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कांग्रेस के 'जादूगर' ने फिर दिखाया क्या होती है रणनीति, जानिए वे मौके जब अशोक गहलोत ने नहीं किया आलाकमान को निराश

राजस्थान में राज्यसभा की 4 सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस को 3 पर जीत मिली है. हॉर्स ट्रेडिंग, क्रॉस वोटिंग, असंतुष्ट विधायक और सहयोगी दल की नाराजगी के बावजूद कांग्रेस की जीत दिखाती है कि अशोक गहलोत रणनीति बनाने के मामले में 'जादूगर' (Gehlot strategy worked in Rajya Sabha election) हैं. ऐसा नहीं है कि राज्यसभा चुनाव में ही उनकी रणनीति से पार्टी को फायदा मिला हो, इससे पहले भी गहलोत ने अपनी जादूगिरी से आलाकमान को संतुष्ट किया है.

CM Ashok Gehlot strategy worked in Rajya Sabha election, know when he proved it in the past
कांग्रेस के 'जादूगर' ने फिर दिखाया क्या होती है रणनीति, जानिए वे मौके जब अशोक गहलोत ने नहीं किया आलाकमान को निराश
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Published : Jun 10, 2022, 9:10 PM IST

जयपुर. कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कद पहले ही काफी बड़ा है. आज जिस तरह राज्यसभा चुनाव में गहलोत ने कांग्रेस प्रत्याशियों को जीत (Congress candidate won in Rajya Sabha election 2022) दिलाई, उससे यह साफ हो गया कि राजनीति के जादूगर माने जाने वाले गहलोत का रणनीति बनाने में भी कोई सानी नहीं है. विधायकों की नाराजगी और अलग-अलग गुट होने के बावजूद भी गहलोत न केवल कांग्रेस बल्कि निर्दलीय और समर्थित दलों के अपने 126 विधायकों के कुनबे को एकजुट रखने में कामयाब रहे. गहलोत ही एकमात्र कारण है कि कांग्रेस पार्टी को उसके सभी 126 वोट मिले. हालांकि कांग्रेस खेमे के एक विधायक का वोट निरस्त हुआ, लेकिन भाजपा की ओर से शोभारानी कुशवाहा का वोट सपोर्ट होने से कांग्रेस के मतों की संख्या 126 ही रही है.

गहलोत ने आलानेताओं को रखा सक्रिय: राजस्थान में गहलोत ही वह नेता हैं, जिनपर कांग्रेस आलाकमान सबसे ज्यादा भरोसा करता है. यही कारण है कि कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से तीन नेताओं मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला और प्रमोद तिवारी को गहलोत के भरोसे ही राजस्थान के रास्ते राज्यसभा भेजने का फैसला किया गया. गहलोत ने भी कांग्रेस आलाकमान को निराश नहीं किया और तमाम नाराजगी ओर गुटों के बावजूद कांग्रेस का एक भी वोट इधर से उधर नहीं हुआ. इससे पहले भी गहलोत के सहारे ही कांग्रेस पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल को राजस्थान के रास्ते राज्यसभा में भिजवाया है. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस के वह बड़े नेता जो लगातार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कमजोर होने के चलते संसद नहीं पहुंच सके थे, उन्हें गहलोत ने राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचा दिया है. यानी कि कांग्रेस के जो सबसे महत्वपूर्ण नेता थे, उन्हें सक्रिय रखने में गहलोत की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है.

पढ़ें: Rajyasabha Elections: राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस तीन सीटों पर विजयी, भाजपा के घनश्याम तिवारी भी जीते

इन मौकों पर बने तारणहार: गहलोत ने जिस तरह से गुजरात के चुनाव में भाजपा के दांत खट्टे किए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके गढ़ में ही भाजपा के चुनाव जीतने में पसीने आ गए थे. हालांकि कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में तो नहीं आई, लेकिन इसे गहलोत की ही जादूगरी माना गया. इसी वजह से गहलोत को तीसरी बार कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान की कमान सौंपते हुए मुख्यमंत्री बनाया. इतना ही नहीं जब सचिन पायलट की नाराजगी के चलते गहलोत सरकार को संकट में माना जा रहा था, उस समय भी गहलोत ने निर्दलीयों, बीटीपी, माकपा, आरएलडी समेत अपने समर्थन में खड़े कांग्रेस विधायकों को 34 दिन बड़ाबंदी में रखा और अपनी सरकार बचा ली. इतना ही नहीं जब राज्यसभा चुनाव में गुजरात और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में तोड़फोड़ से बचाने के लिए महाराष्ट्र कांग्रेस के विधायकों और मध्य प्रदेश में आए सियासी संकट से बचने के लिए भी कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत पर ही भरोसा दिखाया और सभी विधायकों को राजस्थान में शिफ्ट किया.

पढ़ें: Rajyasabha Election: कुशवाहा की क्रॉस वोटिंग पर बोले चंद्रा- जब मैं दूसरे से वोट की अपेक्षा कर सकता हूं तो बीजेपी ने भी कर दिया होगा

राजस्थान में सियासी संकट के बावजूद बचाई सरकार: गहलोत को राजनीति और रणनीति का जादूगर ऐसे ही नहीं कहा (Why Ashok Gehlot called magician) जाता. जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते मध्य प्रदेश कि कांग्रेस सरकार को मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ तमाम प्रयास के बावजूद नहीं बचा सके, लेकिन साल 2020 में राजस्थान में आए सियासी संकट और सचिन पायलट समेत 19 विधायकों की नाराजगी के बावजूद गहलोत अपनी सरकार को बचाने में कामयाब रहे. मध्यप्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों का फर्क इस बात से भी देखने को मिलता है कि जहां मध्य प्रदेश में सियासी संकट आया, तो कमलनाथ ने अपने सभी विधायकों को राजस्थान में शिफ्ट किया. लेकिन राजस्थान की गहलोत सरकार पर जब सियासी संकट आया, तो गहलोत ने सभी विधायकों को अपने पास राजस्थान में रखा और 34 दिन की बाड़ेबंदी की. इस तरह वे सरकार अपनी सरकार में कामयाब रहे.

पढ़ें: जादूगर तो मैं हूं, फिर जो बुलेट ट्रेन चलने वाली थी, उसे मोदी जी ने कैसे गायब कर दिया : गहलोत

गहलोत ने कुनबा किया एक: गहलोत ने जिस तरह से इस चुनाव में बेहतर रणनीति दिखाते हुए जीत दर्ज की है. उससे गहलोत की जादूगरी साफ दिखी, क्योंकि शुरूआत में जिस तरह से बाहरी प्रत्याशियों की नाराजगी सामने आई, उसके बाद बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए 4 विधायक मंत्री राजेंद्र गुढ़ा, वाजिब अली, लाखन मीणा और संदीप यादव नाराज हुए. इनके साथ दो कांग्रेस के विधायकों गिर्राज मलिंगा और खिलाड़ी बैरवा ने भी नाराजगी जताई. लेकिन गहलोत ने सभी को साध लिया. इसके बाद बीटीपी ने जहां व्हिप जारी कर मतदान से दूर रहने की बात कही, लेकिन गहलोत ने बीटीपी के दोनों विधायकों राजकुमार रोत और रामप्रसाद को साधा और दोनों वोट कांग्रेस के खाते में गए. उधर माकपा ने भी दोनों वोट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दिए. 13 में से एकमात्र विधायक बलजीत यादव नाराज थे. लेकिन अंतिम दिन वह भी मान गए और इस तरह से कांग्रेस का 126 का कुनबा एक साथ हुआ.

पढ़ें: Divya on Beniwal - हनुमान ने की अपने जमीर की सौदेबाजी, इतिहास ये बात याद रखेगा

चारों प्रत्याशियों को मिले इतने वोट:

  • रणदीप सुरजेवाला-43 वोट
  • मुकुल वासनिक- 42 वोट
  • प्रमोद तिवारी - 41 वोट
  • कांग्रेस का एक वोट निरस्त हुआ
  • भाजपा प्रत्याशी घनश्याम तिवारी-43 वोट
  • निर्दलीय विधायक सुभाष चंद्रा-30 वोट

जयपुर. कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कद पहले ही काफी बड़ा है. आज जिस तरह राज्यसभा चुनाव में गहलोत ने कांग्रेस प्रत्याशियों को जीत (Congress candidate won in Rajya Sabha election 2022) दिलाई, उससे यह साफ हो गया कि राजनीति के जादूगर माने जाने वाले गहलोत का रणनीति बनाने में भी कोई सानी नहीं है. विधायकों की नाराजगी और अलग-अलग गुट होने के बावजूद भी गहलोत न केवल कांग्रेस बल्कि निर्दलीय और समर्थित दलों के अपने 126 विधायकों के कुनबे को एकजुट रखने में कामयाब रहे. गहलोत ही एकमात्र कारण है कि कांग्रेस पार्टी को उसके सभी 126 वोट मिले. हालांकि कांग्रेस खेमे के एक विधायक का वोट निरस्त हुआ, लेकिन भाजपा की ओर से शोभारानी कुशवाहा का वोट सपोर्ट होने से कांग्रेस के मतों की संख्या 126 ही रही है.

गहलोत ने आलानेताओं को रखा सक्रिय: राजस्थान में गहलोत ही वह नेता हैं, जिनपर कांग्रेस आलाकमान सबसे ज्यादा भरोसा करता है. यही कारण है कि कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से तीन नेताओं मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला और प्रमोद तिवारी को गहलोत के भरोसे ही राजस्थान के रास्ते राज्यसभा भेजने का फैसला किया गया. गहलोत ने भी कांग्रेस आलाकमान को निराश नहीं किया और तमाम नाराजगी ओर गुटों के बावजूद कांग्रेस का एक भी वोट इधर से उधर नहीं हुआ. इससे पहले भी गहलोत के सहारे ही कांग्रेस पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल को राजस्थान के रास्ते राज्यसभा में भिजवाया है. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस के वह बड़े नेता जो लगातार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कमजोर होने के चलते संसद नहीं पहुंच सके थे, उन्हें गहलोत ने राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचा दिया है. यानी कि कांग्रेस के जो सबसे महत्वपूर्ण नेता थे, उन्हें सक्रिय रखने में गहलोत की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है.

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इन मौकों पर बने तारणहार: गहलोत ने जिस तरह से गुजरात के चुनाव में भाजपा के दांत खट्टे किए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके गढ़ में ही भाजपा के चुनाव जीतने में पसीने आ गए थे. हालांकि कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में तो नहीं आई, लेकिन इसे गहलोत की ही जादूगरी माना गया. इसी वजह से गहलोत को तीसरी बार कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान की कमान सौंपते हुए मुख्यमंत्री बनाया. इतना ही नहीं जब सचिन पायलट की नाराजगी के चलते गहलोत सरकार को संकट में माना जा रहा था, उस समय भी गहलोत ने निर्दलीयों, बीटीपी, माकपा, आरएलडी समेत अपने समर्थन में खड़े कांग्रेस विधायकों को 34 दिन बड़ाबंदी में रखा और अपनी सरकार बचा ली. इतना ही नहीं जब राज्यसभा चुनाव में गुजरात और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में तोड़फोड़ से बचाने के लिए महाराष्ट्र कांग्रेस के विधायकों और मध्य प्रदेश में आए सियासी संकट से बचने के लिए भी कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत पर ही भरोसा दिखाया और सभी विधायकों को राजस्थान में शिफ्ट किया.

पढ़ें: Rajyasabha Election: कुशवाहा की क्रॉस वोटिंग पर बोले चंद्रा- जब मैं दूसरे से वोट की अपेक्षा कर सकता हूं तो बीजेपी ने भी कर दिया होगा

राजस्थान में सियासी संकट के बावजूद बचाई सरकार: गहलोत को राजनीति और रणनीति का जादूगर ऐसे ही नहीं कहा (Why Ashok Gehlot called magician) जाता. जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते मध्य प्रदेश कि कांग्रेस सरकार को मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ तमाम प्रयास के बावजूद नहीं बचा सके, लेकिन साल 2020 में राजस्थान में आए सियासी संकट और सचिन पायलट समेत 19 विधायकों की नाराजगी के बावजूद गहलोत अपनी सरकार को बचाने में कामयाब रहे. मध्यप्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों का फर्क इस बात से भी देखने को मिलता है कि जहां मध्य प्रदेश में सियासी संकट आया, तो कमलनाथ ने अपने सभी विधायकों को राजस्थान में शिफ्ट किया. लेकिन राजस्थान की गहलोत सरकार पर जब सियासी संकट आया, तो गहलोत ने सभी विधायकों को अपने पास राजस्थान में रखा और 34 दिन की बाड़ेबंदी की. इस तरह वे सरकार अपनी सरकार में कामयाब रहे.

पढ़ें: जादूगर तो मैं हूं, फिर जो बुलेट ट्रेन चलने वाली थी, उसे मोदी जी ने कैसे गायब कर दिया : गहलोत

गहलोत ने कुनबा किया एक: गहलोत ने जिस तरह से इस चुनाव में बेहतर रणनीति दिखाते हुए जीत दर्ज की है. उससे गहलोत की जादूगरी साफ दिखी, क्योंकि शुरूआत में जिस तरह से बाहरी प्रत्याशियों की नाराजगी सामने आई, उसके बाद बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए 4 विधायक मंत्री राजेंद्र गुढ़ा, वाजिब अली, लाखन मीणा और संदीप यादव नाराज हुए. इनके साथ दो कांग्रेस के विधायकों गिर्राज मलिंगा और खिलाड़ी बैरवा ने भी नाराजगी जताई. लेकिन गहलोत ने सभी को साध लिया. इसके बाद बीटीपी ने जहां व्हिप जारी कर मतदान से दूर रहने की बात कही, लेकिन गहलोत ने बीटीपी के दोनों विधायकों राजकुमार रोत और रामप्रसाद को साधा और दोनों वोट कांग्रेस के खाते में गए. उधर माकपा ने भी दोनों वोट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दिए. 13 में से एकमात्र विधायक बलजीत यादव नाराज थे. लेकिन अंतिम दिन वह भी मान गए और इस तरह से कांग्रेस का 126 का कुनबा एक साथ हुआ.

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चारों प्रत्याशियों को मिले इतने वोट:

  • रणदीप सुरजेवाला-43 वोट
  • मुकुल वासनिक- 42 वोट
  • प्रमोद तिवारी - 41 वोट
  • कांग्रेस का एक वोट निरस्त हुआ
  • भाजपा प्रत्याशी घनश्याम तिवारी-43 वोट
  • निर्दलीय विधायक सुभाष चंद्रा-30 वोट
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