भरतपुर. देश मे लॉकडाउन के दौरानसबसे ज्यादा विपत्ति उन मजदूरों पर आई है जो अपना घर छोड़ कर दूसरे राज्यों में काम करने के लिए गए थे, क्योंकि लॉकडाउन के बाद सारे काम धंधे चोपाट हो गए और उनके सामने खाने पीने की समस्या खड़ी हो गई है. जिसके बाद सभी मजदूरों ने अपने घर की तरफ पलायन करने का सोचा, कोई पैदल तो कोई साइकिल से अपने घर की तरफ निकल पड़ा.
किसी को मध्यप्रदेश जाना है, किसी को उत्तरप्रदेश, तो किसी को बिहार और झारखंड, जिसके लिए उन्हें हजारों किलोमीटर का सफर तय करना है. आलम ये है कि पैदल चलते-चलते मजदूरों के पैरों में छाले पड़ गए है. लेकिन सर पर एक ही धुन सवार है कि कैसे भी घर पहुंचा जाए रास्ते मे जो मिल गया खा लिया, नहीं मिला तो किसी पेड़ के नीचे बैठ कर आराम किया और पानी पीकर फिर अपनी मंजिल की तरफ निकल गए.
मंगलवार को भरतपुर के नेशनल हाइवे में साइकिल पर सवार कुछ मजदूर मिले, जो मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और बिहार के रहने वाले थे. जब उन्हें रोक कर बात की तो उन्होंने बताया कि वे लोग जोधपुर से आ रहे है और करीब 03 दिन पहले जोधपुर से निकले थे. मजदूरों ने बताया कि जब वह साइकिल चलाते-चलाते थक जाते है तो किसी पेड़ के नीचे बैठ कर आराम कर लेते है और एक दूसरे के पैर में दवा कर आगे मंजिल की तरफ निकल पड़ते है.
लेकिन उनसे बात करने के बाद एक बात और सामने आई कि लोग उनकी मजबूरी का फायदा भी जमकर उठा रहे है. मजदूरों ने अपने घर जाने के लिए साइकिल खरीदी तो उनको पुरानी साइकिल की कीमत 1200 से 2 हजार तक चुकानी पड़ रही है. जबकि इतने में तो नई साइकिल आ जाती है, लेकिन मजदूरों की मजबूरी है कि उन्हें घर जाना है और ऐसे में जो भी साधन मिल जाए वह ठीक है.
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इसके अलावा मजदूरों के सामने एक और बड़ी समस्या है कि उत्तर प्रदेश में एंट्री करने वाले आगरा और मथुरा के बॉर्डर पूरी तरह से सीज है, पुलिस उत्तरप्रदेश के मजदूरों को तो अपने जिले में घुसने दे रही है. लेकिन जो अन्य राज्यों के लोग है, उनको बॉर्डर में नहीं घुसने दिया जा रहा. अब ऐसे में सवाल उठता है की मजदूर अपने घर पहुंचे तो कैसे पहुंचे.