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स्पेशल स्टोरी : 'सत्ता की देवी' मानी जाती हैं मां त्रिपुरा सुंदरी, तीन रूपों में देती हैं दर्शन

दक्षिणी राजस्थान में बांसवाड़ा स्थित माता त्रिपुरा सुंदरी को तरतई अर्थात तुरंत फल देने वाली माता के नाम से जाना जाता है. यह माता राजस्थान ही नहीं देश के अन्य हिस्सों में भी राजनेताओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुकी हैं. माता के दरबार में मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और राज्यपाल से राष्ट्रपति तक अपना शीश नवा चुके हैं. मां की मूर्ति को श्रद्धा भाव से देखने पर यह प्रात काल में कुमारिका, मध्याह्न में सुंदरी और संध्या काल में वृद्धा के रूप में दर्शन देती हैं.

बांसवाड़ा त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, Tripura Sundari Banswara
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Published : Sep 29, 2019, 3:20 PM IST

बांसवाड़ा. दक्षिणी राजस्थान में बांसवाड़ा स्थित माता त्रिपुरा सुंदरी की ख्याति धीरे-धीरे सत्ता की देवी के रूप में फैलती जा रही है. वागड़ क्षेत्र में तरतई अर्थात तुरंत फल देने वाली माता के नाम से जानी जाने वाली यह माता राजस्थान ही नहीं देश के अन्य हिस्सों में भी राजनेताओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुकी है.

तुरंत फल देने वाली मां त्रिपुरा सुंदरी

माता के दरबार में मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और राज्यपाल से राष्ट्रपति तक अपना शीश नवा चुके हैं. इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के अलावा कई मुख्यमंत्री, मंत्री और न्यायधीश भी शामिल है. राजस्थान की तीन बार कमान संभालने वाले जिले के हरिदेव जोशी माता के अनन्य भक्त रहे. बता दें कि माता त्रिपुरा सुंदरी की ख्याति इतनी बढ़ने लगी जो 2004 में वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के साथ ही प्रदेश की सीमाएं लांग गई. बांसवाड़ा से करीब 16 किलोमीटर दूर माता त्रिपुरा सुंदरी को राजराजेश्वरी भी कहा जाने लगा है.

मां की मूर्ति की सबसे बड़ी विशेषता यह मानी जाती है कि श्रद्धा भाव से देखने पर यह प्रात काल में कुमारिका, मध्याह्न में सुंदरी और संध्या काल में वृद्धा के रूप में दर्शन देती है. हालांकि मंदिर निर्माण के काल का ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है किंतु विक्रम संवत 1540 का एक शिलालेख मिला है जिसके आधार पर अनुमान है कि यह मंदिर सम्राट कनिष्क के काल से पहले का है.

पढ़ेंः जयपुरः नफरी की कमी से जूझ रही जयपुर ग्रामीण पुलिस

शिलालेख के अनुसार यहां आस-पास गढ़ पोली नामक महानगर था. इसके अधीन सीतापुरी शिवपुरी और विष्णुपुरी नाम के तीन दुर्ग थे. शिलालेख में त्रिउरारी शब्द का उल्लेख है. संभवत इसी आधार पर 3 दुर्गों के बीच देवी मां का मंदिर होने से इसे त्रिपुरा कहा जाने लगा है. रियासत काल में भी बांसवाड़ा डूंगरपुर गुजरात मालवा के अलावा मारवाड़ के राजा महाराजा भी मां के उपासक रहे हैं.

मां त्रिपुरा की मूर्ति की महिमा

सैकड़ों वर्षों से प्राण प्रतिष्ठित सिंह वाहिनी मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्टादश भुजा वाली है. 5 फीट ऊंची इस विशाल मूर्ति में मां के अष्टादश भुजाओं में विभिन्न आयुध है. पास में नवदुर्गा की प्रति कृतियां अंकित है. मां के पावन चरणों में सर्वार्थ सिद्धि दायक श्री यंत्र प्रतिष्ठित है. वहीं देवी मां दिन में तीन रूप में दर्शन देने के कारण भी त्रिपुरा सुंदरी के नाम से जानी जाती है.

मूर्ति भंजक नहीं लगा पाए हाथ

प्राचीन खंडों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि मुस्लिम शासक और मूर्ति भंजक महमूद गजनवी अलाउद्दीन खिलजी ने इस क्षेत्र के मंदिरों को नष्ट किया था. लेकिन भक्तों ने मां की मूर्ति को उनके आक्रमण से बचा लिया था. बता दें कि निकट ही स्थित तलवाड़ा में कई मंदिर मूर्ति भंजक शासकों के शिकार हुए थे. इसे माता का चमत्कार ही माना जा सकता है कि क्षेत्र के सैकड़ों मंदिर खंडित कर दिए गए परंतु मां त्रिपुरा सुंदरी की प्रतिमा तक मूर्ति भंजक नहीं पहुंच पाए थे.

पढ़ेंः जयपुर बाय नाइट मैराथन में दौड़े सैकड़ों धावक, सीएस डीबी गुप्ता ने किया फ्लैग ऑफ

दर्शन के बाद सीकर में प्रवेश करते थे पूर्व मुख्यमंत्री जोशी

मंदिर की देखरेख करने वाले मंदिर श्री त्रिपुरा सुंदरी व्यवस्थापक मंडल पंचाल समाज ट्रस्ट के ट्रस्टी अंबालाल पंचाल के अनुसार राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे हरिदेव जोशी मां के खास भक्त थे और जयपुर से बांसवाड़ा आना हो या बांसवाड़ा से जयपुर जाना हो, तो वो माता के दर्शन के बाद ही घर में प्रवेश करते थे.

यूं हुआ मंदिर विकास का रास्ता प्रशस्त

मान्यता है कि 1157 में इस क्षेत्र के चांदा भाई उर्फ पाता भाई लुहार (पंचाल) ने पहली बार मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. वहीं रियासत काल से ही मंदिर का रखरखाव सेवा पूजा और विकास कार्य पंचायत समाज करता रहा है और यह पंचाल समाज की कुलदेवी मानी जाती है.

वर्ष 1977 में जोशी की प्रेरणा से दानदाताओं के सहयोग से मंदिर के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे माता की अनन्य भक्तों में शुमार है. वर्ष 2004 में परिवर्तन यात्रा के दौरान राजे माता के दरबार में पहुंची. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद राजे के ओर से वर्ष 2007 में करीब 7 करोड रुपए स्वीकृत कर मंदिर का बाहर का सौंदर्य करण करवाया गया था.

देश का पहला मंदिर जिसकी हर शीला यज्ञोपवित

ट्रस्टी अंबालाल के अनुसार बाहरी सौंदर्यीकरण के बाद पंचायत समाज के ओर से अपने स्तर पर आंतरिक सौंदर्यीकरण का निर्णय किया गया क्योंकि 2010 तक मंदिर काफी छोटा था. साथ ही सुविधाओं का भी अभाव था. उसी दौरान माता का चमत्कार ही माने की अचानक प्रत्येक शीला का भावनात्मक पूजन का आईडिया आया. बता दें कि सर्वसम्मति से जून 2011 में पहला शिला पूजन कार्यक्रम हुआ. कुल 1889 शीला पूजन के अर्पण के साथ निर्माण कार्य पूरा हो गया. इसका सारा खर्चा पंचाल समाज के ओर से वहन किया गया.

पढ़ेंः राजस्थान में जाता हुआ मानसून बना आफत... कई जिलों में भारी बारिश की चेतावनी

साल में चार बड़े आयोजन

ट्रस्ट के ओर से मंदिर परिसर क्षेत्र में चैत्र नवरात्रि पर अष्टमी को महायज्ञ विशाल धार्मिक मेले का आयोजन किया जाता है. वहीं अश्विन नवरात्रि पर नित्य चंडी पाठ गरबा अष्टमी हवन में मेले का आयोजन होता है. इसी प्रकार कार्तिक पूर्णिमा पर मां त्रिपुरा सुंदरी का प्राकट्य उत्सव हवन और शुक्ल पक्ष अष्टमी पर पूजा अर्चना, रात्रि को भजन गरबा कार्यक्रम करवाया जाता है.

मोदी से पाटिल तक दरबार में

माता की महिमा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2011 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए यहां पहुंचे थे. राजस्थान के राज्यपाल रहने के दौरान प्रतिभा पाटिल ने भी माता के दरबार में शीश नवाया और वो देश के सर्वोच्च पद पर पहुंची. देश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत सहित कई राजनेता शीश नवा चुके हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पीएन भगवती भी माता के खास मुरीद रहे हैं.

बांसवाड़ा. दक्षिणी राजस्थान में बांसवाड़ा स्थित माता त्रिपुरा सुंदरी की ख्याति धीरे-धीरे सत्ता की देवी के रूप में फैलती जा रही है. वागड़ क्षेत्र में तरतई अर्थात तुरंत फल देने वाली माता के नाम से जानी जाने वाली यह माता राजस्थान ही नहीं देश के अन्य हिस्सों में भी राजनेताओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुकी है.

तुरंत फल देने वाली मां त्रिपुरा सुंदरी

माता के दरबार में मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और राज्यपाल से राष्ट्रपति तक अपना शीश नवा चुके हैं. इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के अलावा कई मुख्यमंत्री, मंत्री और न्यायधीश भी शामिल है. राजस्थान की तीन बार कमान संभालने वाले जिले के हरिदेव जोशी माता के अनन्य भक्त रहे. बता दें कि माता त्रिपुरा सुंदरी की ख्याति इतनी बढ़ने लगी जो 2004 में वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के साथ ही प्रदेश की सीमाएं लांग गई. बांसवाड़ा से करीब 16 किलोमीटर दूर माता त्रिपुरा सुंदरी को राजराजेश्वरी भी कहा जाने लगा है.

मां की मूर्ति की सबसे बड़ी विशेषता यह मानी जाती है कि श्रद्धा भाव से देखने पर यह प्रात काल में कुमारिका, मध्याह्न में सुंदरी और संध्या काल में वृद्धा के रूप में दर्शन देती है. हालांकि मंदिर निर्माण के काल का ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है किंतु विक्रम संवत 1540 का एक शिलालेख मिला है जिसके आधार पर अनुमान है कि यह मंदिर सम्राट कनिष्क के काल से पहले का है.

पढ़ेंः जयपुरः नफरी की कमी से जूझ रही जयपुर ग्रामीण पुलिस

शिलालेख के अनुसार यहां आस-पास गढ़ पोली नामक महानगर था. इसके अधीन सीतापुरी शिवपुरी और विष्णुपुरी नाम के तीन दुर्ग थे. शिलालेख में त्रिउरारी शब्द का उल्लेख है. संभवत इसी आधार पर 3 दुर्गों के बीच देवी मां का मंदिर होने से इसे त्रिपुरा कहा जाने लगा है. रियासत काल में भी बांसवाड़ा डूंगरपुर गुजरात मालवा के अलावा मारवाड़ के राजा महाराजा भी मां के उपासक रहे हैं.

मां त्रिपुरा की मूर्ति की महिमा

सैकड़ों वर्षों से प्राण प्रतिष्ठित सिंह वाहिनी मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्टादश भुजा वाली है. 5 फीट ऊंची इस विशाल मूर्ति में मां के अष्टादश भुजाओं में विभिन्न आयुध है. पास में नवदुर्गा की प्रति कृतियां अंकित है. मां के पावन चरणों में सर्वार्थ सिद्धि दायक श्री यंत्र प्रतिष्ठित है. वहीं देवी मां दिन में तीन रूप में दर्शन देने के कारण भी त्रिपुरा सुंदरी के नाम से जानी जाती है.

मूर्ति भंजक नहीं लगा पाए हाथ

प्राचीन खंडों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि मुस्लिम शासक और मूर्ति भंजक महमूद गजनवी अलाउद्दीन खिलजी ने इस क्षेत्र के मंदिरों को नष्ट किया था. लेकिन भक्तों ने मां की मूर्ति को उनके आक्रमण से बचा लिया था. बता दें कि निकट ही स्थित तलवाड़ा में कई मंदिर मूर्ति भंजक शासकों के शिकार हुए थे. इसे माता का चमत्कार ही माना जा सकता है कि क्षेत्र के सैकड़ों मंदिर खंडित कर दिए गए परंतु मां त्रिपुरा सुंदरी की प्रतिमा तक मूर्ति भंजक नहीं पहुंच पाए थे.

पढ़ेंः जयपुर बाय नाइट मैराथन में दौड़े सैकड़ों धावक, सीएस डीबी गुप्ता ने किया फ्लैग ऑफ

दर्शन के बाद सीकर में प्रवेश करते थे पूर्व मुख्यमंत्री जोशी

मंदिर की देखरेख करने वाले मंदिर श्री त्रिपुरा सुंदरी व्यवस्थापक मंडल पंचाल समाज ट्रस्ट के ट्रस्टी अंबालाल पंचाल के अनुसार राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे हरिदेव जोशी मां के खास भक्त थे और जयपुर से बांसवाड़ा आना हो या बांसवाड़ा से जयपुर जाना हो, तो वो माता के दर्शन के बाद ही घर में प्रवेश करते थे.

यूं हुआ मंदिर विकास का रास्ता प्रशस्त

मान्यता है कि 1157 में इस क्षेत्र के चांदा भाई उर्फ पाता भाई लुहार (पंचाल) ने पहली बार मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. वहीं रियासत काल से ही मंदिर का रखरखाव सेवा पूजा और विकास कार्य पंचायत समाज करता रहा है और यह पंचाल समाज की कुलदेवी मानी जाती है.

वर्ष 1977 में जोशी की प्रेरणा से दानदाताओं के सहयोग से मंदिर के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे माता की अनन्य भक्तों में शुमार है. वर्ष 2004 में परिवर्तन यात्रा के दौरान राजे माता के दरबार में पहुंची. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद राजे के ओर से वर्ष 2007 में करीब 7 करोड रुपए स्वीकृत कर मंदिर का बाहर का सौंदर्य करण करवाया गया था.

देश का पहला मंदिर जिसकी हर शीला यज्ञोपवित

ट्रस्टी अंबालाल के अनुसार बाहरी सौंदर्यीकरण के बाद पंचायत समाज के ओर से अपने स्तर पर आंतरिक सौंदर्यीकरण का निर्णय किया गया क्योंकि 2010 तक मंदिर काफी छोटा था. साथ ही सुविधाओं का भी अभाव था. उसी दौरान माता का चमत्कार ही माने की अचानक प्रत्येक शीला का भावनात्मक पूजन का आईडिया आया. बता दें कि सर्वसम्मति से जून 2011 में पहला शिला पूजन कार्यक्रम हुआ. कुल 1889 शीला पूजन के अर्पण के साथ निर्माण कार्य पूरा हो गया. इसका सारा खर्चा पंचाल समाज के ओर से वहन किया गया.

पढ़ेंः राजस्थान में जाता हुआ मानसून बना आफत... कई जिलों में भारी बारिश की चेतावनी

साल में चार बड़े आयोजन

ट्रस्ट के ओर से मंदिर परिसर क्षेत्र में चैत्र नवरात्रि पर अष्टमी को महायज्ञ विशाल धार्मिक मेले का आयोजन किया जाता है. वहीं अश्विन नवरात्रि पर नित्य चंडी पाठ गरबा अष्टमी हवन में मेले का आयोजन होता है. इसी प्रकार कार्तिक पूर्णिमा पर मां त्रिपुरा सुंदरी का प्राकट्य उत्सव हवन और शुक्ल पक्ष अष्टमी पर पूजा अर्चना, रात्रि को भजन गरबा कार्यक्रम करवाया जाता है.

मोदी से पाटिल तक दरबार में

माता की महिमा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2011 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए यहां पहुंचे थे. राजस्थान के राज्यपाल रहने के दौरान प्रतिभा पाटिल ने भी माता के दरबार में शीश नवाया और वो देश के सर्वोच्च पद पर पहुंची. देश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत सहित कई राजनेता शीश नवा चुके हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पीएन भगवती भी माता के खास मुरीद रहे हैं.

Intro:बांसवाड़ाl दक्षिणी राजस्थान में बांसवाड़ा स्थित माता त्रिपुरा सुंदरी की ख्याति धीरे धीरे सत्ता की देवी के रूप में फैलती जा रही हैl वागड़ क्षेत्र में तरतई अर्थात तुरंत फल देने वाली माता के नाम से जानी जाने वाली यह माता राजस्थान ही नहीं देश के अन्य हिस्सों में भी राजनेताओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुकी हैl माता के दरबार में मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और राज्यपाल से राष्ट्रपति तक अपना शीश नवा चुके हैंl इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के अलावा कई मुख्यमंत्री एवं मंत्री और न्यायधीश भी शामिल हैl राजस्थान की तीन बार कमान संभालने वाले बांसवाड़ा के हरिदेव जोशी माता के अनन्य भक्त रहेl उसके बाद माता त्रिपुरा सुंदरी की ख्याति बढ़ने लगी जो 2004 में वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के साथ प्रदेश की सीमाएं लांग गई और देश के कई हिस्सों तक पूजी जाने लगीl इसी कारण बांसवाड़ा से करीब 16 किलोमीटर दूर माता त्रिपुरा सुंदरी को राजराजेश्वरी भी कहा जाने लगा हैl मां की मूर्ति की सबसे बड़ी विशेषता यह मानी जाती है कि यदि पूर्ण श्रद्धा भाव पर प्रात काल में कुमारिका , मध्याह्न में सुंदरी तथा संध्या काल में वृद्धा के रूप में दर्शन देती है ।हालांकि मंदिर निर्माण के काल का ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है किंतु विक्रम संवत 1540 का एक शिलालेख मिला है जिसके आधार पर अनुमान है कि यह मंदिर सम्राट कनिष्क के काल से पहले का हैl


Body:शिलालेख के अनुसार यहां आस-पास गढ़ पोली नामक महानगर था। इसके अधीन सीतापुरी शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नाम के तीन दुर्ग थे। शिलालेख में त्रिउरारी शब्द का उल्लेख है। संभवत इसी आधार पर 3 दुर्गों के बीच देवी मां का मंदिर होने से इसे त्रिपुरा कहा जाने लगा। रियासत काल में भी बांसवाड़ा डूंगरपुर गुजरात मालवा के अलावा मारवाड़ के राजा महाराजा भी मां के उपासक रहे हैं।

मा त्रिपुरा की मूर्ति की महिमा

सैकड़ों वर्षों से प्राण प्रतिष्ठित सिंह वाहिनी मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्टादश भुजा वाली है। 5 फीट ऊंची इस विशाल मूर्ति में मां के अष्टादश भुजाओं में विभिन्न आयुध है। पास में नवदुर्गा की प्रति कृतियां अंकित है। मां के पावन चरणों में सर्वार्थ सिद्धि दायक श्री यंत्र प्रतिष्ठित है वही देवी मां के सिंह मयूर वे कमला सीनी होने और दिन में तीन रूप मैं दर्शन देने के कारण भी इन्हें त्रिपुरा सुंदरी के नाम से जाना जाता है।

मूर्ति भंजक नहीं लगा पाए हाथ

प्राचीन खंडों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि मुस्लिम शासक एवं मूर्ति भंजक महमूद गजनवी अलाउद्दीन खिलजी ने इस क्षेत्र के मंदिरों को नष्ट किया था लेकिन भक्तों ने मां की मूर्ति को उनके आक्रमण से बचा लिया। आपको बता दें कि निकट ही स्थित तलवाड़ा में कई मंदिर मूर्ति भंजक शासकों के शिकार हुए थे। इसे माता का चमत्कार ही माना जा सकता है क्षेत्र के सैकड़ों मंदिर खंडित कर दिए गए परंतु मा त्रिपुरा सुंदरी की प्रतिमा तक मूर्ति भंजक नहीं पहुंच पाए।


Conclusion:दर्शन के बाद सीकर में प्रवेश करते थे पूर्व मुख्यमंत्री जोशी

मंदिर की देखरेख करने वाले मंदिर श्री त्रिपुरा सुंदरी व्यवस्थापक मंडल पंचाल समाज ट्रस्ट के ट्रस्टी अंबालाल पंचाल के अनुसार राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे हरिदेव जोशी मां के खास भक्त थे और जयपुर से बांसवाड़ा आना हो या बांसवाड़ा से जयपुर जाना हो, माता के दर्शन के बाद ही घर में प्रवेश करते थे।

यूं हुआ मंदिर विकास का रास्ता प्रशस्त

मान्यता है कि 1157 में इस क्षेत्र के चांदा भाई उर्फ पाता भाई लुहार( पंचाल) ने पहली बार मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। आपको बता दें कि रियासत काल से ही मंदिर का रखरखाव सेवा पूजा और विकास कार्य पंचायत समाज करता रहा है और यह पंचाल समाज की कुलदेवी मानी जाती है।वर्ष 1977 मैं जोशी की प्रेरणा से दानदाताओं के सहयोग से मंदिर के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे माता की अनन्य भक्तों में शुमार है। वर्ष 2004 में परिवर्तन यात्रा के दौरान राजे माता के दरबार में पहुंची। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद राजे द्वारा वर्ष 2007 में करीब 7 करोड रुपए स्वीकृत कर मंदिर का बाहर का सौंदर्य करण करवाया।

देश का पहला मंदिर जिसकी हर शीला यज्ञोपवित

ट्रस्टी अंबालाल के अनुसार बाहरी सौंदर्यीकरण के बाद पंचायत समाज द्वारा अपने स्तर पर आंतरिक सौंदर्यीकरण का निर्णय किया गया क्योंकि 2010 तक मंदिर काफी छोटा था साथ ही सुविधाओं का भी अभाव था। लेकिन सबसे बड़ा संकट अर्थ का उभर कर आया। उसी दौरान माता का चमत्कार ही माने की अचानक प्रत्येक शीला का भावनात्मक पूजन का आईडिया आया और सर्वसम्मति से जून 2011 में पहला शिला पूजन कार्यक्रम हुआ। कुल 1889 शीला पूजन के अर्पण के साथ निर्माण कार्य पूरा हो गयाl इसका सारा खर्चा पंचाल समाज द्वारा वहन किया गयाl

साल में चार बड़े आयोजन

ट्रस्ट द्वारा मंदिर परिसर क्षेत्र में चैत्र नवरात्रि पर अष्टमी को महायज्ञ विशाल धार्मिक मेले का आयोजन किया जाता है वही अश्विन नवरात्रि पर नित्य चंडी पाठ गरबा अष्टमी हवन में मेले का आयोजन होता हैl इसी प्रकार कार्तिक पूर्णिमा पर मां त्रिपुरा सुंदरी का प्राकट्य उत्सव हवन तथा शुक्ल पक्ष अष्टमी पर पूजा अर्चना वे रात्रि को भजन गरबा कार्यक्रम करवाया जाता हैl

मोदी से पाटिल तक दरबार में

माता की महिमा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2011 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते यहां पहुंचे थेl राजस्थान के राज्यपाल रहने के दौरान प्रतिभा पाटिल ने भी माता के दरबार में शीश नवाया और वे देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचीl देश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ,मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत सहित कई राजनेता यहां पहुंचे हैंl वहीं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पीएन भगवती भी माता के खास मुरीद रहे हैंl

बाइट......1.. मोहन लाल शर्मा भक्त
.............2. निर्मला देवी भक्त
.............3. भावेश उपाध्याय पुजारी
.............4. अंबालाल पंचाल ट्रस्टी मंदिर श्री त्रिपुरा सुंदरी व्यवस्थापक मंडल पंचाल समाज 14 चोखला

............

स्पेशल स्टोरी है इस कारण वॉइस ओवर वहीं से करवा लीजिएगाl
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