भरतपुर. विजय मंदिर गढ़ के नाम से विख्यात बयाना कस्बे का किला करीब 14 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. किले के क्षेत्रफल की वजह से भरतपुर के इतिहासकार दावा करते हैं कि यह एशिया का सबसे बड़ा किला है. कहते हैं कि बयाना शिव भक्त राक्षस बाणासुर की नगरी है. इस लिहाज से यह किला अपने आप में पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व को समेटे हुए है.
बयाना और विजय मंदिर गढ़ का पर्यटन के केंद्र के रूप में विकास नहीं हो सका. यहां स्थानीय पर्यटक तो पहुंचते हैं, लेकिन विदेशों से आने वाले पर्यटक यहां तक नहीं पहुंच पाते. पर्यटन की दुनिया में इस किले को अब तक वो पहचान नहीं मिल पाई, जिसका ये हकदार है. इतिहास के जानकार डॉ. शैलेंद्र कुमार गुर्जर बताते हैं कि 'भारत का प्राचीन नगर बयाना' नामक पुस्तक में बयाना के पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व का विस्तार से जिक्र किया गया है. पुस्तक के लेखक इतिहासकार दामोदर लाल गर्ग हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार बयाना के किले और नगर की स्थापना द्वापरयुगीन राक्षस बाणासुर ने की थी. इसके निर्माण के संबंध में कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं होने की वजह से इसका निर्माण कब और किसने कराया, यह प्रश्न आज भी शोध का विषय बना हुआ है. हालांकि इस दुर्ग के संबंध में एक प्राचीन लेख अवश्य मिलता है, यह लेख 371-72 ईस्वी में पत्थर पर उत्कीर्ण किया हुआ है, यह शिलालेख राजा विष्णुवर्धन ने लाल पत्थर पर लिखवाया था. इससे यह स्पष्ट होता है कि यह दुर्ग तीसरी सदी का है.
14 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है किला
एशिया का सबसे बड़ा किला चित्तौड़गढ़ किले को माना जाता है, जो करीब 13 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इतिहासकार दामोदर लाल गर्ग ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि बयाना का किला पहाड़ी पर उत्तर से दक्षिण तक 14 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. अरावली पर्वत श्रंखला पर इस किले का विस्तार वैर कस्बे तक है. ऐसे में इतिहास के जानकार डॉ शैलेंद्र कुमार गुर्जर का दावा है कि विजय मंदिर गढ़ एशिया का सबसे बड़ा किला है.
दुर्ग के उत्तर-पूर्व में प्रमुख भवनों में पहाड़ेश्वर शिव मंदिर, भीमलाट, मीनार और रानी महल का खंडहर स्थित हैं. दुर्ग तक पहुंचने के लिए खड़ी चढ़ाई वाली घुमावदार सीढियां निर्मित हैं. पहाड़ी के उत्तर-पश्चिम में खरैरी गांव के रास्ते पर एक किले का एक गुप्त द्वार भी है जो घनी तराई में खुलता है.
किले का सामरिक महत्व
बताया जाता है कि दुर्ग अपनी सुदृढ पहाड़ी सुरक्षा के कारण मध्यकाल में सामरिक दृष्टी से महत्वपूर्ण रहा. साथ ही दिल्ली, रणथंभोर और ग्वालियर के नजदीक होने के कारण सभी बादशाह, शासक और राजाओं की इस पर दृष्टि रहती थी. इसे हस्तगत किए बिना न तो दक्षिण की ओर बढ़ा जा सकता था और न ही राजपूताना में प्रवेश किया जा सकता था.
डॉ शैलेंद्र कुमार गुर्जर ने बताया कि दुनिया भर से पर्यटक भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान घूमने आते हैं, लेकिन बयाना तक नहीं पहुंच पाते. इस वजह से न तो किले को दुनियाभर में उचित पहचान मिल पा रही है और न ही पर्यटन व पुरातत्व विभाग की ओर से इसे लेकर कोई माकूल प्रयास किए जा रहे हैं.