बीकानेर. देश की आजादी के बाद रियासतों के विलय की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. राज्यों का गठन तब प्रारंभिक अवस्था में था और देश को एकता के सूत्र में पिरोए रखने के लिए जरूरी भी था. आजादी के लगभग 2 साल बाद 30 मार्च 1949 को राजस्थान की स्थापना (Rajasthan Formation Day 2022) की गई. ये दिन गौरवपूर्ण था और तभी से 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाने लगा. सिलसिलेवार तरीके से की गई एकीकरण प्रक्रिया में जो सिरे छूट गए उन्हें बाद में पिरो दिया गया. इन्हीं में से एक था राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू.
आजादी के बाद भारत में देसी रियासतों के विलय से राज्यों का गठन और पुनर्गठन हुआ.राजस्थान में रियासतों का विलय हुआ लेकिन उस वक्त माउंट आबू इससे अछूता रहा. सिरोही को मुंबई के अधीन कर दिया गया और माउंट आबू को अब के गुजरात में शामिल कर दिया गया. इस विलय का राजस्थान के लोगों ने भी खूब विरोध किया. Political Class से लेकर Masses ने इसकी पुरजोर मुखालफत की. लोकसभा में भी इसको लेकर काफी हंगामा हुआ. बढ़ते आक्रोश को देखते हुए एक कमेटी का गठन हुआ और उस कमेटी की रिपोर्ट के बाद आखिरकार राजस्थान राज्य की स्थापना के 7 साल बाद 1956 में माउंट आबू को शामिल किया गया.
इतिहास के पन्नों में दर्ज वो सारी बातें आज बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार (Rajasthan State Archives In Bikaner) में दस्तावेज के रूप में सुरक्षित हैं. राजस्थान राज्य अभिलेखागार के निदेशक और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आईएएस डॉ महेंद्र खड़गावत बताते हैं कि विलीनीकरण (Mount Abu Merger Into Rajasthan) के समय माउंट आबू को उस वक्त मुंबई स्टेट में शामिल कर लिया गया. चूंकि गुजरात उस वक्त अलग राज्य नहीं बना था वो महाराष्ट्र का हिस्सा था. ऐसे में आबू को भी महाराष्ट्र में ही मिला दिया गया. ये Merger रियासतदारों और सियासतदारों को पसंद नहीं आया. फिर आम लोगों का भी साथ मिला और आखिरकार उस पुराने फैसले पर तत्कालीन सरकार को बदलना पड़ा.
राजस्थान का एकमात्र पर्वतीय पर्यटन क्षेत्र: माउंट आबू की लोक संस्कृति में राजस्थान की छाप थी. पर्यटन के लिहाज से भी ये क्षेत्र किसी भी राज्य के लिए एक Asset से कम नहीं है. यही वजह है कि खूबसूरत आबू और सिरोही का मुद्दा राजस्थान के तत्कालीन नेताओं ने संविधान सभा में प्रमुखता से उठाया. इनमें जयनारायण व्यास, युवा राजनेता राज बहादुर के नाम शामिल है. राजबहादुर जो बहादुरी से सरदार वल्लभ भाई पटेल के सामने डटे रहे और अपने तर्क से सबको चौंका दिया. इनके संग और भी कई नाम जुड़े जिन्होंने मिलकर विलय के लिए लड़ाई लड़ी और फिर तर्क के साथ लड़ी गई जंग में जीत सकारात्मक सोच की हुई. आबू का विलय सातवें और अंतिम चरण में जाकर हुआ.