जयपुर. नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर रविवार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रशिक्षण विभाग और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से वर्चुअल कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कांग्रेस प्रशिक्षण विभाग के कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार पीयूष बबेले ने कहा कि जिस योजना आयोग को मोदी सरकार ने बंद किया है. उसकी संकल्पना नेताजी बोस ने ही की थी. वहीं, आरएसएस के कार्यक्रम में अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख अद्वैतचरण दत्त ने नेताजी बोस को अखंड भारत का पहला प्रधानमंत्री बताया है.
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रक्षिक्षण विभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में 'नेहरू मिथक और सत्य' के लेखक पीयूष बबेले ने कहा कि नेताजी ने न केवल दूसरे देशों के युद्ध बंदी बनाए गए भारतीय सैनिकों को भारत के स्वाधीनता संग्राम से जोड़ा बल्कि आजाद हिंद फौज की ब्रिगेड के नाम गांधी और नेहरू ब्रिगेड रखते हुए देश में चल रहे अहिंसक आंदोलन को भी अपने समर्थन का संदेश दिया. पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आजाद हिंद फौज के नारे 'जय हिंद' को अंगीकार किया. रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित जन गण मन के बांग्ला संस्करण की जगह उसे हिंदुस्तानी में तब्दील कर आजाद हिंद फौज ने ही सबसे पहले राष्ट्रगान के रूप में गाया. जिसे कांग्रेस की सरकार ने आधिकारिक तौर पर राष्ट्रगान का दर्जा दिया. दुर्भाग्य से इसे राष्ट्रगान बनाने का आरएसएस ने भरपूर विरोध किया. भाजपा की केंद्र सरकार ने पंडित नेहरू द्वारा प्रारंभ किए गए जिस योजना आयोग को बंद किया है. उसकी परिकल्पना भी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की ही थी.
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बोस के दिल्ली चलो के आह्वान को देश के ही नेताओं का समर्थन नहीं मिला: अद्वैतचरण दत्त
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख अद्वैतचरण दत्त ने कहा कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार, वीर सावरकर, लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक के निकट वैचारिक संबंध रहे. यह भी तथ्य है कि डॉ. हेडगेवार की मृत्यु से ठीक एक दिन पहले 20 जून 1940 को सुभाषचंद्र बोस उनसे भेंट करने आए थे लेकिन डॉ. हेडगेवार का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने से उन्हें प्रणाम कर चले गए. यदि इन दोनों महापुरुषों को एक साथ काम करने का अधिक समय मिलता तो आज परिदृश्य कुछ भिन्न होता.
सुभाषचंद्र बोस ने अखंड भारत का सपना देखा था. आजाद हिंद फौज के माध्यम से उन्होंने 1943 तक देश के कई भाग स्वाधीन करवा लिए थे. भारत के बाहर उन्होंने भारत की पहली स्वाधीन सरकार का गठन किया था. इस प्रकार उन्हें अखंड भारत का प्रथम प्रधानमंत्री कहना अनुचित नहीं होगा. सुभाषचंद्र बोस ने 'दिल्ली चलो' का आह्वान किया था लेकिन उन्हें भारत के ही कतिपय नेताओं का समर्थन नहीं मिला.