जयपुर. राजस्थान के सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा मजाक बनकर रह गई है. कंप्यूटर शिक्षा के नाम पर बच्चों को हाईटेक बनाने का दावा करने वाली सरकार 13 साल में स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति तक नहीं कर पाई है. इसके चलते प्रदेश की दो हजार से ज्यादा स्कूलों और कॉलेजों की कंप्यूटर लैब पर ताले लटके हैं और इन लैब में पड़े कंप्यूटर और अन्य महंगे उपकरण धूल फांक रहे हैं.
कहने को तो स्कूल-कॉलेजों में कंप्यूटर शिक्षा अनिवार्य है, लेकिन सरकार और जिम्मेदार अधिकारी इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. कंप्यूटर जैसे विषय में भविष्य बनाने का सपना देख रहे विद्यार्थियों की नींव भी खोखली हो रही है. तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा 2014 में संविदा पर लगे कंप्यूटर शिक्षकों को हटाने के बाद से समस्या ज्यादा बढ़ गई है.
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जानकारी के अनुसार प्रदेश के करीब 4500 राजकीय माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कंप्यूटर शिक्षा आईसीटी योजना के तहत संचालित हो रही थी. केंद्र सरकार की आईसीटी योजना के तहत करोड़ों रुपए खर्च कर स्कूलों में कंप्यूटर लैब बनाई गई और संविदा पर कंप्यूटर शिक्षक लगाए गए थे, लेकिन साल 2014 में इन कंप्यूटर शिक्षकों को हटा दिया गया. इसके बाद से ही स्कूलों में बनी कंप्यूटर लैब 'लॉक' हो गई और कंप्यूटर शिक्षा 'डाउन'. स्कूलों में करोड़ों रुपए खर्च कर बनाई गई लैब और कंप्यूटर और अन्य उपकरण कबाड़ बनने की कगार पर पहुंच गए हैं. चिंता की बड़ी बात यह है कि आज सरकार के सभी काम ऑनलाइन करवाए जा रहे हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी कंप्यूटर शिक्षा से वंचित हैं.
क्लिक योजना ने भी तोड़ा दम
साल 2017 में राज्य सरकार ने क्लिक योजना से विद्यार्थियों को कंप्यूटर शिक्षा में दक्ष बनाने का खाका तैयार किया था, जिसके तहत करीब 960 रुपए अलग से फीस लेकर बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा दिलवाने की योजना थी, लेकिन विद्यार्थियों और उनके परिजनों ने इसमें ज्यादा रुचि नहीं दिखाई. ऐसे में यह योजना भी अब दम तोड़ चुकी है. खास बात यह है कि सरकारी स्कूलों में 9वीं और दसवीं कक्षा में कंप्यूटर शिक्षा अनिवार्य है. कक्षा 9 और 10 के विद्यार्थियों के लिए वार्षिक और अर्द्धवार्षिक परीक्षा में इसका पेपर भी होता है, लेकिन स्कूलों में कंप्यूटर की पढ़ाई को लेकर कोई व्यवस्था नहीं है.