जयपुर. प्रदेश की 3 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का परिणाम भले ही आ गया हो, लेकिन प्रदेश भाजपा नेतृत्व का असली परीक्षा अब शुरू होगा. यह परीक्षा है अपने विरोधियों के राजनीतिक वार से बचने का. दरअसल, उपचुनाव में बीजेपी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद अब प्रदेश भाजपा में सतीश पूनिया विरोधी गुट वापस सक्रिय होगा. इस खेमे से निपटना ही प्रदेश नेतृत्व का असली इम्तिहान होगा.
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दरअसल भाजपा खुद को एकजुट बताती है, लेकिन प्रदेश भाजपा में नेताओं के अलग-अलग खेमे सर्वविदित हैं. प्रदेश संगठन इस बात से वाकिफ भी है क्योंकि उपचुनाव से कुछ महीने पहले हुए निकाय चुनाव में जब भाजपा का प्रभाव थोड़ा कमजोर हुआ था तब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से जुड़े समर्थक नेताओं ने प्रदेश संगठन के खिलाफ मोर्चा खोला था. खासतौर पर कोटा उसका सेंटर था और वहीं से जुड़े कुछ नेता इस मोर्चे की अगुवाई भी कर रहे थे.
कुछ महीने पहले कोटा में राजे समर्थक भाजपा नेताओं की बैठक और उसके बाद सार्वजनिक रूप से जारी किए गए संयुक्त बयान की विज्ञप्ति इस दौरान भूलना नहीं चाहिए और ना ही छबड़ा विधायक प्रताप सिंह सिंघवी का बयान, जिसमें उन्होंने कोटा में निकाय चुनाव के दौरान बीजेपी के खराब प्रदर्शन को लेकर सीधे तौर पर प्रदेश नेतृत्व पर उंगली उठाई थी. साथ ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को दरकिनार किए जाने का बयान तक मीडिया में दिया था. ऐसे में अब इस प्रकार के नेता मुखर हो सकते हैं.
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ऐसे में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के लिए असली इम्तिहान की घड़ी तो अब शुरू हुई है क्योंकि उन्हें ऐसे ही अपने विरोधियों से निपटना होगा. साथ ही उन कमियों को भी दूर करना होगा जो उपचुनाव के दौरान हुई क्योंकि खामियों को दूर करके ही साल 2023 में भाजपा सत्ता में काबिज होने का सपना पूरा कर पाएगी.
उपचुनाव से दूर रहा था वसुंधरा राजे समर्थकों का खेमा
मौजूदा 3 सीटों पर हुए उपचुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का खेमा लगभग पूरी तरह दूर रहा था. हालांकि, इस खेमे से जुड़े नेताओं ने अपनी दूरी के अलग-अलग कारण बताए थे. किसी ने स्वास्थ्य कारणों को, किसी ने पारिवारिक कारण लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम थी कि इसका असली कारण केवल और केवल गुटबाजी और खेमेबाजी है.
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बता दें, उपचुनाव में पार्टी की ओर से पूरी मेहनत सतीश पूनिया के नेतृत्व में ही की गई, लेकिन टीम सतीश पूनिया की मेहनत उपचुनाव में ज्यादा सफल नहीं हो पाई. लेकिन बीजेपी अपना गढ़ राजसमंद बचाने में कामयाब रही. यही पूनिया और उनकी टीम के लिए राहत की बात है क्योंकि जिन 2 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है वहां पर पूर्व में भी कांग्रेस के ही विधायक काबिज थे. ऐसे में विधानसभा के अंकगणित के लिहाज से बीजेपी ने उपचुनाव में कुछ खोया नहीं है, लेकिन कुछ पाया भी नहीं है.