बीकानेर. हजरत इमाम हुसैन की याद में मंगलवार को मोहर्रम मनाया जाएगा. इससे पहले सोमवार को ताजिए जियारत के लिए बाहर निकले और अकीदतमंदों ने जियारत की. बात करें मोहर्रम के मौके पर बनने वाले ताजियों की तो बीकानेर में कमोबेश हर मोहल्ले में ताजिया बनता है, लेकिन बीकानेर की सोनगिरी कुआं क्षेत्र में ताजियों की चौकी के पास लंबे अरसे से मिट्टी का ताजिया बनाया जाता रहा है. इस ताजिए को उसी जगह पर ठंडा किया जाता है.
मोहल्ले के बुजुर्ग गुलाम फरीद कहते हैं कि जब से समझ पकड़ी है तब से इस ताजिये (Muharram 2022 in Bikaner) को बनता हुआ देख रहे हैं. वे कहते हैं कि बीकानेर की स्थापना से ही यह ताजिया यहां बन रहा है और तब से ही मिट्टी का ताजिया बन रहा है. मोहल्ले के ही बुजुर्ग साबिर मोहम्मद कहते हैं कि बचपन से ही यह मिट्टी का ताजिया देख रहे हैं और तब से ही बुजुर्गों की परंपरा को भी आगे बढ़ा रहे हैं. वे कहते हैं कि दुनिया भर में कहीं भी दूसरी जगह मिट्टी का ताजिया नहीं बनता है.
इस बार जल्दी शुरू हुआ काम: मोहल्ले के बुजुर्ग कहते हैं कि 3 से 4 दिन में मोहर्रम का ताजिया पूरी तरह (Tazia made of clay in Bikaner) से तैयार किया जाता है. लेकिन इस बार बारिश के चलते मोहर्रम की पहली तारीख को ही काम शुरू कर दिया गया.
सब मिलकर करते हैं सहयोग: दरअसल इस ताजिया को बनाने के लिए मोहल्ले के युवा बुजुर्गों के निर्देशन में काम करते है. लम्बे समय से परम्परानुसार यहां ताजिया बनाया जा रहा है. बीकानेर की उस्ता कला पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और उस्ता कलाकार जावेद हुसैन उस्ता कहते हैं कि हम पिछले 25 से 30 सालों से लगातार यहां पर नकाशी और चित्रकारी का काम करते हैं. हम यहां किसी भी तरह का कोई पारिश्रमिक नहीं लेते हैं. वे कहते हैं कि यह हमारी भावना है.