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वन्यजीव और मानव के बीच बढ़ रहा टकराव होगा कम, वन विभाग के अधिकारियों को दी जा रही ट्रेनिंग

सरिस्का सहित पूरे देशभर के जंगल में मानव व वन्य जीव के बीच संघर्ष की घटनाओं को कम करने के लिए वन विभाग ने एक नवाचार किया है. इसकी शुरुआत सरिस्का बाघ परियोजना से हुई. सरिस्का में राज्य स्तरीय स्तरीय कार्यशाला शुरू हुई है, इसमें प्रदेश के 28 डीएफओ शामिल हुए हैं. इस कार्यशाला में विशेषज्ञों ने टकराव को रोकने, वन्य जीव एक्ट सहित आईपीसी व सीआरपीसी के प्रावधानों की जानकारी दी.

Alwar latest hindi news, forest department
वन्यजीव और मानव के बीच बढ़ रहे टकराव को कम का प्रयास...
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Published : Mar 2, 2021, 1:35 PM IST

अलवर. सरिस्का सहित पूरे देशभर के जंगल में मानव व वन्य जीव के बीच संघर्ष की घटनाओं को कम करने के लिए वन विभाग ने एक नवाचार किया है. इसकी शुरुआत सरिस्का बाघ परियोजना से हुई. सरिस्का में राज्य स्तरीय स्तरीय कार्यशाला शुरू हुई है, इसमें प्रदेश के 28 डीएफओ शामिल हुए हैं. इस कार्यशाला में विशेषज्ञों ने टकराव को रोकने, वन्य जीव एक्ट सहित आईपीसी व सीआरपीसी के प्रावधानों की जानकारी दी. जानवरों को ट्रेंक्युलाइज एवं रेस्क्यू करने के बारे में भी प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया गया.

वन विभाग के अधिकारियों को दी जा रही ट्रेनिंग...

दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ राज्य की प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं हैड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स श्रुति शर्मा ने किया. इस मौके पर राजस्थान वानिकी एवं वन्यजीव प्रशिक्षण केंद्र के डायरेक्टर केसीए अरुण प्रसाद, प्रशिक्षण केंद्र की वन संरक्षक शैलजा देवल, आईएफएस अधिकारी पी. काथिरवेल, वन संरक्षक एवं क्षेत्र निदेशक बाघ परियोजना सरिस्का आरएन मीणा सहित अनेक अधिकारी मौजूद थे. कार्यशाला के पहले सत्र में एडवोकेट संजीव कारगवाल ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम से संबंधित विभिन्न अनुच्छेदों एवं नियमों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि जंगल में मानव व वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं के अतिक्रमण सहित कई कारण हैं. दो चरणों में यह कार्यशाला होगी. पहले चरण में 28 डीएफओ शामिल होंगे. यह चरण 1 मार्च व 2 मार्च को चल रहा है. जबकि, दूसरे चरण की कार्यशाला 8 व 9 मार्च को होगी.इसमें बचे हुए अन्य डीएफओ हिस्सा लेंगे.

पढ़ें: बाघों का कुनबा बढ़ने के साथ बढ़ेगी सरिस्का की खूबसूरती, जानें क्या हो रहे नवाचार

अतिक्रमण हटाने के लिए कानूनी प्रावधानों की जानकारी दी और बताया कि यदि किसी वन्यजीव को नुकसान पहुंचाया जाता है, तो किन-किन प्रावधानों में कार्रवाई हो सकती है. उन्होंने सीआरपीसी, आईपीसी व एवीडेंस एक्ट सहित आईटी एक्ट के बारे में जानकारी दी. जयपुर चिड़ियाघर से आए डॉ. अरविंद माथुर ने वन्यजीवों के व्यवहार, उन्हें ट्रेंक्युलाइज करने तथा रेस्क्यू करने संबंधी जानकारी दी. डॉ. माथुर ने डीएफओ को ट्रेंक्युलाइज गन का प्रशिक्षण भी दिया. प्रशिक्षण के बाद प्रतिभागियों ने सरिस्का भ्रमण किया. वन्यजीवों को ट्रेंक्युलाइज करने की प्रक्रिया के संबंध में प्रायोगिक प्रशिक्षण प्राप्त किया गया. अंतिम सत्र में डीएफओ सुदर्शन शर्मा ने सरिस्का में बाघ-बघेरों सहित अन्य जंगली जानवरों की निगरानी में अपनाई जा रही तकनीक के बारे में बताया.

प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्रुति शर्मा ने हाल ही विस्थापित पानी ढाल गांव के वन क्षेत्र का भ्रमण किया एवं विस्थापन क्षेत्र का जायजा लिया. वहां वन्यजीवों के आवास के विकास के निर्देश दिए, उन्होंने अलवर स्थित गुरु जी की कोठी राजस्थान वानिकी एवं वन्य जीवन प्रशिक्षण संस्थान तथा सरिस्का के वन क्षेत्र का दौरा किया. सरिस्का भ्रमण के दौरान बाघिन एसटी-2 एवं बाघ एसटी-6 दिखाई दिए. श्रुति शर्मा ने कहा कि लोगों को वन्य जीवो के प्रति डर निकालना होगा, इसके लिए वन विभाग व सरिस्का प्रशासन की तरफ से लोगों को जागरूक किया जाएगा. साथ ही, एहतियातन कई कदम उठाए जा रहे हैं. इसकी शुरुआत सरिस्का से की गई है. सरिस्का का जंगल अन्य जगहों से अलग है व बेहतर है. वन्यजीवों के लिए सरिस्का को अच्छा विकल्प माना गया है. डीएफओ व अधिकारी ट्रेंकुलाइज करने व रेस्क्यू करने में कई बार हिचकते हैं, इसलिए इस कार्यशाला के दौरान प्रैक्टिकली ट्रेनिंग भी सभी को दी जाएगी.

अलवर. सरिस्का सहित पूरे देशभर के जंगल में मानव व वन्य जीव के बीच संघर्ष की घटनाओं को कम करने के लिए वन विभाग ने एक नवाचार किया है. इसकी शुरुआत सरिस्का बाघ परियोजना से हुई. सरिस्का में राज्य स्तरीय स्तरीय कार्यशाला शुरू हुई है, इसमें प्रदेश के 28 डीएफओ शामिल हुए हैं. इस कार्यशाला में विशेषज्ञों ने टकराव को रोकने, वन्य जीव एक्ट सहित आईपीसी व सीआरपीसी के प्रावधानों की जानकारी दी. जानवरों को ट्रेंक्युलाइज एवं रेस्क्यू करने के बारे में भी प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया गया.

वन विभाग के अधिकारियों को दी जा रही ट्रेनिंग...

दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ राज्य की प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं हैड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स श्रुति शर्मा ने किया. इस मौके पर राजस्थान वानिकी एवं वन्यजीव प्रशिक्षण केंद्र के डायरेक्टर केसीए अरुण प्रसाद, प्रशिक्षण केंद्र की वन संरक्षक शैलजा देवल, आईएफएस अधिकारी पी. काथिरवेल, वन संरक्षक एवं क्षेत्र निदेशक बाघ परियोजना सरिस्का आरएन मीणा सहित अनेक अधिकारी मौजूद थे. कार्यशाला के पहले सत्र में एडवोकेट संजीव कारगवाल ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम से संबंधित विभिन्न अनुच्छेदों एवं नियमों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि जंगल में मानव व वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं के अतिक्रमण सहित कई कारण हैं. दो चरणों में यह कार्यशाला होगी. पहले चरण में 28 डीएफओ शामिल होंगे. यह चरण 1 मार्च व 2 मार्च को चल रहा है. जबकि, दूसरे चरण की कार्यशाला 8 व 9 मार्च को होगी.इसमें बचे हुए अन्य डीएफओ हिस्सा लेंगे.

पढ़ें: बाघों का कुनबा बढ़ने के साथ बढ़ेगी सरिस्का की खूबसूरती, जानें क्या हो रहे नवाचार

अतिक्रमण हटाने के लिए कानूनी प्रावधानों की जानकारी दी और बताया कि यदि किसी वन्यजीव को नुकसान पहुंचाया जाता है, तो किन-किन प्रावधानों में कार्रवाई हो सकती है. उन्होंने सीआरपीसी, आईपीसी व एवीडेंस एक्ट सहित आईटी एक्ट के बारे में जानकारी दी. जयपुर चिड़ियाघर से आए डॉ. अरविंद माथुर ने वन्यजीवों के व्यवहार, उन्हें ट्रेंक्युलाइज करने तथा रेस्क्यू करने संबंधी जानकारी दी. डॉ. माथुर ने डीएफओ को ट्रेंक्युलाइज गन का प्रशिक्षण भी दिया. प्रशिक्षण के बाद प्रतिभागियों ने सरिस्का भ्रमण किया. वन्यजीवों को ट्रेंक्युलाइज करने की प्रक्रिया के संबंध में प्रायोगिक प्रशिक्षण प्राप्त किया गया. अंतिम सत्र में डीएफओ सुदर्शन शर्मा ने सरिस्का में बाघ-बघेरों सहित अन्य जंगली जानवरों की निगरानी में अपनाई जा रही तकनीक के बारे में बताया.

प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्रुति शर्मा ने हाल ही विस्थापित पानी ढाल गांव के वन क्षेत्र का भ्रमण किया एवं विस्थापन क्षेत्र का जायजा लिया. वहां वन्यजीवों के आवास के विकास के निर्देश दिए, उन्होंने अलवर स्थित गुरु जी की कोठी राजस्थान वानिकी एवं वन्य जीवन प्रशिक्षण संस्थान तथा सरिस्का के वन क्षेत्र का दौरा किया. सरिस्का भ्रमण के दौरान बाघिन एसटी-2 एवं बाघ एसटी-6 दिखाई दिए. श्रुति शर्मा ने कहा कि लोगों को वन्य जीवो के प्रति डर निकालना होगा, इसके लिए वन विभाग व सरिस्का प्रशासन की तरफ से लोगों को जागरूक किया जाएगा. साथ ही, एहतियातन कई कदम उठाए जा रहे हैं. इसकी शुरुआत सरिस्का से की गई है. सरिस्का का जंगल अन्य जगहों से अलग है व बेहतर है. वन्यजीवों के लिए सरिस्का को अच्छा विकल्प माना गया है. डीएफओ व अधिकारी ट्रेंकुलाइज करने व रेस्क्यू करने में कई बार हिचकते हैं, इसलिए इस कार्यशाला के दौरान प्रैक्टिकली ट्रेनिंग भी सभी को दी जाएगी.

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