भरतपुर. जिले का 288 वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. भरतपुर अपने इतिहास और खासतौर से अभेद्य दुर्ग लोहागढ़ के कारण विख्यात है. लोहागढ़ दुर्ग एकमात्र ऐसा दुर्ग है, जिसे मुस्लिम शासक, मराठा और अंग्रेजों में से कोई नहीं जीत पाया. इतिहास के इस अनोखे दुर्ग की नींव महाराजा सूरजमल ने 1743 ई. में बसंत पंचमी के दिन ही रखी गई थी.
101 ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के साथ रखी नींव
इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि 1733 ई. में कुंवर सूरजमल ने खेमकरण सोगरिया पर आक्रमण किया और फतेहगढी को जीत लिया. इसके बाद 1743 ई. में महाराजा सूरजमल ने बसंत पंचमी के दिन इसी स्थान पर लोहागढ़ दुर्ग की नींव रख कर भरतपुर की स्थापना की. इतिहासकार वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल ने 101 ब्राह्मणों की मौजूदगी में दुर्गा सप्तशती के पाठ के साथ बसंत पंचमी के दिन लोहागढ़ दुर्ग की नींव रखी. उस समय भरतपुर की स्थापना और किले की नींव रखने के समारोह में 4 लाख, 62 हजार, 824 रुपए (तत्कालीन राशि) खर्च हुए.
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मजदूरी में दी जाती थी कौड़ियां
इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि लोहागढ़ दुर्ग के निर्माण के लिए हर दिन करीब 13 हजार श्रमिक और मिस्त्री काम करते थे, जो कि लगातार 8 साल तक निर्माण कार्य में जुटे रहे. निर्माण कार्य में जुटे श्रमिकों को कौड़ियों में मजदूरी दी जाती थी, जिनमें पुरुषों को 1 दिन की मजदूरी 12 कौड़ी, महिलाओं को 8 और बच्चों को 6 कौड़ियां प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी दी जाती थी. 12 कौड़ी 2 पैसे के बराबर होती थीं, जिसमें पूरे परिवार का एक दिन का भोजन का खर्च चल जाता था.
किले के पांच सुरक्षा कवच
इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि किले के निर्माण के दौरान इसकी सुरक्षा और मजबूती का विशेष ख्याल रखा गया, जिसके तहत किले के चारों तरफ करीब 200 फ़ीट चौड़ी सुजान गंगा नहर का निर्माण किया गया. उसके बाद किले के चारों तरफ मजबूत दीवार उसके पीछे रेत की दीवार और खाई का निर्माण भी किया गया. कुल मिलाकर किले को 5 सुरक्षा कवच से सुरक्षित किया गया. किले के चारों तरफ 10 दरवाजों का निर्माण किया गया और प्रवेश के लिए दो मुख्य दरवाजे रखे गए. किले के दो मुख्य दरवाजों को सुजान गंगा नहर के ऊपर अस्थाई पुल से जोड़ा गया. इनके अलावा किले में प्रवेश का कोई मार्ग नहीं था. जब भी कोई आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करता था तो इन पुलों को हटा दिया जाता था. इससे कोई भी सहना क्या आक्रमणकारी सीधे किले में प्रवेश नहीं कर पाता था.
आक्रमण के समय खोल देते थे दो बांधों का पानी
इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि लोहागढ़ किले के निर्माण से पूर्व रूपारेल और बाणगंगा नदियों का प्रवाह रोक दिया गया था. किले के निर्माण के बाद मोती झील और कौंधनी बांध दो बांधों को भी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता था. जब भी कोई आक्रमणकारी लोहागढ़ दुर्ग पर आक्रमण करता था तो दोनों बांधों का पानी छोड़ दिया जाता था. इससे लोहागढ़ दुर्ग के चारों तरफ का इलाका जलमग्न हो जाता था और आक्रमणकारी की सेना आसानी से पराजित हो जाती थी.
दुर्ग निर्माण से जुड़े फैक्ट
- 8 साल में हुआ किले का निर्माण
- 13 हजार श्रमिक हर दिन करते थे निर्माण कार्य
- निर्माण कार्य में 1500 गाड़ियां, 1000 ऊंट गाड़ियां, 500 घोड़ा गाड़ी और 500 खच्चर लाते थे पत्थर
- 200 फीट चौड़ी और 30 फीट गहरी है सुजान गंगा नहर
- 100 फीट ऊंची हैं किले की दीवार
गौरतलब है कि अंग्रेजों ने पांच बार लोहागढ़ पर आक्रमण किया लेकिन हर बार उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा. वहीं मुस्लिम और मराठा शासक भी कभी किले को जीत नहीं पाए. यही वजह है कि भरतपुर का लोहागढ़ किला इतिहास में अजेय किले के रूप में जाना जाता है.