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भरतपुर स्थापना दिवस पर स्कूली छात्रों ने निकाली रैली, जानिए महाराजा सूरजमल का इतिहास

287 वां भरतपुर स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. Fसके उपलक्ष में महाराजा सूरजमल तिराहे पर पर्यटन विभाग की तरफ से भरतपुर लोहागढ़ दुर्ग के संस्थापक महाराजा सूरजमल की प्रतिमा पर पुष्पांजलि एवं फूल माला अर्पित किया गया.

Bharatpur Foundation Day, छात्र-छात्राओं ने निकाली रैली, भरतपुर न्यूज़
भरतपुर स्थापना दिवस पर रैली
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Published : Feb 19, 2020, 3:18 PM IST

भरतपुर. बुधवार को 287वां भरतपुर स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. इस मौके पर महाराजा सूरजमल तिराहे पर पर्यटन विभाग की ओर से भरतपुर लोहागढ़ दुर्ग के संस्थापक महाराजा सूरजमल की प्रतिमा पर पुष्पांजलि और फूल-माला अर्पित की गई. इस कार्यक्रम में जिला कलेक्टर नथमल डिडेल मुख्य अतिथि रहे. जिला कलेक्टर ने महाराजा सूरजमल के मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनको नमन किया. कार्यक्रम में कई स्कूल के बच्चों ने भी हिस्सा लिया.

कार्यक्रम में मौजूद जाने-माने इतिहासविदों ने बच्चों को भरतपुर के इतिहास के बारे में जानकारी दी. सभी बच्चों को बताया गया कि भरतपुर की स्थापना किस तरह की गई. इसके अलावा कोई भी शासक आज तक भरतपुर को क्यों नहीं जीत सका.

भरतपुर स्थापना दिवस पर रैली

इस मौके पर जिला नथमल डिडेल ने बताया कि भरतपुर स्थापना दिवस मानाने के लिए करीब 1500 स्कूली बच्चों की ओर से एक रैली निकली गई. इसके अलावा एक कार्यक्रम किया गया और सभी स्कूली बच्चों को भरतपुर की संस्कृति के बारे में बताया गया. साथ ही भरतपुर की गौरवमई गाथा रही है. उससे युवा पीढ़ी कितना कुछ सिख सकती है. इस मौके पर लोहागढ़ विकास परिषद और कार्यक्रम में मौजूद जनप्रतिनिधियों ने संकल्प लिया कि भरतपुर का विकास किस तरीके से किया जाए.

पढ़ें: सख्त निर्देश : राजकीय समारोह में 'नेताजी' को बुलाना अनिवार्य, अधिकारियों के शिलालेख पर नाम और माला पहनने पर पाबंदी

भरतपुर का गौरवशाली इतिहास

भरतपुर की स्थापना हिंदू धर्म के रक्षक महाराजा सूरजमल ने सन् 1733 में की थी और भरतपुर रियासत की सीमाओं का विस्तार धीरे-धीरे अलीगढ़, मेरठ, बुलंदशहर, आगरा और मथुरा तक हो गया था. इसके अधीन गंगा-यमुना नदी भी आती थी. मुगलों और अंग्रेजी कंपनी ने कई बार भरतपुर के लोहागढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया, लेकिन उनको अपने मुंह की खानी पड़ी और हारकर वापस जाना पड़ा.

अजय माने जाने वाले लोहागढ़ दुर्ग को कोई भी आक्रांता कभी जीत नहीं सका. भरतपुर रियासत एक ऐसी रियासत थी, जहां सभी धर्मों का वास होता था और कहा जाता है कि भगवान कृष्ण खुद रियासत की प्रजा की रक्षा करते थे. यहां के राजा, महिलाएं और बच्चे शरणार्थियों को शरण देने और उनकी रक्षा करने का दायित्व निभाते हुए शासन करते थे.

भरतपुर में सभी जाति और धर्म के लोगों को समान रूप से देखा जाता रहा है और सभी को बराबर का सम्मान दिया जाता था. इस कारण यहां के राजाओं ने जहां एक तरफ मंदिर बनवाया. वहीं, उसके बिल्कुल नजदीक ही मस्जिद का निर्माण भी कराया.

साल1805 में अंग्रेजी कंपनी ने कर्नल मेक मोशन के नेतृत्व में जब लोहागढ़ दुर्ग पर अटल बंद गेट की तरफ से आक्रमण किया तो उस वक्त अंग्रेजी सेना के 3300 से ऊपर सैनिक मारे गए और उनको वापस जाना पड़ा. कर्नल मेक मोशन ने बताया था कि लोहागढ़ दुर्ग को जीत पाना असंभव प्रतीत हुआ, क्योंकि जब वह अपनी तोप से गोले दागते हैं तो वो गोला एक चक्र में जाकर समाहित हो जाता है और वो चक्र किले के ऊपर घूमता रहता है.

पढ़ें: शांति धारीवाल के इस्तीफा मांगने पर कटारिया ने कहा- 'स्पीकर देख लें मेरी प्रोसिडिंग, फिर फैसला करें'

यह बात कर्नल ने ब्रिटिश हुकूमत को लिखी थी और ये भी कहा था कि जब तक भरतपुर के लोहागढ़ दुर्ग को हम जीत नहीं पाते, तब तक हम देश की अन्य रियासतों को नहीं जीत सकते. भरतपुर रियासत की एक खास बात ये भी रही कि यहां के राजा किसान थे और खेती करते थे.

इन्होंने हमेशा अन्याय और जुल्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी और दिल्ली को भी उस इसलिए जीता था क्योंकि दिल्ली के शासक ने एक खाना बनाने वाले व्यक्ति की हिंदू लड़की को शादी करने के लिए कैद कर लिया था. इसकी सूचना के बाद महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के मुगल शासक को सूचना देकर लड़की को रिहा करने की बात कही थी, लेकिन मुगल शासक के नहीं मानने पर भरतपुर के राजा महाराजा सूरजमल ने सेना के साथ दिल्ली पर आक्रमण कर दिया और फतेह के बाद हिंदू लड़की को मुगल शासक के कब्जे से छुड़ाकर हिंदू धर्म की लाज रखी.

भरतपुर. बुधवार को 287वां भरतपुर स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. इस मौके पर महाराजा सूरजमल तिराहे पर पर्यटन विभाग की ओर से भरतपुर लोहागढ़ दुर्ग के संस्थापक महाराजा सूरजमल की प्रतिमा पर पुष्पांजलि और फूल-माला अर्पित की गई. इस कार्यक्रम में जिला कलेक्टर नथमल डिडेल मुख्य अतिथि रहे. जिला कलेक्टर ने महाराजा सूरजमल के मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनको नमन किया. कार्यक्रम में कई स्कूल के बच्चों ने भी हिस्सा लिया.

कार्यक्रम में मौजूद जाने-माने इतिहासविदों ने बच्चों को भरतपुर के इतिहास के बारे में जानकारी दी. सभी बच्चों को बताया गया कि भरतपुर की स्थापना किस तरह की गई. इसके अलावा कोई भी शासक आज तक भरतपुर को क्यों नहीं जीत सका.

भरतपुर स्थापना दिवस पर रैली

इस मौके पर जिला नथमल डिडेल ने बताया कि भरतपुर स्थापना दिवस मानाने के लिए करीब 1500 स्कूली बच्चों की ओर से एक रैली निकली गई. इसके अलावा एक कार्यक्रम किया गया और सभी स्कूली बच्चों को भरतपुर की संस्कृति के बारे में बताया गया. साथ ही भरतपुर की गौरवमई गाथा रही है. उससे युवा पीढ़ी कितना कुछ सिख सकती है. इस मौके पर लोहागढ़ विकास परिषद और कार्यक्रम में मौजूद जनप्रतिनिधियों ने संकल्प लिया कि भरतपुर का विकास किस तरीके से किया जाए.

पढ़ें: सख्त निर्देश : राजकीय समारोह में 'नेताजी' को बुलाना अनिवार्य, अधिकारियों के शिलालेख पर नाम और माला पहनने पर पाबंदी

भरतपुर का गौरवशाली इतिहास

भरतपुर की स्थापना हिंदू धर्म के रक्षक महाराजा सूरजमल ने सन् 1733 में की थी और भरतपुर रियासत की सीमाओं का विस्तार धीरे-धीरे अलीगढ़, मेरठ, बुलंदशहर, आगरा और मथुरा तक हो गया था. इसके अधीन गंगा-यमुना नदी भी आती थी. मुगलों और अंग्रेजी कंपनी ने कई बार भरतपुर के लोहागढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया, लेकिन उनको अपने मुंह की खानी पड़ी और हारकर वापस जाना पड़ा.

अजय माने जाने वाले लोहागढ़ दुर्ग को कोई भी आक्रांता कभी जीत नहीं सका. भरतपुर रियासत एक ऐसी रियासत थी, जहां सभी धर्मों का वास होता था और कहा जाता है कि भगवान कृष्ण खुद रियासत की प्रजा की रक्षा करते थे. यहां के राजा, महिलाएं और बच्चे शरणार्थियों को शरण देने और उनकी रक्षा करने का दायित्व निभाते हुए शासन करते थे.

भरतपुर में सभी जाति और धर्म के लोगों को समान रूप से देखा जाता रहा है और सभी को बराबर का सम्मान दिया जाता था. इस कारण यहां के राजाओं ने जहां एक तरफ मंदिर बनवाया. वहीं, उसके बिल्कुल नजदीक ही मस्जिद का निर्माण भी कराया.

साल1805 में अंग्रेजी कंपनी ने कर्नल मेक मोशन के नेतृत्व में जब लोहागढ़ दुर्ग पर अटल बंद गेट की तरफ से आक्रमण किया तो उस वक्त अंग्रेजी सेना के 3300 से ऊपर सैनिक मारे गए और उनको वापस जाना पड़ा. कर्नल मेक मोशन ने बताया था कि लोहागढ़ दुर्ग को जीत पाना असंभव प्रतीत हुआ, क्योंकि जब वह अपनी तोप से गोले दागते हैं तो वो गोला एक चक्र में जाकर समाहित हो जाता है और वो चक्र किले के ऊपर घूमता रहता है.

पढ़ें: शांति धारीवाल के इस्तीफा मांगने पर कटारिया ने कहा- 'स्पीकर देख लें मेरी प्रोसिडिंग, फिर फैसला करें'

यह बात कर्नल ने ब्रिटिश हुकूमत को लिखी थी और ये भी कहा था कि जब तक भरतपुर के लोहागढ़ दुर्ग को हम जीत नहीं पाते, तब तक हम देश की अन्य रियासतों को नहीं जीत सकते. भरतपुर रियासत की एक खास बात ये भी रही कि यहां के राजा किसान थे और खेती करते थे.

इन्होंने हमेशा अन्याय और जुल्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी और दिल्ली को भी उस इसलिए जीता था क्योंकि दिल्ली के शासक ने एक खाना बनाने वाले व्यक्ति की हिंदू लड़की को शादी करने के लिए कैद कर लिया था. इसकी सूचना के बाद महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के मुगल शासक को सूचना देकर लड़की को रिहा करने की बात कही थी, लेकिन मुगल शासक के नहीं मानने पर भरतपुर के राजा महाराजा सूरजमल ने सेना के साथ दिल्ली पर आक्रमण कर दिया और फतेह के बाद हिंदू लड़की को मुगल शासक के कब्जे से छुड़ाकर हिंदू धर्म की लाज रखी.

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