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महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनीं पद्मश्री ऊषा चौमर...कभी मैला ढोकर करती थीं गुजारा, आज खुद दे रहीं रोजगार

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Published : Mar 7, 2022, 10:46 PM IST

Updated : Mar 7, 2022, 10:52 PM IST

पद्मश्री ऊषा चौमर आज लोगों के लिए एक मिसाल हैं. अतीत में जीवन के संघर्षों से गुजरकर सफलता के मुकाम तक पहुंच चुकी ऊषा आज महिला सशक्तिकरण (Usha Chaumar became an example of women empowerment) की आवाज हैं. दूसरे के घरों से मैला ढोने वाली ऊषा की जिंदगी जब बदली तब कई और महिलाओं के जीवन में भी नई आशा जाग उठी. ईटीवी भारत से खास बातचीत में ऊषा चौमर ने जीवन के हर पहलू पर बात की.

Padmashree Usha Chaumar latest news
पद्मश्री ऊषा चौमर

अलवर. पद्मश्री ऊषा चौमर आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. चुनौतियों और जीवन की संघर्ष भरी दुपहरी से गुजरने वाली ऊषा चौमर आज लोगों के लिए एक मिसाल हैं. हर कोई उनकी तारीफ करते हुए उनसे मिलने और बातचीत करने की ख्वाहिश रखता है. लेकिन ऐसा 18 साल पहले तक नहीं था. तब ऊषा चौमर घरों से मल उठाने का काम करती थी. लोग उनकी परछाई से भी दूर भागते थे. लेकिन पद्मश्री मिलने के बाद ऊषा चौमर (Usha Chaumar became an example of women empowerment) अब हर किसी के खास हैं.

ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए ऊषा चौमर ने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि 7 साल की उम्र से वो मैला ढोने का काम कर रही थी. 10 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी. ससुराल में यही काम करना पड़ा. काम से लौटने के बाद खाना खाने की इच्छा नहीं होती थी. मंदिर में घुसने की इजाजत नहीं थी. लोग छूआ छूत करते थे. लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है. 2003 से पहले मैला ढोने का काम किया.

पढ़ें. महिला दिवस पर विशेष... रेनवाल की भगवती देवी ने किडनी डोनेट कर पति को दिया जीवनदान...कहा निभाया है पत्नी धर्म

लेकिन इसके बाद वह सुलभ इंटरनेशनल संस्थान के संपर्क में आई. इसके बाद उषा ने खुद मैला ढोना छोड़ दिया. साथ ही अनेकों महिलाओं को मैला उठाने का काम छोड़ने के लिए प्ररित किया. 115 महिलाओं ने मैला का काम छोड़कर सिलाई, अचार बनाने, जैसे कामकाज सीखने के साथ दूसरी महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं. सुलभ इंटरनेशनल के एनजीओ नई दिशा ने उन्हें इस जिंदगी से आजादी दिलाई. ऊषा आज ऐसी सैकड़ों महिलाओं की आवाज हैं.

उषा मैला ढोने वाली महिलाओं की आवाज बनी इसलिए पद्मश्री मिला. उन्होंने कहा कि उनके पति मजदूरी करते हैं. तीन बच्चे हैं. दो बेटे और एक बेटी है. बेटी ग्रेजुएशन कर रही है और एक बेटा पिता के साथ ही मजदूरी करता है.

खाना नहीं खा पाती थीः ऊषा ने कई सालों तक मैला उठाने का काम किया. इस दौरान उनको अछूत का जीवन जीना पड़ा था. अपने इस काम को लेकर उन्हें इतना बुरा महसूस होता था कि कई बार वो काम से लौटने के बाद खाना तक नहीं खा पाती थी. लोग उन्हें छूते नहीं थे, न ही दुकान से सामान खरीदने देते थे. मंदिर और घरों तक में घुसने की इजाजात नहीं थी.

उषा ने कहा कि लोग हमें भी कचरे की तरह समझने लगे थे. उषा ने कहा कि वह एक मौके की तलाश में थी, जो उन्हें सुलभ इंटरनेशनल के एनजीओ नई दिशा ने दिया. इस संस्था ने उन्हें एक सम्मान की जिंदगी दी. जिसके बाद ऊषा ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. संस्था से जुड़ने के बाद उन्होंने सिलाई, आचार, बत्ती, जवे, मेंहदी तैयार करने जैसे काम सीखे व उनके हाथों के बने सामान आज लोग खरीदते हैं.

पढ़ें. समाज की दुत्कार, पिता की फटकार के बीच मां के सहारे ने बदल दी दुनिया...पैरा खिलाड़ी सोनिया ने खेल की दुनिया में बनाई खास पहचान

उन्होंने मैला ढोने जैसे काम के खिलाफ आवाज उठाई. घूम-घूमकर महिलाओं को प्रेरित भी किया. ऊषा अमेरिका, साउथ अफ्रीका सहित कई अन्य देशों में जा चुकी हैं. आज इस मुकाम पर पहुंचने के बाद ऊषा इसका श्रेय सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ.बिंदेश्वर पाठक को देती हैं.

महिला सशक्तिकरण की आवाज हैं ऊषाः ऊषा महिला सशक्तिकरण का एक उदाहरण बन के उभरी हैं. उन्होंने कहा कि महिला- बेटियों को घर से बाहर निकलना चाहिए. आत्मनिर्भर बनना चाहिए व पढ़ाई करनी चाहिए. महिलाएं सोचती हैं कि उनका काम केवल घर में रहना व घर का काम करना है. लेकिन ऐसा नहीं है महिलाएं घर से बाहर निकलती हैं तो उनको नई सोच मिलती है. जीवन में जीने के लिए कोई उम्मीद होनी चाहिए. महिला दिवस के मौके पर उन्होंने देश की सभी महिलाओं से पढ़ाई करने व घर से बाहर निकल कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की बात कही. उन्होंने कहा कि महिलाएं जो सोचती हैं वो जीवन में कर सकती हैं.

अलवर. पद्मश्री ऊषा चौमर आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. चुनौतियों और जीवन की संघर्ष भरी दुपहरी से गुजरने वाली ऊषा चौमर आज लोगों के लिए एक मिसाल हैं. हर कोई उनकी तारीफ करते हुए उनसे मिलने और बातचीत करने की ख्वाहिश रखता है. लेकिन ऐसा 18 साल पहले तक नहीं था. तब ऊषा चौमर घरों से मल उठाने का काम करती थी. लोग उनकी परछाई से भी दूर भागते थे. लेकिन पद्मश्री मिलने के बाद ऊषा चौमर (Usha Chaumar became an example of women empowerment) अब हर किसी के खास हैं.

ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए ऊषा चौमर ने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि 7 साल की उम्र से वो मैला ढोने का काम कर रही थी. 10 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी. ससुराल में यही काम करना पड़ा. काम से लौटने के बाद खाना खाने की इच्छा नहीं होती थी. मंदिर में घुसने की इजाजत नहीं थी. लोग छूआ छूत करते थे. लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है. 2003 से पहले मैला ढोने का काम किया.

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लेकिन इसके बाद वह सुलभ इंटरनेशनल संस्थान के संपर्क में आई. इसके बाद उषा ने खुद मैला ढोना छोड़ दिया. साथ ही अनेकों महिलाओं को मैला उठाने का काम छोड़ने के लिए प्ररित किया. 115 महिलाओं ने मैला का काम छोड़कर सिलाई, अचार बनाने, जैसे कामकाज सीखने के साथ दूसरी महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं. सुलभ इंटरनेशनल के एनजीओ नई दिशा ने उन्हें इस जिंदगी से आजादी दिलाई. ऊषा आज ऐसी सैकड़ों महिलाओं की आवाज हैं.

उषा मैला ढोने वाली महिलाओं की आवाज बनी इसलिए पद्मश्री मिला. उन्होंने कहा कि उनके पति मजदूरी करते हैं. तीन बच्चे हैं. दो बेटे और एक बेटी है. बेटी ग्रेजुएशन कर रही है और एक बेटा पिता के साथ ही मजदूरी करता है.

खाना नहीं खा पाती थीः ऊषा ने कई सालों तक मैला उठाने का काम किया. इस दौरान उनको अछूत का जीवन जीना पड़ा था. अपने इस काम को लेकर उन्हें इतना बुरा महसूस होता था कि कई बार वो काम से लौटने के बाद खाना तक नहीं खा पाती थी. लोग उन्हें छूते नहीं थे, न ही दुकान से सामान खरीदने देते थे. मंदिर और घरों तक में घुसने की इजाजात नहीं थी.

उषा ने कहा कि लोग हमें भी कचरे की तरह समझने लगे थे. उषा ने कहा कि वह एक मौके की तलाश में थी, जो उन्हें सुलभ इंटरनेशनल के एनजीओ नई दिशा ने दिया. इस संस्था ने उन्हें एक सम्मान की जिंदगी दी. जिसके बाद ऊषा ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. संस्था से जुड़ने के बाद उन्होंने सिलाई, आचार, बत्ती, जवे, मेंहदी तैयार करने जैसे काम सीखे व उनके हाथों के बने सामान आज लोग खरीदते हैं.

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उन्होंने मैला ढोने जैसे काम के खिलाफ आवाज उठाई. घूम-घूमकर महिलाओं को प्रेरित भी किया. ऊषा अमेरिका, साउथ अफ्रीका सहित कई अन्य देशों में जा चुकी हैं. आज इस मुकाम पर पहुंचने के बाद ऊषा इसका श्रेय सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ.बिंदेश्वर पाठक को देती हैं.

महिला सशक्तिकरण की आवाज हैं ऊषाः ऊषा महिला सशक्तिकरण का एक उदाहरण बन के उभरी हैं. उन्होंने कहा कि महिला- बेटियों को घर से बाहर निकलना चाहिए. आत्मनिर्भर बनना चाहिए व पढ़ाई करनी चाहिए. महिलाएं सोचती हैं कि उनका काम केवल घर में रहना व घर का काम करना है. लेकिन ऐसा नहीं है महिलाएं घर से बाहर निकलती हैं तो उनको नई सोच मिलती है. जीवन में जीने के लिए कोई उम्मीद होनी चाहिए. महिला दिवस के मौके पर उन्होंने देश की सभी महिलाओं से पढ़ाई करने व घर से बाहर निकल कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की बात कही. उन्होंने कहा कि महिलाएं जो सोचती हैं वो जीवन में कर सकती हैं.

Last Updated : Mar 7, 2022, 10:52 PM IST
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