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Ram Navami 2022: सिया राम संग लखन नहीं श्री कृष्ण विराजे

भगवान राम का जन्मोत्सव रामनवमी पर्व देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसी ही धूम बीकानेर के एक खास मंदिर (Raghunath temple of Bikaner) में भी होती है. खास इसलिए क्योंकि यहां सिया राम संग लक्ष्मण नहीं भगवान श्री कृष्ण विराजे हैं. दिलचस्प है करीब 500 साल पुराने रघुनाथ मंदिर से जुड़ी ये कहानी!

Ram Navami 2022
सिया राम संग लखन नहीं श्री कृष्ण विराजे
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Published : Apr 10, 2022, 6:02 AM IST

Updated : Apr 10, 2022, 8:40 AM IST

बीकानेर. 500 साल पुराना है रघुनाथ मंदिर. कृपा निधान श्रीराम के जन्मोत्सव पर यहां मेला सा लगता है. लोग रघुनाथ जी के दर्शन कर भावविभोर हो लौटते हैं. पूरे 2 साल बाद भक्तों की मुराद पूरी हो रही है और उल्लास चेहरों पर दिख रहा है. कोरोना की वजह से इस पर ब्रेक लगी थी. रघुनाथ मंदिर अब भक्तों की लम्बी कतार से मुस्कुराता सा प्रतीत हो रहा है.

500 साल पुराना मंदिर, जहां सियाराम संग लखन नहीं! : करीब 500 साल पुराना रघुनाथ मंदिर (Raghunath temple of Bikaner) यहां पधारे लोगों के मन में कई प्रश्न उठाता है. लोग ठिठकते हैं भगवान राम संग अनुज लखन को न देख. यहां भगवान श्रीराम, सीता के साथ लक्ष्मण की जगह भगवान श्रीकृष्ण विराजे हैं. आमतौर पर कहीं भी राम मंदिर में सीता माता, भगवान श्रीराम के साथ लक्ष्मण मौजूद रहते हैं लेकिन रघुनाथ मंदिर में श्रीकृष्ण की प्रतिमा भगवान श्रीराम और माता सीता की प्रतिमा के साथ विराजमान है.

सिया राम संग लखन नहीं श्री कृष्ण विराजे

पढ़ें-Ram Navami 2022: वनवास के दौरान यहां पधारे थे श्रीराम

दोस्त, भक्त और श्री भगवान: कहानी बड़ी रोचक और भक्त के निश्चल भाव से जुड़ी है. जिसे पीढ़ियों से सुना और सुनाया जाता है. मंदिर के पुजारी मनीष स्वामी भक्त की भक्ति का बखान करते हैं. अपने श्रीराम के दर्शन को आने वाले श्रद्धालु पुरखों से चली आ रही कथा को बयां करते हैं. ऐसे ही एक भक्त हैं भवंरलाल. कहते हैं कि इस बात का कोई वैधानिक प्रमाण तो नहीं है लेकिन कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास अपने मित्र नंददास से मिलने वृंदावन गए थे. वापसी में ही रात को रवाना होने की बात कही. क्योंकि वो बिना श्रीराम के दर्शन अन्न जल ग्रहण नहीं करते थे. अपने मन की शंका को उन्होंने मित्र नंददास से साझा किया.

श्री कृष्ण भये रघुनाथ: मित्र ने अपने सखा के कष्ट को दूर करने के लिए अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण किया. उनसे प्रार्थना की. चमत्कार हुआ. भगवान ने भक्त की इच्छा का मान रखा. श्री कृष्ण ने राम रूप में तुलसीदास जी को दर्शन दिए.

कहानी एक और: इसके पीछे एक बात और भी कहीं जाती है कि एक बार गोस्वामी तुलसीदास वृंदावन गए थे और वहां उन्होंने अपने आराध्य श्रीराम से दर्शन देने की प्रार्थना की. वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की नगरी है ऐसे में भगवान श्रीराम ने वहां पर उन्हें कृष्ण के स्वरूप में ही दर्शन दिए. कहा ये भी जाता है कि इन्हीं परिकल्पनाओं के चलते भगवान श्रीराम का नाम रघुनाथ नाम पड़ा क्योंकि भगवान श्री राम रघुकुल से हैं और उन्हें रघुवंश के नाम से भी जाना जाता है और कृष्ण का स्वरूप श्रीनाथजी हैं. ऐसे में कालांतर में भगवान श्रीराम का रघुनाथ नाम भी चलन में आया और इसी परंपरा के तहत रघुनाथ मंदिर की भी स्थापना हुई.

Ram Navami 2022
सिया राम के साथ श्री कृष्ण

पढ़ें- Special: भरतपुर में पधारे राम! न देखी न सुनी आस्था की ऐसी अनूठी मिसाल, ऐसा रहस्य जिससे सब अंजान

श्रीराम कुंडली वाचन की परम्परा: एक खास विशेषता लिए इस रघुनाथ मंदिर में एक और परंपरा पिछले 100 साल से लगातार चली आ रही है. दरअसल मंदिर में ही करीब 108 साल पहले भगवान श्रीराम के जन्म कुंडली का वाचन मंदिर में ही स्थापित भगवान हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष शुरू हुआ और तब से यह परंपरा शुरू हो गई. भगवान राम के जन्म की बाद के समय यहां जन्मपत्रिका का वाचन होता है और उसके बाद फिर से जन्मपत्रिका को मंदिर में ही सुरक्षित रख लिया जाता है. हर साल रामनवमी के मौके पर वर्ष में केवल एक बार इस जन्मपत्रिका को बाहर निकाला जाता है और वाचन के बाद वापिस मंदिर में सुरक्षित रख दिया जाता है.

बीकानेर. 500 साल पुराना है रघुनाथ मंदिर. कृपा निधान श्रीराम के जन्मोत्सव पर यहां मेला सा लगता है. लोग रघुनाथ जी के दर्शन कर भावविभोर हो लौटते हैं. पूरे 2 साल बाद भक्तों की मुराद पूरी हो रही है और उल्लास चेहरों पर दिख रहा है. कोरोना की वजह से इस पर ब्रेक लगी थी. रघुनाथ मंदिर अब भक्तों की लम्बी कतार से मुस्कुराता सा प्रतीत हो रहा है.

500 साल पुराना मंदिर, जहां सियाराम संग लखन नहीं! : करीब 500 साल पुराना रघुनाथ मंदिर (Raghunath temple of Bikaner) यहां पधारे लोगों के मन में कई प्रश्न उठाता है. लोग ठिठकते हैं भगवान राम संग अनुज लखन को न देख. यहां भगवान श्रीराम, सीता के साथ लक्ष्मण की जगह भगवान श्रीकृष्ण विराजे हैं. आमतौर पर कहीं भी राम मंदिर में सीता माता, भगवान श्रीराम के साथ लक्ष्मण मौजूद रहते हैं लेकिन रघुनाथ मंदिर में श्रीकृष्ण की प्रतिमा भगवान श्रीराम और माता सीता की प्रतिमा के साथ विराजमान है.

सिया राम संग लखन नहीं श्री कृष्ण विराजे

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दोस्त, भक्त और श्री भगवान: कहानी बड़ी रोचक और भक्त के निश्चल भाव से जुड़ी है. जिसे पीढ़ियों से सुना और सुनाया जाता है. मंदिर के पुजारी मनीष स्वामी भक्त की भक्ति का बखान करते हैं. अपने श्रीराम के दर्शन को आने वाले श्रद्धालु पुरखों से चली आ रही कथा को बयां करते हैं. ऐसे ही एक भक्त हैं भवंरलाल. कहते हैं कि इस बात का कोई वैधानिक प्रमाण तो नहीं है लेकिन कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास अपने मित्र नंददास से मिलने वृंदावन गए थे. वापसी में ही रात को रवाना होने की बात कही. क्योंकि वो बिना श्रीराम के दर्शन अन्न जल ग्रहण नहीं करते थे. अपने मन की शंका को उन्होंने मित्र नंददास से साझा किया.

श्री कृष्ण भये रघुनाथ: मित्र ने अपने सखा के कष्ट को दूर करने के लिए अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण किया. उनसे प्रार्थना की. चमत्कार हुआ. भगवान ने भक्त की इच्छा का मान रखा. श्री कृष्ण ने राम रूप में तुलसीदास जी को दर्शन दिए.

कहानी एक और: इसके पीछे एक बात और भी कहीं जाती है कि एक बार गोस्वामी तुलसीदास वृंदावन गए थे और वहां उन्होंने अपने आराध्य श्रीराम से दर्शन देने की प्रार्थना की. वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की नगरी है ऐसे में भगवान श्रीराम ने वहां पर उन्हें कृष्ण के स्वरूप में ही दर्शन दिए. कहा ये भी जाता है कि इन्हीं परिकल्पनाओं के चलते भगवान श्रीराम का नाम रघुनाथ नाम पड़ा क्योंकि भगवान श्री राम रघुकुल से हैं और उन्हें रघुवंश के नाम से भी जाना जाता है और कृष्ण का स्वरूप श्रीनाथजी हैं. ऐसे में कालांतर में भगवान श्रीराम का रघुनाथ नाम भी चलन में आया और इसी परंपरा के तहत रघुनाथ मंदिर की भी स्थापना हुई.

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सिया राम के साथ श्री कृष्ण

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श्रीराम कुंडली वाचन की परम्परा: एक खास विशेषता लिए इस रघुनाथ मंदिर में एक और परंपरा पिछले 100 साल से लगातार चली आ रही है. दरअसल मंदिर में ही करीब 108 साल पहले भगवान श्रीराम के जन्म कुंडली का वाचन मंदिर में ही स्थापित भगवान हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष शुरू हुआ और तब से यह परंपरा शुरू हो गई. भगवान राम के जन्म की बाद के समय यहां जन्मपत्रिका का वाचन होता है और उसके बाद फिर से जन्मपत्रिका को मंदिर में ही सुरक्षित रख लिया जाता है. हर साल रामनवमी के मौके पर वर्ष में केवल एक बार इस जन्मपत्रिका को बाहर निकाला जाता है और वाचन के बाद वापिस मंदिर में सुरक्षित रख दिया जाता है.

Last Updated : Apr 10, 2022, 8:40 AM IST
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