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Special: जैव विविधता का भंडार है केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, प्रदेश के 50 फीसदी से अधिक प्रजाति के जीव, पक्षी और वनस्पतियां उपलब्ध

वैश्वीकरण या यूं कहें कि आधुनिकता के बदलते मायनों ने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ वन्य जीवों को भी काफी प्रभावित किया है. ऐसे में भरतपुर में घना का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान इन्हें सहेजे हुए है. प्रदेश में पाए जाने वाले 50 फीसदी से अधिक प्रजाति के जीव, पक्षी और वनस्पतियां यहां उपलब्ध हैं. विश्व जैव विविधता दिवस के अवसर पर ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में जैव विविधता का संगम
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Published : May 22, 2021, 8:02 AM IST

Updated : May 22, 2021, 9:32 AM IST

भरतपुर. प्रदेश के पूर्वी द्वार भरतपुर में 28.73 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान न केवल पक्षियों के लिए बल्कि अपनी अनूठी जैव विविधता के लिए दुनिया भर में पहचान रखता है. पर्यावरणविदों की मानें तो राजस्थान में पक्षियों, जीवों, तितलियों आदि की कुल जितनी प्रजातियां पाई जाती हैं, उनकी 50 फीसदी से अधिक प्रजातियां अकेले घना क्षेत्र में उपलब्ध हैं. विश्व जैव विविधता दिवस पर आइए इस उद्यान की महत्ता और खासियत से परिचित होते हैं.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में जैव विविधता का संगम

पढ़ें: SPECIAL : तौकते चक्रवात खा गया डूंगरपुर के देसी आम...तूफान से चौपट हुई पैदावार

इसलिए है विविधता

भरतपुर के पर्यावरणविद डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि यह क्षेत्र शुरू में एक निचला क्षेत्र था. यह मौसमी बाढ़ (बाणगंगा, गम्भीरी व रूपारेल नदी) और ऐतिहासिक रूप से यमुना नदी का बाढ़ प्रभावित तटीय क्षेत्र का हिस्सा था. इस कारण दलदली क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता था. काफी प्रयासों के बाद घना ने तमाम चुनौतियों से जूझते हुए वर्ल्ड हेरिटेज साइट तक का सफर तय किया. डॉ. मेहरा ने बताया कि घना में तीन प्रकार की आवासीय विविधता है. यहां नम भूमि (वेट लैंड), ग्रास लैंड और वुड लैंड उपलब्ध है. यही वजह है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र में बहुत बड़ी जैव विविधता उपलब्ध है.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जैव विविधता का भंडार, विश्व जैव विविधता दिवस
महत्वपूर्ण तथ्य

पढ़ें: SPECIAL : लॉकडाउन में पोल्ट्री फॉर्म व्यवसाय पर सरकार की बेरुखी की मार, पोल्ट्री उद्योग में हो रहा नुकसान

ऐसे समझें घना का महत्व

डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि पूरे राजस्थान प्रदेश में पक्षियों की कुल 510 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अकेले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में करीब 380 पक्षियों की प्रजातियां चिह्नित की जा चुकी हैं. इसी तरह राजस्थान में रेंगने वाले (सरीसृप) जीवों की करीब 40 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें करीब 25 से 29 प्रजातियां घना में उपलब्ध हैं. राजस्थान में तितलियों की करीब 125 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें से करीब 80 प्रजाति घना में मिलती हैं. राजस्थान में मेंढक की 14 प्रजातियां, जिनमें से 9 प्रजाति घना में, राजस्थान में कछुओं की 10 प्रजातियों में से 8 प्रजाति घना में मिल जाएंगी.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान विश्व की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहर के संरक्षणार्थ कन्वेंशन की ओर से विश्व का सूची में नामांकित किया जा चुका है. भारत सरकार ने इसे मार्च 1982 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया, अक्टूबर 1981 में वेटलैंड कन्वेंशन के अंतर्गत रामसर साइट में और वर्ल्ड हेरिटेज कन्वेंशन के तहत 1985 में विश्व प्राकृतिक निधि (वर्ल्ड हेरिटेज साइट) सम्मान से भी गौरवान्वित किया जा चुका है.

इसलिए मनाते हैं जैव विविधता दिवस

प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में जैव-विविधता का महत्व देखते हुए ही जैव-विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया. इसमें विशेष तौर पर वनों की सुरक्षा, संस्कृति, जीवन के कला शिल्प, संगीत, वस्त्र-भोजन, औषधीय पौधों का महत्व आदि को प्रदर्शित करके जैव-विविधता के महत्व एवं उसके न होने पर होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना है.

भरतपुर. प्रदेश के पूर्वी द्वार भरतपुर में 28.73 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान न केवल पक्षियों के लिए बल्कि अपनी अनूठी जैव विविधता के लिए दुनिया भर में पहचान रखता है. पर्यावरणविदों की मानें तो राजस्थान में पक्षियों, जीवों, तितलियों आदि की कुल जितनी प्रजातियां पाई जाती हैं, उनकी 50 फीसदी से अधिक प्रजातियां अकेले घना क्षेत्र में उपलब्ध हैं. विश्व जैव विविधता दिवस पर आइए इस उद्यान की महत्ता और खासियत से परिचित होते हैं.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में जैव विविधता का संगम

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इसलिए है विविधता

भरतपुर के पर्यावरणविद डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि यह क्षेत्र शुरू में एक निचला क्षेत्र था. यह मौसमी बाढ़ (बाणगंगा, गम्भीरी व रूपारेल नदी) और ऐतिहासिक रूप से यमुना नदी का बाढ़ प्रभावित तटीय क्षेत्र का हिस्सा था. इस कारण दलदली क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता था. काफी प्रयासों के बाद घना ने तमाम चुनौतियों से जूझते हुए वर्ल्ड हेरिटेज साइट तक का सफर तय किया. डॉ. मेहरा ने बताया कि घना में तीन प्रकार की आवासीय विविधता है. यहां नम भूमि (वेट लैंड), ग्रास लैंड और वुड लैंड उपलब्ध है. यही वजह है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र में बहुत बड़ी जैव विविधता उपलब्ध है.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जैव विविधता का भंडार, विश्व जैव विविधता दिवस
महत्वपूर्ण तथ्य

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ऐसे समझें घना का महत्व

डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि पूरे राजस्थान प्रदेश में पक्षियों की कुल 510 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अकेले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में करीब 380 पक्षियों की प्रजातियां चिह्नित की जा चुकी हैं. इसी तरह राजस्थान में रेंगने वाले (सरीसृप) जीवों की करीब 40 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें करीब 25 से 29 प्रजातियां घना में उपलब्ध हैं. राजस्थान में तितलियों की करीब 125 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें से करीब 80 प्रजाति घना में मिलती हैं. राजस्थान में मेंढक की 14 प्रजातियां, जिनमें से 9 प्रजाति घना में, राजस्थान में कछुओं की 10 प्रजातियों में से 8 प्रजाति घना में मिल जाएंगी.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान विश्व की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहर के संरक्षणार्थ कन्वेंशन की ओर से विश्व का सूची में नामांकित किया जा चुका है. भारत सरकार ने इसे मार्च 1982 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया, अक्टूबर 1981 में वेटलैंड कन्वेंशन के अंतर्गत रामसर साइट में और वर्ल्ड हेरिटेज कन्वेंशन के तहत 1985 में विश्व प्राकृतिक निधि (वर्ल्ड हेरिटेज साइट) सम्मान से भी गौरवान्वित किया जा चुका है.

इसलिए मनाते हैं जैव विविधता दिवस

प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में जैव-विविधता का महत्व देखते हुए ही जैव-विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया. इसमें विशेष तौर पर वनों की सुरक्षा, संस्कृति, जीवन के कला शिल्प, संगीत, वस्त्र-भोजन, औषधीय पौधों का महत्व आदि को प्रदर्शित करके जैव-विविधता के महत्व एवं उसके न होने पर होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना है.

Last Updated : May 22, 2021, 9:32 AM IST
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