भीलवाड़ा. देश में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है, जिसका असर मौसम में भी दिन प्रतिदिन देखने को मिल रहा है. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए भीलवाड़ा शहर के पास स्थित माधव गौशाला एवं अनुसंधान केंद्र ने अनूठी पहल की है. जहां देसी गाय के गोबर से मशीन द्वारा लकड़ी बनाई जा रही है. इस लकड़ी का उपयोग लोग घर पर खाना बनाने के दौरान जलाने के साथ ही अंतिम क्रिया संस्कार में उपयोग में ले सकते हैं.
ईटीवी भारत की टीम माधव गौशाला एवं अनुसंधान केंद्र पहुंची, जहां मशीन द्वारा देसी गाय के गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है. लकड़ी दिखने में सुंदर लग रही है. वहीं माधव गौशाला एवं अनुसंधान केंद्र के व्यवस्थापक अजीत सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि माधव गौशाला एवं अनुसंधान केंद्र में सिर्फ देसी गाय को ही पाला जाता है और इस गाय के गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, जिससे पर्यावरण सन्तुलन बिगड़ा हुआ है. वहीं एक व्यक्ति के अंतिम क्रिया संस्कार में 500 किलो पेड़ों की लकड़ी का उपयोग होता है. ऐसे में गाय के गोबर से बनी लकड़ी 400 किलो में ही अंतिम क्रिया संस्कार हो सकता है. हमारा प्रयास है कि अधिक से अधिक लोग इस लकड़ी का उपयोग करें, जिससे पर्यावरण संतुलन बच सके.
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वहीं गौशाला परिसर में स्थित सांवलिया मंदिर के संयोजक गोविंद प्रकाश सोढ़ानी ने कहा कि माधव गौशाला एवं अनुसंधान केंद्र में देसी गाय के गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है. इस लकड़ी को हम गोकाष्ठ कहते हैं. अगर इस लकड़ी का हम उपयोग करेंगे, तो न तो पेड़ काटने पड़ेंगे और न ही पर्यावरण का संतुलन बिगड़ेगा. वहीं प्रदूषण भी नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में हो रही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर विराम लगाना बहुत आवश्यक है. इसी को देखते हुए यहां गाय के गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है और लकड़ी को जलाने के बाद जो राख होती है, उसका किसान अपने खलियान में डालते हैं, तो खाद के रूप में काम करती है. जिससे फसल का उत्पादन भी अच्छा होता है. हम यहां 6 रुपये प्रति किलो की दर से लकड़ी बेच रहे हैं. अंतिम संस्कार के लिए भी हमने सुझाव मांगे हैं. गाय के गोबर से बने लकड़ी का इंदौर व जयपुर में यूज लिया जा रहा है. उन्होंने भीलवाड़ा जिले के वासियों से अपील की कि ऐसी लकड़ी का का उपयोग करें, जिससे पर्यावरण भी बच सके और लोग गाय के महत्व को भी समझ सके.