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बीटीपी के विधायक अभी भी गहलोत सरकार के समर्थन में हैं: गोविंद सिंह डोटासरा

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि बीटीपी के विधायक अभी भी गहलोत सरकार के समर्थन में है. साथ ही उन्होंने कहा कि बीटीपी के विधायकों की ओर से अब तक कोई भी टेलीफोन और मैसेज नहीं आया है कि वो कांग्रेस सरकार का साथ नहीं दे रहे हैं.

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Published : Dec 12, 2020, 10:51 PM IST

BTP MLA with Gehlot Government,  Govind Singh Dotasara
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा

जयपुर. पंचायती राज चुनाव में डूंगरपुर जिले में बीजेपी-कांग्रेस के गठबंधन पर भारतीय ट्राईबल पार्टी ने नाराजगी जताई है. इसके बाद अब पार्टी के दोनों विधायक सरकार से समर्थन वापस लेने के संकेत दे रहे हैं. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की मानें तो जब तक विधानसभा में स्पीकर को संबद्धता खत्म करने की बात लिखकर नहीं दी जाती, तब तक दोनों विधायक कांग्रेस के समर्थन में ही माने जाएंगे.

डूंगरपुर जिले में जिला परिषद में कुल 27 में से 13 बीटीपी समर्थित प्रत्याशी जीते. पंचायत समितियों के कुल 198 में से 96 सदस्य बीटीपी के बने हैं, इनमें से चार में बीटीपी समर्थित निर्दलीय को स्पष्ट बहुमत मिला और शेष में भी विभिन्न निर्णायक स्थिति में थे. लेकिन जिला प्रमुख चुनाव से ठीक पहले बीजेपी कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया और नतीजा भाजपा समर्थित प्रमुख और कांग्रेस समर्थित उप प्रमुख बन गए. दोनों दलों की मिलीभगत के बाद बीटीपी और कांग्रेस पार्टी के बीच खाई बनती दिख रही है.

पढ़ें- डोटासरा ने PM मोदी पर किया कटाक्ष, कहा- देश को झूठ बोलने वाला अनुशासनहीन प्रधानमंत्री मिला है

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा बयानों के जरिए इस खाई को पाटने की कोशिश कर रहे हैं. डोटासरा ने कहा कि राजस्थान के विधानसभा में बीटीपी के दोनों सदस्यों ने ये लिखकर दे रखा है कि वो सरकार के साथ हैं और समर्थन में हैं. आज की तारीख में भी वही स्थिति है, इसलिए फिलहाल ऐसे काल्पनिक सवालों का कोई जवाब नहीं है.

बीटीपी के द्वारा ट्वीट किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब तक राजस्थान की विधानसभा में स्पीकर को संबद्धता से अलग होने के लिए लिखकर नहीं देता, तब तक यही माना जाता है वो समर्थन में हैं. उन्होंने कहा कि यदि ऐसी कोई बात सामने आएगी तो सीएम के स्तर पर बातचीत की जाएगी. बीटीपी के विधायकों की ओर से अब तक कोई भी टेलीफोन और मैसेज नहीं आया है कि वो कांग्रेस सरकार का साथ नहीं दे रहे हैं.

इससे पहले बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने भी डूंगरपुर जिले में चुने गए प्रमुख और उप प्रमुख को लेकर कहा था कि छोटे चुनाव में स्थानीय समूह के समीकरण, वहां की इकाई क्या सोचती है और उनकी डिमांड क्या है, इस आधार पर फैसले लिए जाते हैं. राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर जो फैसला उचित लगा उसमें दखलंदाजी नहीं की गई.

जयपुर. पंचायती राज चुनाव में डूंगरपुर जिले में बीजेपी-कांग्रेस के गठबंधन पर भारतीय ट्राईबल पार्टी ने नाराजगी जताई है. इसके बाद अब पार्टी के दोनों विधायक सरकार से समर्थन वापस लेने के संकेत दे रहे हैं. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की मानें तो जब तक विधानसभा में स्पीकर को संबद्धता खत्म करने की बात लिखकर नहीं दी जाती, तब तक दोनों विधायक कांग्रेस के समर्थन में ही माने जाएंगे.

डूंगरपुर जिले में जिला परिषद में कुल 27 में से 13 बीटीपी समर्थित प्रत्याशी जीते. पंचायत समितियों के कुल 198 में से 96 सदस्य बीटीपी के बने हैं, इनमें से चार में बीटीपी समर्थित निर्दलीय को स्पष्ट बहुमत मिला और शेष में भी विभिन्न निर्णायक स्थिति में थे. लेकिन जिला प्रमुख चुनाव से ठीक पहले बीजेपी कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया और नतीजा भाजपा समर्थित प्रमुख और कांग्रेस समर्थित उप प्रमुख बन गए. दोनों दलों की मिलीभगत के बाद बीटीपी और कांग्रेस पार्टी के बीच खाई बनती दिख रही है.

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कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा बयानों के जरिए इस खाई को पाटने की कोशिश कर रहे हैं. डोटासरा ने कहा कि राजस्थान के विधानसभा में बीटीपी के दोनों सदस्यों ने ये लिखकर दे रखा है कि वो सरकार के साथ हैं और समर्थन में हैं. आज की तारीख में भी वही स्थिति है, इसलिए फिलहाल ऐसे काल्पनिक सवालों का कोई जवाब नहीं है.

बीटीपी के द्वारा ट्वीट किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब तक राजस्थान की विधानसभा में स्पीकर को संबद्धता से अलग होने के लिए लिखकर नहीं देता, तब तक यही माना जाता है वो समर्थन में हैं. उन्होंने कहा कि यदि ऐसी कोई बात सामने आएगी तो सीएम के स्तर पर बातचीत की जाएगी. बीटीपी के विधायकों की ओर से अब तक कोई भी टेलीफोन और मैसेज नहीं आया है कि वो कांग्रेस सरकार का साथ नहीं दे रहे हैं.

इससे पहले बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने भी डूंगरपुर जिले में चुने गए प्रमुख और उप प्रमुख को लेकर कहा था कि छोटे चुनाव में स्थानीय समूह के समीकरण, वहां की इकाई क्या सोचती है और उनकी डिमांड क्या है, इस आधार पर फैसले लिए जाते हैं. राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर जो फैसला उचित लगा उसमें दखलंदाजी नहीं की गई.

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