानी से अपना राज्यसभा सांसद बना लेगी. लेकिन चौथी सीट पर संघर्ष होना तय है. क्योंकि इसके लिए जरूरी बहुमत न कांग्रेस के पास है और न भाजपा के पास.
इस स्थिति में जहां सचिन पायलट राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले अपने और अपने समर्थक विधायकों का वोट देने से पहले पार्टी के सामने यह बात रख रहे हैं कि वो पार्टी के साथ खड़े हैं, लेकिन अगर राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन नहीं हुआ तो 2023 के विधानसभा चुनाव ही नहीं, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को एक बार फिर (Rajasthan Vidhansabha Election 2023) हार का सामना करना पड़ेगा. पायलट जानते हैं कि राज्यसभा चुनाव से पहले ही उनकी बात पर सुनवाई हो सकती है तो वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यह अच्छे से जानते हैं कि राज्यसभा चुनाव के बाद उनकी कुर्सी को कोई खतरा नहीं होगा.
ऐसे में वह अपने साथ रहे कांग्रेस विधायकों के साथ ही निर्दलीय और समर्थक विधायकों को एकजुट रखने का प्रयास भी कर रहे हैं और कांग्रेस आलाकमान को भी 2020 में राजस्थान सरकार पर आए संकट और उस संकट के कारणों की याद दिला रहे हैं. वहीं, कांग्रेस आलाकमान के लिए भी राज्यसभा चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि राजस्थान ही वह राज्य है जहां से तीन कांग्रेस के नेता राज्यसभा पहुंच सकते हैं और क्योंकि यह भी लगभग तय है कि 3 में से 2 राज्यसभा सांसद दिल्ली कांग्रेस आलाकमान की पसंद के होंगे. इसलिए वह नहीं चाहते कि इन तीन राज्यसभा सीटों में दोनों नेताओं की दूरियों के चलते कोई असर पड़े और भाजपा इसका फायदा उठा ले. यही कारण है कि कांग्रेस आलाकमान भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ ही पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को भी पूरा वेटेज दे रहा है.