जयपुर. प्रदेश में जिन गृह निर्माण सहकारी समितियों की ओर से ऑडिट के लिए रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है, ऐसी समितियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाएगी और इस्तगासा दायर किया जाएगा. सहकारिता विभाग के प्रमुख शासन सचिव कुंजीलाल मीणा ने निर्देश दिए हैं कि ऑडिट नहीं कराने वाली गृह निर्माण सहकारी समितियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए.
बुधवार को सहकार भवन में गृह निर्माण सहकारी समितियों से जुड़े अधिकारियों की बैठक में सहकारिता विभाग के प्रमुख शासन सचिव कुंजीलाल मीणा ने ये निर्देश दिए. उन्होंने निर्देश दिए कि राज्य में जितनी भी गृह निर्माण सहकारी समितियां है जो अवसायन में है. उन्हें दो माह में पंजीयन निरस्त करने की कार्रवाई की जाए.
उन्होंने कहा कि राज्य में 968 गृह निर्माण सहकारी समितियों में से 231 सक्रिय है, 522 निष्क्रिय है और 215 अवसायन में है. उन्होंने सभी संबंधित उप रजिस्ट्रार को कार्रवाई करने के लिए निर्देशित करने के लिए निर्देश दिए. साथ ही अवसायन कार्रवाई नियत समय में पूर्ण करने के निर्देश दिए. जयपुर में 160 गृह निर्माण सहकारी समितिया है जिसमें से 2019-20 तक 93 सक्रिय समितियों में से मात्र 2 गृह निर्माण सहकारी समितियों की ऑडिट हुई हैं.
उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए कि शेष समितियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि समय पर ऑडिट नही करने वाले निरीक्षकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई अमल में लाई जाए. उन्होंने ये सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि किसी एक निरीक्षक के पास ऑडिट और पंचनिर्णय के लिए अधिक समितियां नही होनी चाहिए.
बैठक में रजिस्ट्रार मुक्तानन्द अग्रवाल ने कहा कि राज्य में जितनी भी निष्क्रिय गृह निर्माण सहकारी समितिया है उनको अवसायन में लाया जाए और अवसायन में लाकर नियमानुसार पंजीकरण निरस्त किया जाए. उन्होंने कहा कि विभाग के जिलों में प्रभारी नियुक्त किए गए है उन प्रभारियों का दायित्व है कि जिले में इस प्रकार से चल रही गृह निर्माण सहकारी समितियों की रिपोर्ट तैयार कर पंजीयन निरस्त की कार्रवाई की जाए. संबंधित जिला प्रभारी जिलों में हो रही प्रगति के बारे में अवगत कराएंगे.
अग्रवाल ने कहा कि गृह निर्माण सहकारी समितियों में होने वाले फर्जीवाड़े को रोकने के लिए समय पर ऑडिट के साथ ऑडिट रिपोर्ट को भी सहकार पोर्टल पर अपलोड करना भी सुनिश्चित करें. उन्होंने कहा कि जिन गृह निर्माण सहकारी समितियों के खिलाफ पंचनिर्णय है उन्हें तीन माह में पूरा करें तथा धारा-55 की जांच को भी तीन माह में पूरा किया जाए. उन्होंने निर्देश दिए कि उप रजिस्ट्रार ये सुनिश्चित करें कि एक निरीक्षक के पास अधिकतम 2 या 3 समितियों की ऑडिट और पंचनिर्णय के मामले में भी 2 से 3 समितिया ही निरीक्षक के पास हो.