भरतपुर. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान बर्ड सेंचुरी के रूप में जाना जाता है. घना यानी केवलादेव में प्रवासी पक्षियों का डेरा रहने के कारण यह स्थान दुनियाभर के बर्ड लवर्स को भी आकर्षित करता है. घना एक बहुत बड़ा वेटलैंड एरिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि घना के आस-पास 60 ऐसे स्थल चिन्हित किये गये हैं जो वेटलैंड की श्रेणी में आते हैं.
इन तमाम वेटलैंड पर प्रवासी पक्षी बसेरा बसाते हैं. लिहाजा इन वेटलैंड के संरक्षण को लेकर बात की जाने लगी है. ईटीवी भारत ने पर्यावरणविद राज सिंह से जिले के इन वेटलैंड और इनके संरक्षण के बारे में विस्तार से चर्चा की.
इन जलाशयों पर पक्षियों का बसेरा
पर्यावरणविद राज सिंह ने बताया कि भरतपुर जिले में केवलादेव घना अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त वेटलैंड है. लेकिन इसके अलावा भरतपुर शहर और जिले में करीब 60 वेटलैंड ऐसे हैं जहां देसी-विदेशी पक्षियों का प्रवास रहता है. इनमें मलाह गांव के पास, अटलबन्ध, हीरादास बस स्टैंड के पास, स्किम-13, चांदपोल गेट के पास, जघीना गेट कैनाल, हेलक बांध, कुटी का नगला के पास, गोवर्धन ड्रेन सांतरुक, रूपवास में हीरा नगला, देविया नगला, बंध बारैठा, कोट थाना, दर्र बरहना, कामां में नौनेरा, मथुरा के पास सोनोट गांव, जोधपुर झाल, अबुआ नगला, सरूरपुर गांव समेत भरतपुर और आस-पास के बृज क्षेत्र में करीब 60 वेटलैंड चिह्नित किए गए हैं.
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कानूनी संरक्षण की जरूरत
पर्यावरणविद राज सिंह ने बताया कि भरतपुर जिले और आसपास के क्षेत्रों में चिन्हित किए गए वेटलैंड को कानूनी संरक्षण की सख्त आवश्यकता है. फिलहाल ये वेटलैंड पंचायत समिति, जल संसाधन विभाग आदि सरकारी विभागों के अधीन हैं. कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं होने की वजह से इन वेटलैंड को कभी भी मिट्टी से भरा जा सकता है या फिर बदला जा सकता है. ऐसे में कानूनी संरक्षण मिलने के बाद ही ये वेटलैंड सुरक्षित हो पाएंगे और प्रवासी पक्षी यहां पर नियमित रूप से प्रवास कर सकेंगे.
दो साल में किए चिह्नित
असल में भरतपुर जिले और आस-पास के क्षेत्रों में वेटलैंड बीते 2 साल के दौरान ज्यादा नजर में आए. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के नेचर गाइड गजेंद्र सिंह, छोटू खान समेत कई लोग जगह-जगह घूमकर वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी करते थे. उसके बाद धीरे-धीरे कुछ लोग और जुड़े, जिसके बाद जिले के इन सभी वेटलैंड के बारे में जानकारी इकट्ठा की गई.
सरकार को भेजेंगे जानकारी
पर्यावरणविद राज सिंह ने बताया कि बीते 2 साल के दौरान भरतपुर जिले और आसपास के क्षेत्रों में चिन्हित किए गए नए वेटलैंड की सूची तैयार कर सरकार को भेजी जाएगी. साथ ही पर्यावरणविदों से चर्चा कर नए वेटलैंड को किस प्रकार से कानूनी संरक्षण प्रदान किया जा सकता है, इसके नोट्स तैयार कर सरकार को उपलब्ध कराएंगे.