जयपुर. कैंसर लाइलाज बीमारी की श्रेणी में रखा जाता था, लेकिन अब सिर्फ एक गोली से पीड़ित उसी कैंसर से मुक्त हो रहे हैं. क्रोनिक मायलोइड ल्यूकेमिया (सीएमएल) से पीड़ित लोग रोज एक गोली ईमैटिनिब मेसाइलेट की लेकर कैंसर से जंग जीत रहे हैं और अपनों के साथ सामान्य जिंदगी जी रहे हैं.
ब्यावर का रहने वाला संदीप जैन, जिसकी आय महज 4500 रुपए थी. 12 साल पहले संदीप की तबीयत खराब हुई, जांच कराई तो सामने आया सीएमएल कैंसर. जिसका समय पर इलाज कराना जरूरी था, लेकिन आर्थिक तंगी इस पर भारी पड़ी.
कुछ यही हालात आगरा की रहने वाली पूनम शर्मा की थी. जिनके पति मजदूरी करते हैं. 6 साल पहले इस बीमारी की चपेट में आई पूनम जांच और इलाज के पैसे को लेकर भी चिंतित रहती थी. हालांकि जयपुर स्थित कैंसर हॉस्पिटल में उन्हें उपयुक्त इलाज भी मिला और आज वो अपनों के साथ सामान्य जिंदगी गुजर बसर कर रही हैं.
पूनम और संदीप जैसे सैकड़ों केस हैं, जो सीएमएल यानी क्रॉनिक मायलोइड ल्यूकेमिया से ग्रसित हैं, लेकिन ईमैटिनिब मेसाइलेट नामक दवा का सेवन कर के इस बीमारी से जंग जीती. असल में तो ये एक ब्लड कैंसर ही है, लेकिन आम जनता इसके बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानती है.
ईटीवी भारत से बातचीत में कैंसर विशेषज्ञ डॉ. अजय बापना ने बताया कि शरीर में मौजूद 9 और 22 गुणसूत्र की खराबी से सीएमएल विकार होता है. 20 साल पहले इस विकार पर विजय प्राप्त की गई थी. तभी से 22 सितंबर को वर्ल्ड सीएमएल डे भी मनाया जाता है. इस बीमारी में ईमैटिनिब मेसाइलेट दवा के रूप में 9 और 22 क्रोमोजोम डिफेक्ट को हराने के लिए हथियार तैयार किया था.
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वहीं, ब्लड कैंसर विशेषज्ञ डॉ. उपेंद्र शर्मा ने बताया कि बुजुर्गों और अधेड़ उम्र के लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं. किशोर और बच्चों में इसके केस काफी कम देखने को मिलते हैं. सीएमएल में क्रॉनिक का मतलब ही धीरे-धीरे बढ़ने वाले कैंसर से है. जिसका यदि समय पर नियमित इलाज नहीं लेते, तो ये जानलेवा हो सकती है. नियमित दवाई के सेवन से ही व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है और दूसरे सामान्य लोगों जितनी ही आयु हो सकती है.
बता दें कि देश में मौजूदा कैंसर रजिस्ट्री के आंकड़ों के आधार पर सीएमएल कैंसर के केस करीब 22 फीसदी है. सीएमएल कैंसर के रोगी अपनी दवा नियमित तौर पर लें तो न सिर्फ कैंसर को मात दे सकते हैं. बल्कि सामान्य व्यक्ति की तरह स्वस्थ जीवन जी सकते है.