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मेवाड़ में भी कम हुआ भाजपा का दबदबा, अगले विधानसभा चुनावों में ये रहेंगी चुनौतियां... - राजस्थान न्यूज

हाल ही में सम्पन्न हुए मेवाड़ क्षेत्र की दो सीटों धरियावद-वल्लभनगर उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी को इस क्षेत्र में कई चुनौतियों (Big challenges for BJP in Mewar region) का सामना करना पड़ेगा. नए राजनीतिक दलों से निपटने के अलावा पार्टी के सामने मजबूत और प्रभावी लीडरशिप खड़ा करने की भी चुनौती रहेगी.

BJP challenges in Mewar region
BJP challenges in Mewar region
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Published : Nov 8, 2021, 4:56 PM IST

जयपुर. मेवाड़ में आने वाली धरियावद और वल्लभनगर विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा की स्थिति बेहद खराब रही. पिछले विधानसभा चुनाव में मेवाड़ में अपना दबदबा रखने वाली भाजपा के लिए अब आगामी विधानसभा चुनाव में कई चुनौतियां (Big challenges for BJP in Mewar region) खड़ी हो गईं हैं जिससे पार पाने के लिए प्रदेश भाजपा को अभी से जुटना होगा. खासतौर पर मेवाड़ में मजबूत लीडरशिप और नए पनप रहे राजनीतिक दलों को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है.

उपचुनाव में मेवाड़ से आने वाली वल्लभनगर सीट पर भाजपा प्रत्याशी की जमानत जप्त हो गई, लेकिन धरियावद तो भाजपा के खाते की ही सीट थी. वहां भी पार्टी प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा. जिससे भाजपा की परेशानी बढ़ना शुरू हो गई. परेशानी बढ़ना लाजमी भी है. पिछले विधानसभा चुनाव में मेवाड़ क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा था, इस दौरान क्षेत्र में एक नई पार्टी का भी उदय भी हुआ. इसका नाम था भारतीय ट्राइबल पार्टी जिसने 2 सीटों पर जीत भी हासिल की. मौजूदा उपचुनाव में भी इस क्षेत्र में आरएलपी एक अन्य पार्टी के रूप में दमखम दिखा चुकी है. क्योंकि वल्लभनगर में आरएलपी प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहा और भाजपा प्रत्याशी चौथे नंबर पर. ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को इन चुनौतियों से निपटना बेहद जरूरी होगा जो इस प्रकार है....

पढ़ें: किसान आंदोलन में शहीद हुए 600 किसानों के लिए कोई शोक प्रस्ताव पारित नहीं हुआ : सत्यपाल मलिक

संगठनात्मक स्तर पर मजबूत लीडरशिप

उदयपुर संभाग में भाजपा के पास गुलाबचंद कटारिया के अलावा अब तक कोई बड़ा चेहरा उभर कर सामने नहीं आया है. भाजपा को चाहिए कि क्षेत्र में मजबूत लीडरशिप खड़ी करे. खासतौर पर आदिवासी क्षेत्र में भाजपा की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है. ऐसे में वहां नई और मजबूत लीडरशिप होने से भाजपा को अगले विधानसभा चुनाव में कुछ सियासी लाभ हो सकता है. हालांकि इस क्षेत्र में सांसद दीया कुमारी और सीपी जोशी जैसे कुछ चेहरे भाजपा के पास है लेकिन जोशी की पसंद का प्रत्याशी वल्लभनगर में अपनी जमानत नहीं बचा पाया. वहीं दीया कुमारी का परफॉर्मेंस अब तक काफी अच्छा रहा है. ऐसे में दीया कुमारी को इस क्षेत्र में मजबूत चेहरे व लीडरशिप के तौर पर आगे करने से पार्टी को फायदा पहुंच सकता है.

बीटीपी और आरएलपी से निपटना भी बड़ी चुनौती

मेवाड़ संभाग में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखा कर दो सीटों पर कब्जा किया था. वहीं उपचुनाव में आरएलपी प्रत्याशी ने वल्लभनगर सीट पर दूसरे नंबर पर रहकर अपना दमखम दिखाया. आगामी विधानसभा चुनाव में बीटीपी का आदिवासी क्षेत्रों में विस्तार संभव है. क्योंकि धरियावद सीट उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रहे निर्दलीय प्रत्याशी को बीटीपी का आंतरिक रूप से समर्थन था. वहीं अगले विधानसभा चुनाव में मेवाड़ की सभी विधानसभा सीटों पर आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल ने प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है. मतलब भाजपा के लिए अगले चुनाव में बीटीपी और आरएलपी से निपटना सबसे बड़ी चुनौती होगी. इसलिए जरूरी है कि इन दोनों ही पार्टियों का मेवाड़ क्षेत्र में विस्तार रुके या फिर भाजपा यहां अपना जनाधार बढ़ाने के लिए संगठनात्मक रूप से और मजबूती दिखाएं.

पढ़ें: CM Gehlot कल से जोधपुर दौरे पर... प्रशासन गांवों और शहरों के संग अभियान का करेंगे औचक निरीक्षण

गुटबाजी पर लगे अंकुश तो, खिले भाजपा का कमल

प्रदेश भाजपा में नेता अलग-अलग खेमों में बटे हुए नजर आते हैं. एक खेमा प्रदेश नेतृत्व सतीश पूनिया समर्थकों का है तो दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थकों से जुड़ा है. खेमेबाजी की ये आग मेवाड़ तक पहुंच चुकी है क्योंकि दोनों ही उपचुनाव में राजे से जुड़ा कोई भी समर्थक नेता चुनाव मैदान में सक्रिय नहीं रहा. हालांकि राजे के चुनाव प्रचार में नहीं आने का कारण उनकी पुत्रवधू का बीमार होना भी बताया जा रहा है. लेकिन कुछ और सियासी कारण भी भाजपा के गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए है. वहीं वल्लभनगर में जनता सेना प्रमुख रणधीर सिंह भींडर, राजे के नजदीकी नेताओं में शामिल रहे हैं. भींडर पूर्व में यहां से भाजपा से विधायक भी रह चुके हैं. मतलब साफ है कि मेवाड़ में भाजपा को अपने से दूर हुए नेताओं को भी एक जाजम पर बैठाना होगा ताकि अगले चुनाव तक भाजपा यहां और मजबूत हो सके.

पढ़ें: अलवर: श्रम मंत्री के खिलाफ हुआ मेव समाज, धरने पर बैठे लोग...कहा- मंत्री को हटाओ

हालांकि उपचुनाव में हार के बाद पूनिया इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि इन दोनों ही सीटों पर भाजपा को अतिरिक्त काम करने की जरूरत है और इस दिशा में संगठनात्मक स्तर पर काम शुरू भी हो चुका है. फिर चाहे यहां बूथ स्तर तक पार्टी का विस्तार करना हो या विस्तार के जरिए पार्टी को और मजबूत करने का काम हो, दोनों ही दिशाओं में भाजपा तेजी से काम कर रही है.

जयपुर. मेवाड़ में आने वाली धरियावद और वल्लभनगर विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा की स्थिति बेहद खराब रही. पिछले विधानसभा चुनाव में मेवाड़ में अपना दबदबा रखने वाली भाजपा के लिए अब आगामी विधानसभा चुनाव में कई चुनौतियां (Big challenges for BJP in Mewar region) खड़ी हो गईं हैं जिससे पार पाने के लिए प्रदेश भाजपा को अभी से जुटना होगा. खासतौर पर मेवाड़ में मजबूत लीडरशिप और नए पनप रहे राजनीतिक दलों को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है.

उपचुनाव में मेवाड़ से आने वाली वल्लभनगर सीट पर भाजपा प्रत्याशी की जमानत जप्त हो गई, लेकिन धरियावद तो भाजपा के खाते की ही सीट थी. वहां भी पार्टी प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा. जिससे भाजपा की परेशानी बढ़ना शुरू हो गई. परेशानी बढ़ना लाजमी भी है. पिछले विधानसभा चुनाव में मेवाड़ क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा था, इस दौरान क्षेत्र में एक नई पार्टी का भी उदय भी हुआ. इसका नाम था भारतीय ट्राइबल पार्टी जिसने 2 सीटों पर जीत भी हासिल की. मौजूदा उपचुनाव में भी इस क्षेत्र में आरएलपी एक अन्य पार्टी के रूप में दमखम दिखा चुकी है. क्योंकि वल्लभनगर में आरएलपी प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहा और भाजपा प्रत्याशी चौथे नंबर पर. ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को इन चुनौतियों से निपटना बेहद जरूरी होगा जो इस प्रकार है....

पढ़ें: किसान आंदोलन में शहीद हुए 600 किसानों के लिए कोई शोक प्रस्ताव पारित नहीं हुआ : सत्यपाल मलिक

संगठनात्मक स्तर पर मजबूत लीडरशिप

उदयपुर संभाग में भाजपा के पास गुलाबचंद कटारिया के अलावा अब तक कोई बड़ा चेहरा उभर कर सामने नहीं आया है. भाजपा को चाहिए कि क्षेत्र में मजबूत लीडरशिप खड़ी करे. खासतौर पर आदिवासी क्षेत्र में भाजपा की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है. ऐसे में वहां नई और मजबूत लीडरशिप होने से भाजपा को अगले विधानसभा चुनाव में कुछ सियासी लाभ हो सकता है. हालांकि इस क्षेत्र में सांसद दीया कुमारी और सीपी जोशी जैसे कुछ चेहरे भाजपा के पास है लेकिन जोशी की पसंद का प्रत्याशी वल्लभनगर में अपनी जमानत नहीं बचा पाया. वहीं दीया कुमारी का परफॉर्मेंस अब तक काफी अच्छा रहा है. ऐसे में दीया कुमारी को इस क्षेत्र में मजबूत चेहरे व लीडरशिप के तौर पर आगे करने से पार्टी को फायदा पहुंच सकता है.

बीटीपी और आरएलपी से निपटना भी बड़ी चुनौती

मेवाड़ संभाग में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखा कर दो सीटों पर कब्जा किया था. वहीं उपचुनाव में आरएलपी प्रत्याशी ने वल्लभनगर सीट पर दूसरे नंबर पर रहकर अपना दमखम दिखाया. आगामी विधानसभा चुनाव में बीटीपी का आदिवासी क्षेत्रों में विस्तार संभव है. क्योंकि धरियावद सीट उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रहे निर्दलीय प्रत्याशी को बीटीपी का आंतरिक रूप से समर्थन था. वहीं अगले विधानसभा चुनाव में मेवाड़ की सभी विधानसभा सीटों पर आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल ने प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है. मतलब भाजपा के लिए अगले चुनाव में बीटीपी और आरएलपी से निपटना सबसे बड़ी चुनौती होगी. इसलिए जरूरी है कि इन दोनों ही पार्टियों का मेवाड़ क्षेत्र में विस्तार रुके या फिर भाजपा यहां अपना जनाधार बढ़ाने के लिए संगठनात्मक रूप से और मजबूती दिखाएं.

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गुटबाजी पर लगे अंकुश तो, खिले भाजपा का कमल

प्रदेश भाजपा में नेता अलग-अलग खेमों में बटे हुए नजर आते हैं. एक खेमा प्रदेश नेतृत्व सतीश पूनिया समर्थकों का है तो दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थकों से जुड़ा है. खेमेबाजी की ये आग मेवाड़ तक पहुंच चुकी है क्योंकि दोनों ही उपचुनाव में राजे से जुड़ा कोई भी समर्थक नेता चुनाव मैदान में सक्रिय नहीं रहा. हालांकि राजे के चुनाव प्रचार में नहीं आने का कारण उनकी पुत्रवधू का बीमार होना भी बताया जा रहा है. लेकिन कुछ और सियासी कारण भी भाजपा के गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए है. वहीं वल्लभनगर में जनता सेना प्रमुख रणधीर सिंह भींडर, राजे के नजदीकी नेताओं में शामिल रहे हैं. भींडर पूर्व में यहां से भाजपा से विधायक भी रह चुके हैं. मतलब साफ है कि मेवाड़ में भाजपा को अपने से दूर हुए नेताओं को भी एक जाजम पर बैठाना होगा ताकि अगले चुनाव तक भाजपा यहां और मजबूत हो सके.

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हालांकि उपचुनाव में हार के बाद पूनिया इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि इन दोनों ही सीटों पर भाजपा को अतिरिक्त काम करने की जरूरत है और इस दिशा में संगठनात्मक स्तर पर काम शुरू भी हो चुका है. फिर चाहे यहां बूथ स्तर तक पार्टी का विस्तार करना हो या विस्तार के जरिए पार्टी को और मजबूत करने का काम हो, दोनों ही दिशाओं में भाजपा तेजी से काम कर रही है.

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