अलवर. जिले में रेमडेसिवीर इंजेक्शन मरीजों के लिए बड़ी परेशानी बन चुके हैं. सेंट्रलाइज व्यवस्था होने के कारण अब निजी मेडिकल दुकानों पर इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है. प्रत्येक जिले को जयपुर से इंजेक्शन मिलते हैं. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम को जयपुर जाना पड़ता है. कई इंजेक्शन मिल जाते है, लेकिन कई बार अलवर इंजेक्शन इशू नहीं होते हैं. ऐसे में अलवर में परेशान होते हैं. इतना ही नहीं प्रशासन की तरफ से इंजेक्शन जारी करने की प्रक्रिया लंबी कर दी गई है. नई व्यवस्थाएं हालात सुधारने की जगह मरीजों के लिए परेशानी बन चुकी हैं.
सोमवार को अलवर में इंजेक्शन खत्म हो गए थे, उसके बाद मंगलवार दोपहर बाद तक भी इंजेक्शन नहीं मिले. सेवानिवृत चिकित्सकों को भी इंजेक्शन नहीं मिल पा रहे हैं. अस्पताल के चिकित्सकों का कहना है कि प्रदेश के स्तर पर मांग बराबर भेजी जा रही है लेकिन, वहां से कम इंजेक्शन उपलब्ध हो पाते हैं. ऐसे में सैकड़ों मरीजों को इन्तजार करना पड़ता है. सरकारी और निजी अस्पतालों में करीब 500 से अधिक मरीज ऑक्सीजन पर हैं. उनमें से काफी मरीजों को रेमडेसिवर इंजेक्शन की जरूरत है. कुछ इंजेक्शन आते हैं, जो सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों के लग जाते हैं.
वहीं, जिला अस्पताल के कई चिकित्सक भी कोरोना पॉजिटिव आ चुके हैं. उनको भी रेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत पड़ी है. यही नहीं कुछ सेवानिवृत चिकित्सक भी अस्पताल में भर्ती हुए हैं. कुछ को एक इंजेक्शन लगा है. जबकि एक मरीज को छह इंजेक्शन लगते हैं.
जिले में इंजेक्शन की क्या है व्यवस्थासरकार में स्वास्थ्य विभाग की नई व्यवस्था के बाद मेडिकल दुकानों पर भी रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिल रहे हैं. प्राइवेट अस्पताल में भर्ती मरीजों को जिला स्तर पर बने सरकारी दवा भंडार केंद्र से इंजेक्शन लेने पड़ते हैं. इसके लिए प्रशासन की तरफ से दो समितियां बनाई गई हैं.
पढ़ें- सीकर में नई कोरोना गाइडलाइन की सख्ती से करवाई जा रही पालना
पहली समिति में 4 डॉक्टर हैं. इंजेक्शन के लिए एक फॉर्म भरकर प्राइवेट हॉस्पिटल को देना होता है. उसके साथ मरीज के इलाज की पर्ची, मरीज का आधार कार्ड अस्पताल का स्वीकृति पत्र देना पड़ता है. उसके बाद 4 डॉक्टरों की कमेटी यह फैसला लेती है कि मरीज को इंजेक्शन दिया जाना है या नहीं. समिति के फैसले के बाद फाइल दूसरी समिति के पास जाती है. दूसरी समिति में जिला कलेक्टर सीएमएचओ व पीएमओ रहते हैं. इनके अंतिम स्वीकृति के बाद मरीज को इंजेक्शन जारी किया जाता है. इस प्रक्रिया में खासा समय लगता है. इसके अलावा कई बार तो जरूरतमंद मरीजों को इंजेक्शन नहीं मिल पाते हैं.