बीकानेर. सितंबर का आखिरी हफ्ता राजस्थान की (Rajasthan Political Drama) राजनीति में सियासी उबाल लिए रहा. पिछले चार-पांच दिनों से राजस्थान की सियासत में उठापटक का दौर देखने को मिल रहा है. सियासी घमासान के बीच ऊंट किस करवट बैठेगा इसका आकलन लगाना खुद सियासी पंडितों के लिए भी टेढ़ी खीर बन गया है. फिलहाल राजस्थान की सियासी उठापटक की जिम्मेदार सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी है. जयपुर से दिल्ली तक का रास्ता नापा जा रहा है. आने वाले कुछ दिनों में बीकानेर में भी कुछ ऐसा होने की संभावना है जिससे गुटबाजी का एक और एपिसोड देखने को मिलेगा. खास बात ये है कि यहां कांग्रेस के अलावा भाजपा भी गुटबाजी के खेल में रत दिखेगी.
भाजपा में होने वाले इस खेल के खिलाड़ी होंगे देवी सिंह भाटी और जिले से सांसद अर्जुन मेघवाल. सूत्रों के मुताबिक सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बीकानेर में जनसंवाद कार्यक्रम करेंगी (Vasundhara Jan samvad in Bikaner). माना जा रहा है कि उसी समय पश्चिमी राजस्थान के कद्दावर नेता और सात बार विधायक रहे देवीसिंह भाटी की भाजपा में घर वापसी होगी.
भाटी की घर वापसी: बीकानेर देवी सिंह भाटी और केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल की अदावत से भलीभांति वाकिफ है (eyes on Bikaner). पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी और बीकानेर से सांसद अर्जुन मेघवाल में छत्तीस का आंकड़ा है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में देवीसिंह भाटी ने अर्जुन मेघवाल की उम्मीदवारी का विरोध किया था. जब आलाकमान के मूड का भाटी को भान हो गया तो उन्होंने भाजपा से ही किनारा कर लिया.
कद्दावर देवी सिंह भाटी: बीकानेर संभाग और खास तौर से नए इलाके में खास पकड़ रखने वाले देवी सिंह भाटी पश्चिमी राजस्थान के कद्दावर नेताओं में शुमार है. अलग मिजाज की राजनीति करने वाले भाटी अपनी बेबाकी के लिए मशहूर हैं. इसका नुकसान भी उन्होंने उठाया. लेकिन अपनी धुन के पक्के भाटी ने कभी इसकी परवाह नहीं की. अपनी बात पर स्टैंड लेने वाले देवी सिंह भाटी एक बार फिर चर्चा में हैं.
वसुंधरा से रिश्ते अच्छे हैं!: भाटी के वसुंधरा से रिश्ते अच्छे रहे हैं. पार्टी के भीतर भी और अब बाहर रहकर भी. इसका ताजा उदाहरण वो जिम्मेदारी है जो उनके मजबूत कंधों पर डाली गई है. दरअसल, इन दिनों वसुंधरा के बीकानेर दौरे की चर्चा है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 9 अक्टूबर को बीकानेर में जनसंवाद सभा करेंगी. देशनोक और बीकानेर में राजे की दो सभाएं होनी हैं. राजे के बीकानेर टूर का पूरा जिम्मा बाहरी देवीसिंह भाटी को सौंपा गया है.
खास सिपाहसालारों संग भाटी: राजे के खास सिपहसालार माने जाने वाले अशोक परनामी, राजपाल सिंह शेखावत और यूनुस खान दो बार बीकानेर का दौरा कर चुके हैं. 'मैडम' के जनसंवाद कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए भाटी से लम्बी चर्चा भी कर चुके हैं. संवाद सभाओं की जिम्मेवारी संभाले भाटी ने भी बीकानेर के अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं को एक्टिव कर दिया है. खुद उनकी मीटिंग भी ले रहे हैं.
अर्जुन मेघवाल गुट नजरअंदाज: इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अर्जुन मेघवाल गुट की अनदेखी की जा रही है. बीकानेर भाजपा संगठन पर पूरी तरह अपना वर्चस्व कायम कर चुके अर्जुन मेघवाल केंद्र में मंत्री हैं, लेकिन जिले के किसी भी पार्टी पदाधिकारी को राजे के इस दौरे को लेकर कोई Duty नहीं दी गई है. स्थानीय संगठन पूरी तरह से इस दौरे से दूर नजर आ रहा है.
भाटी की वापसी एक वजह: दरअसल 9 अक्टूबर को बीकानेर के जूनागढ़ के सामने आयोजित होने वाली सभा में देवी सिंह भाटी की घर वापसी होगी. करीब 15 महीने बाद प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले देवीसिंह भाटी की घर वापसी कई मायनों में अहम है. एक खेमा मजबूत होने की ताक में बैठा है तो दूसरा खेमा इसे अपने खिलाफ उठाए गए कदम के तौर पर लेगा. तय है कि आगामी दिनों में जिले की भाजपा में ऐसा बहुत कुछ बदलेगा जिसका असर प्रदेश की राजनीति पर अच्छा खासा पड़ेगा और एक बार फिर अर्जुन मेघवाल के सामने भाजपा में सत्ता के केंद्र के रूप में देवी सिंह भाटी चुनौती देते नजर आएंगे.
कांग्रेस की सियासी उठापटक और बीकानेर: प्रदेश कांग्रेस और सरकार में उठापटक का असर भले ही सीधे तौर पर अभी बीकानेर में नजर नहीं आ रहा लेकिन इस सियासी उठापटक के ठहराव का परिणाम बीकानेर में जरूर देखने को मिल सकता है. दरअसल, बीकानेर जिले से कांग्रेस के तीन विधायक प्रदेश की सरकार में मंत्री है. आने वाले समय में अशोक गहलोत की जगह अगर सचिन पायलट को सरकार के मुखिया के तौर पर कमान सौंपी जाती है तो निश्चित रूप से बीकानेर से एक से दो मंत्रियों की छुट्टी तय होगी. अगर ऐसा नहीं होता और सियासी उठापटक के इस दौर में यदि खुद अशोक गहलोत भी सूबे के मुख्यमंत्री रहते हैं तो विधानसभा चुनाव से पहले मंत्रिमंडल में फेरबदल मुमकिन होगा. इस उठापटक में भी किसी अन्य जिले को प्रतिनिधित्व देने के लिहाज से भी बीकानेर जिले को कमजोर किया जा सकता है.
बीडी कल्ला फिर चर्चा में: साल 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बड़े चेहरों के रूप में प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में अशोक गहलोत के साथ बीडी कल्ला का नाम भी भावी मुख्यमंत्री के रूप में खूब चला. कल्ला चुनाव हार गए और 2013 में भी कल्ला को चुनावी शिकस्त झेलनी पड़ी. 10 साल तक कल्ला राजनीतिक रूप से नेपथ्य में चले गए लेकिन वर्तमान सियासी हलचल में गहलोत और पायलट के अलावा जिन चेहरों को लेकर चर्चा हो रही है उसमें कल्ला का नाम शामिल है. हालांकि वो पंक्ति के शायद सबसे अंतिम छोर पर खड़े हैं. बावजूद इसके कल्ला कमजोर नहीं है और कांग्रेस आलाकमान से उनके रिश्ते भी ठीक ठाक हैं.
दरअसल अपने 40-45 साल के राजनीतिक जीवन में कल्ला विवादों से दूर रहे. वर्तमान में चल रही सियासी उठापटक में भले ही सरकार के कई मंत्री मीडिया में आकर अशोक गहलोत, आलाकमान और सचिन पायलट के पक्ष में अपने बयान देते रहे हों लेकिन इन सबके बीच कल्ला ने अपना मुंह नहीं खोला है. हालांकि शांति धारीवाल के घर हुई बैठक में मंच पर धारीवाल के साथ कल्ला जरूर नजर आए. जिससे कहा जा सकता है कि गहलोत कैंप में कल्ला की स्थिति मजबूत है. ऐसे में कहीं भी, किसी भी प्रकार की उठापटक में निर्विवाद चेहरे के तौर पर बीडी कल्ला की लॉटरी भी सूबे के मुखिया के तौर पर खुल जाए तो आश्चर्य की बात नहीं! लेकिन यदि अशोक गहलोत के इतर सचिन पायलट प्रदेश के मुखिया बनते हैं तो मंत्री पद से हाथ धोने वालों में सबसे पहला नाम भी कल्ला का हो सकता है. इसका कारण युवाओं और नए चेहरों को मौका देने का बन सकता है.
भंवर सिंह और गोविंद मेघवाल: बीकानेर जिले से दो दूसरे मंत्रियों में ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी और आपदा प्रबंधन मंत्री गोविंद मेघवाल मंत्रिमंडल में शामिल हैं. आपदा प्रबंधन मंत्री गोविंद मेघवाल को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कट्टर समर्थक माना जाता है. इस सियासी उठापटक के बीच खुले तौर पर मेघवाल अशोक गहलोत के साथ खड़े नजर आए हैं. बीकानेर जिले में दलित नेता के तौर पर भाजपा के अर्जुन मेघवाल के सामने गोविंद मेघवाल एक मजबूत चेहरा हैं. ये चेहरा ही उन्हें पार्टी में खास मुकाम देता है. नतीजतन पार्टी बीकानेर जिले में अपने जनाधार को कमजोर नहीं करना चाहेगी. ऐसे में गोविंद मेघवाल का इस संक्रमण काल में भी इकबाल बुलंद ही रहेगा! वहीं ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी पहली बार मंत्री बने हैं. पूर्व में उच्च शिक्षा और अब शिक्षा महकमे की जिम्मेदारी भाटी के कंधों पर है. सियासी उठापटक में हुए बदलाव की गाज इन पर गिर सकती है. जिलेवार कोटे का एंगल इसमें हो सकता है. संभावना है कि बीकानेर के कल्ला को यथावत रखने के निर्णय के बाद भाटी की छुट्टी हो जाए.
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दौड़ में डूडी: कांग्रेस की सियासी उठापटक के बीच सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र प्रदेश में प्रतिपक्ष के नेता रहे और राजस्थान एग्रो इंडस्ट्रीज बोर्ड के चेयरमैन रामेश्वर डूडी हैं. सियासी जंग के हालिया दौर के बीच डूडी की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात हुई. इसके बाद चर्चा तेज हो गई है कि राजस्थान की कांग्रेस के मुखिया के बदलाव में जाट नेता के तौर पर रामेश्वर डूडी को जिम्मेवारी मिल सकती है. जाट राजनीति में कांग्रेस अपना भविष्य शायद रामेश्वर डूडी में देखती है. अपने समाज में उनकी पकड़ भी मजबूत है. ऐसे में कहीं न कहीं पार्टी आलाकमान राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच चल रहे सियासी झगड़े में बैलेंस के तौर पर संगठन की कमान डूडी को सौंप सकता है.
वर्तमान में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को गहलोत कैंप से माना जाता है. ऐसे में पायलट और गहलोत को बराबर रूप से बैलेंस करने के लिए आलाकमान अपनी पसंद के तौर पर डूडी पर दांव लगा सकता है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस के बड़े जाट नेताओं के सहारे डूडी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तक अपनी पैठ बना ली है. इतना ही नहीं राजस्थान के सियासी घटनाक्रम पर भी पूरी तरह से दूरी और चुप्पी साधे हुए हैं. वो पायलट और गहलोत दोनों ही कैंप को लेकर कुछ बोलने की बजाय दूरी बनाए हुए हैं.
राजस्थान में सियासी गुणा भाग के इस दौर में बीकानेर अहम हो चला है. कांग्रेस के चश्मे से देखें तो रामेश्वर डूडी को अगर पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी मिलती है तो बीकानेर कांग्रेस की तूती सूबे की राजनीति में बोलेगी. वहीं कल्ला अगर किसी नई भूमिका में आते हैं तो भी बीकानेर की बल्ले बल्ले होगी. वहीं, अगर इन संभावनाओं और आशंकाओं का सियासी ऊंट दूसरी करवट बैठा तो बीकानेर को अपनी एक और दो मंत्री पद से हाथ धोना पड़ सकता है. बीकानेर में भाजपा के भविष्य की बात करें तो देवी सिंह भाटी का आगमन सुसंकेत होगा. खबर ये भी है कि इनके साथ ही डूंगरगढ़ से पूर्व विधायक किसनाराम नाई की भी घर वापसी होगी. इससे उम्मीद है कि भाजपा की कद काठी और मजबूत तो होगी लेकिन आपसी द्वंद या खेमेबाजी की आंच भी राजनीति को गरमाएगी.