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शिवरात्री स्पेशल : भरतपुर के इस संग्रहालय में है 2 हजार साल पुराना एक मुखी शिवलिंग, शैव धर्म से है गहरा रिश्ता

भगवान शिव के अनेकों रूप मंदिरों में देखने को मिलते हैं, लेकिन भरतपुर के राजकीय संग्रहालय में 2 हजार साल पुराना एकमुखी शिवलिंग मौजूद है. साथ ही शैव धर्म के उद्भव और विकास की झांकी भी इस संग्रहालय में देखी जा सकती है. यहां शुंगकाल से लेकर मध्यकाल तक की शिव परिवार से जुड़ी अनेकों मूर्तियां हैं. जो इस बात का प्रमाण है, कि भरतपुर जिले का शैव धर्म से लंबा नाता रहा है.

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भरतपुर के राजकीय संग्रहालय में है 2 हजार पुराना शिवलिंग
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Published : Feb 20, 2020, 1:44 PM IST

भरतपुर. महाशिवरात्रि पर्व पर हम मंदिरों के शिवालयों में जाकर शिवलिंग की पूजा आराधना करते हैं और अमूमन प्रत्येक मंदिर में एक ही प्रकार के शिवलिंग देखने को मिलते हैं. लेकिन भरतपुर के राजकीय संग्रहालय में ना केवल 2 हजार साल से भी अधिक पुराना कुषाण कालीन दुर्लभ शिवलिंग है, बल्कि यह सामान्य शिवलिंगों से अलग एक मुखी शिवलिंग है.

भरतपुर के राजकीय संग्रहालय में है 2 हजार पुराना शिवलिंग

इतिहासकारों की मानें, तो कुषाण काल में शिव की पूजा लिंग विग्रह में की जाती थी. उसी को ध्यान में रखते हुए इस शिवलिंग की प्रतिमा का आकार लिंग के रूप में देखने को मिलता है. इतना ही नहीं, भरतपुर के राजकीय संग्रहालय में शिव की अलग-अलग भाव भंगिमा में अलग-अलग ताल की ऐतिहासिक दुर्लभ प्रतिमाएं संरक्षित है. महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर हम आपके लिए इन अद्भुत और दुर्लभ ऐतिहासिक शिव प्रतिमाओं के दर्शन कराएंगे.

यह भी पढ़ें- महाशिवरात्रि स्पेशल: जयपुर का सबसे प्राचीन ताड़केश्वर महादेव मंदिर, जानिए कैसे हुई थी स्थापना

साढ़े 4 फीट ऊंची है दुर्लभ शिवलिंग प्रतिमा

राजकीय संग्रहालय के क्यूरेटर हेमंत अवस्थी ने बताया, कि कुषाण कालीन शिवलिंग की प्रतिमा केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान से सटे गांव अघापुर में मिली थी. यह प्रतिमा कुषाण कालीन है और इसके शीर्ष भाग पर उष्नीषी शिव का अंकन किया गया है. करीब साढ़े 4 फीट ऊंची यह प्रतिमा अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है. इस प्रतिमा का निर्माण बंसी पहाड़पुर के लाल पत्थर से हुआ है.

राजकीय संग्रहालय में संरक्षित शिव प्रतिमाओं में अलग-अलग काल के अनुरूप शिल्प नजर आता है. साथ ही लीला प्रसंग और कथानाकों का भी अंकन बेहतरीन नजर आता है. इन प्रतिमाओं में शिव विवाह और नटराज की प्रतिमाओं में बेजोड़ शिल्प देखने को मिलता है. विग्रहों में एकमुखी शिवलिंग, हरिहर शिव विवाह और नटराज की प्रतिमाएं विशेष हैं. संग्रहालय में शिव परिवार की जीवन झांकियों से संबंधित करीब 40 दुर्लभ प्रतिमाएं संग्रहित की गई है.

यह भी पढ़ें- महाशिवरात्रि कल, शिवालयों में लगेगी श्रदालुओं की भीड़

देखने के लिए हैं खास प्रतिमाएं

  • शिव-पार्वती विवाह : गांव नोंह से बरामद यह प्रतिमा गुप्तकालीन है. प्रतिमा में शिव और पार्वती के विवाह का अंकन अद्भुत शिल्प के साथ किया गया है.
  • उमा-महेश्वर : इस प्रतिमा में शिव और पार्वती का ललितासन मुद्रा में वाहन नंदी पर विराजमान अवस्था में अंकन किया गया है. ऊपरी भाग में विष्णु और ब्रह्मा के मध्य शिव लिंगों की आराधना करते हुए आराधक दर्शाए गए हैं. यह उत्तर गुप्त काल की प्रतिमा है और भरतपुर के कामां में मिली थी.
  • नरमुंड धारण किए शिव : उत्तर गुप्त काल की इस प्रतिमा में शिव चतुरहस्त हैं और गले में नरमुंडों की माला धारण किए हुए हैं. साथ मे नंदी को उकेरा गया है. यह प्रतिमा भरतपुर शहर के पास स्थित गांव मलाह से प्राप्त हुई थी.
  • नृत्यरत शिव : 10 वीं शताब्दी की इस प्रतिमा में शिव का नृत्यरत अंकन किया गया है. करौली से प्राप्त इस प्रतिमा में चतुर हस्त शिव के हाथ में त्रिशूल, पान पात्र दर्शाए गए हैं और निम्न भाग में शिवगणों को उत्कीर्णित किया है.

समुदाय विशेष ने कर दिया था खंडित

राजकीय संग्रहालय में संग्रहित प्रतिमाओं में से अधिकतर प्रतिमाओं को मुस्लिम आक्रांताओं ने हिन्दू संस्कृति को नष्ट भृष्ट करने के उद्देश्य से खंडित कर दिया था. बावजूद इसके इन प्रतिमाओं में शिल्प सौंदर्य आज भी नजर आता है.

भरतपुर. महाशिवरात्रि पर्व पर हम मंदिरों के शिवालयों में जाकर शिवलिंग की पूजा आराधना करते हैं और अमूमन प्रत्येक मंदिर में एक ही प्रकार के शिवलिंग देखने को मिलते हैं. लेकिन भरतपुर के राजकीय संग्रहालय में ना केवल 2 हजार साल से भी अधिक पुराना कुषाण कालीन दुर्लभ शिवलिंग है, बल्कि यह सामान्य शिवलिंगों से अलग एक मुखी शिवलिंग है.

भरतपुर के राजकीय संग्रहालय में है 2 हजार पुराना शिवलिंग

इतिहासकारों की मानें, तो कुषाण काल में शिव की पूजा लिंग विग्रह में की जाती थी. उसी को ध्यान में रखते हुए इस शिवलिंग की प्रतिमा का आकार लिंग के रूप में देखने को मिलता है. इतना ही नहीं, भरतपुर के राजकीय संग्रहालय में शिव की अलग-अलग भाव भंगिमा में अलग-अलग ताल की ऐतिहासिक दुर्लभ प्रतिमाएं संरक्षित है. महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर हम आपके लिए इन अद्भुत और दुर्लभ ऐतिहासिक शिव प्रतिमाओं के दर्शन कराएंगे.

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साढ़े 4 फीट ऊंची है दुर्लभ शिवलिंग प्रतिमा

राजकीय संग्रहालय के क्यूरेटर हेमंत अवस्थी ने बताया, कि कुषाण कालीन शिवलिंग की प्रतिमा केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान से सटे गांव अघापुर में मिली थी. यह प्रतिमा कुषाण कालीन है और इसके शीर्ष भाग पर उष्नीषी शिव का अंकन किया गया है. करीब साढ़े 4 फीट ऊंची यह प्रतिमा अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है. इस प्रतिमा का निर्माण बंसी पहाड़पुर के लाल पत्थर से हुआ है.

राजकीय संग्रहालय में संरक्षित शिव प्रतिमाओं में अलग-अलग काल के अनुरूप शिल्प नजर आता है. साथ ही लीला प्रसंग और कथानाकों का भी अंकन बेहतरीन नजर आता है. इन प्रतिमाओं में शिव विवाह और नटराज की प्रतिमाओं में बेजोड़ शिल्प देखने को मिलता है. विग्रहों में एकमुखी शिवलिंग, हरिहर शिव विवाह और नटराज की प्रतिमाएं विशेष हैं. संग्रहालय में शिव परिवार की जीवन झांकियों से संबंधित करीब 40 दुर्लभ प्रतिमाएं संग्रहित की गई है.

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देखने के लिए हैं खास प्रतिमाएं

  • शिव-पार्वती विवाह : गांव नोंह से बरामद यह प्रतिमा गुप्तकालीन है. प्रतिमा में शिव और पार्वती के विवाह का अंकन अद्भुत शिल्प के साथ किया गया है.
  • उमा-महेश्वर : इस प्रतिमा में शिव और पार्वती का ललितासन मुद्रा में वाहन नंदी पर विराजमान अवस्था में अंकन किया गया है. ऊपरी भाग में विष्णु और ब्रह्मा के मध्य शिव लिंगों की आराधना करते हुए आराधक दर्शाए गए हैं. यह उत्तर गुप्त काल की प्रतिमा है और भरतपुर के कामां में मिली थी.
  • नरमुंड धारण किए शिव : उत्तर गुप्त काल की इस प्रतिमा में शिव चतुरहस्त हैं और गले में नरमुंडों की माला धारण किए हुए हैं. साथ मे नंदी को उकेरा गया है. यह प्रतिमा भरतपुर शहर के पास स्थित गांव मलाह से प्राप्त हुई थी.
  • नृत्यरत शिव : 10 वीं शताब्दी की इस प्रतिमा में शिव का नृत्यरत अंकन किया गया है. करौली से प्राप्त इस प्रतिमा में चतुर हस्त शिव के हाथ में त्रिशूल, पान पात्र दर्शाए गए हैं और निम्न भाग में शिवगणों को उत्कीर्णित किया है.

समुदाय विशेष ने कर दिया था खंडित

राजकीय संग्रहालय में संग्रहित प्रतिमाओं में से अधिकतर प्रतिमाओं को मुस्लिम आक्रांताओं ने हिन्दू संस्कृति को नष्ट भृष्ट करने के उद्देश्य से खंडित कर दिया था. बावजूद इसके इन प्रतिमाओं में शिल्प सौंदर्य आज भी नजर आता है.

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