जयपुर. राजस्थान में कांग्रेस पार्टी पर आया सियासी संकट अब पूरी तरीके से टल चुका है. 1 महीने से ज्यादा चले गहलोत-पायलट कैंप के सियासी टकराव का अब शांति काल चल रहा है. अब मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियों में किसे जगह मिले और किसे नहीं इसे लेकर माथापच्ची जारी है.
जहां पायलट कैंप अपने तीनों मंत्री इस लड़ाई में गवां चुका हैं तो वहीं, गहलोत कैंप के सामने मुश्किल यह है कि जब अब पायलट कैंप के 19 विधायकों की पार्टी में फिर से एंट्री हो गई है तो ऐसे में 1 महीने से ज्यादा गहलोत के नाम का झंडा उठाकर चल रहे विधायकों को अब सत्ता में कैसे एडजस्ट किया जाए. जहां एक ओर पायलट अपने 6 से ज्यादा विधायकों के लिए मंत्रिमंडल में जगह मांग रहे हैं तो वहीं राजनीतिक नियुक्तियों में भी वह अपने साथ काम कर चुके नेताओं को एडजस्ट करना चाहते हैं. वहीं, बाड़ाबंदी के समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी विधायकों से सत्ता में भागीदारी को लेकर कई वादे कर चुके हैं.
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इस पूरी माथापच्ची में अगर सबसे ज्यादा नुकसान किसी को होने जा रहा है तो वह है 13 निर्दलीय विधायक जिनमें से 10 विधायक गहलोत कैंप में और तीन विधायक पायलट कैंप में शामिल थे तो वहीं, बसपा से कांग्रेस में आए उन छह विधायकों का मंत्री पद भी अब पायलट की रीएंट्री के बाद मुश्किल में आ चुका है, क्योंकि सचिन पायलट जब प्रदेश अध्यक्ष थे तब भी वह बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को मंत्री पद देने की खिलाफत कर रहे थे. साथ ही निर्दलीय विधायकों को लेकर भी उनका रुख यही था. उस समय भी पायलट का कहना था कि जिन विधायकों ने कांग्रेस से बगावत कर चुनाव जीते हैं भले ही कांग्रेस उन्हें गले से लगाए लेकिन उन्हें पद देने से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में गलत मैसेज जाएगा.
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ऐसे में इन 19 विधायकों को लेकर पायलट की मुखालफत और कांग्रेसी विधायकों का विरोध फिर से सामने आएगा. ऐसे में खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस आलाकमान यह मानकर चल रहा है कि अगर कैबिनेट विस्तार में इन 19 विधायकों को अगर कोई जगह मिलती है तो टकराव फिर से हो सकता है जिसमें इन विधायकों का विरोध गहलोत कैंप के कांग्रेसी विधायक भी कर सकते हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अब नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस पार्टी में फिर से टकराव के हालात बने तो ऐसे में सियासी जादूगर अशोक गहलोत किसी बीच का रास्ता निकालने का ही प्रयास करेंगे जो ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक नियुक्ति या संसदीय सचिव पद तक ही होता है.
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13 निर्दलीय विधायक कांग्रेस के गहलोत कैंप के साथ हैं. महादेव खंडेला, संयम लोढ़ा, बाबूलाल नागर, रमिला खड़िया, कांति लाल मीणा, लक्ष्मण मीणा, बलजीत यादव, रामकेश मीणा, राजकुमार गौड़, आलोक बेनीवाल यह निर्दलीय विधायक थे. पायलट कैंप के साथ खुशवीर सिंह, सुरेश टांक, ओम प्रकाश हुडलाइन 13 में से जो 10 विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ बाड़ेबंदी में बंद रहे थे. उनमें से संयम लोढ़ा, महादेव सिंह खंडेला, बाबूलाल नागर का मंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा था. लेकिन अब नई परिस्थितियों में इन तीन विधायकों को राजनीतिक नियुक्तियों और संसदीय सचिव पद से संतोष करना पड़ेगा.
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इन तीन के अलावा कुछ और निर्दलीय विधायकों को एडजस्ट किया जा सकता है लेकिन मंत्री पद अब इन निर्दलीय विधायकों को मिलना नामुमकिन है. बसपा से कांग्रेस में आए विधायक अब नहीं पा सकेंगे मंत्री पदनिर्दलीय विधायकों के साथ ही बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों का भी अब मंत्री पद दूर की कौड़ी हो गया है. क्योंकि एक तरफ तो उनके विलय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है जिस पर अभी अंतिम सुनवाई होना बाकी है तो वहीं, दूसरी ओर पायलट कैंप इन 6 विधायकों को लेकर भी अपना जबरदस्त विरोध प्रकट करेगा. इन छह विधायकों में से राजेंद्र गुढ़ा, जोगिंदर अवाना और लखन मीणा मंत्री पद की कतार में थे लेकिन नए हालातों में इनके मंत्री पद भी अब हाथ से निकल गए हैं ऐसे में बसपा के 6 विधायकों को भी अब राजनीतिक नियुक्तियां यह संसदीय सचिव पद से ही संतोष करना पड़ेगा.