अलवर. कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला देशभर में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. राजनीतिक पार्टियां बच्चों की मौत पर राजनीति कर आरोप-प्रत्यारोप कर रहीं हैं, लेकिन बच्चों के इलाज के नाम पर सरकारें कितनी संवेदनशील रहीं हैं. इसका एक उदाहरण है अलवर जिले का राजकीय राजीव गांधी सामान्य अस्पताल.
यह सरकारी अस्पताल दिखने में अच्छा खासा है. लेकिन अस्पताल की बिल्डिंग पर लिखे नाम को पढ़कर आप इसे सरकारी अस्पताल समझने की भूल नहीं करें. यह सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार अब भी सरकारी अस्पताल नहीं है. यह राजीव गांधी अस्पताल के केवल एक शिशु वार्ड में संचालित है.
गीतानंद शिशु अस्पताल के नाम के साथ ना स्टॉफ स्वीकृत है और ना ही सरकारी रिकॉर्ड में यह शिशु अस्पताल अंकित है. इस अस्पताल के भवन का उद्घाटन 6 सितंबर 2003 को हुआ था. तब से यह गीतानंद शिशु अस्पताल के रूप में संचालित भी हो रहा है, लेकिन सरकार से इस अस्पताल को मान्यता ही नहीं मिली है.
सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक यह अस्पताल नहीं बल्कि राजीव गांधी अस्पताल का शिशु वार्ड है. जिसके लिए मात्र 23 बेड स्वीकृत हैं और 18 लोगों का स्टाफ स्वीकृत है, लेकिन इस अस्पताल में वर्तमान में 73 बेड का अस्पताल संचालित हो रहा है और एफबीएनसी यूनिट भी चल रही है. यही नहीं अस्पताल में इमरजेंसी और आउटडोर भी चल रहा है, लेकिन आज तक इस अस्पताल को राज्य सरकार से अस्पताल के रूप में मान्यता नहीं मिली है.
बार-बार की गई मांग
शिशु अस्पताल को सरकारी मान्यता दिलाने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों के समय बार-बार मांग की गई, लेकिन सरकारों ने आज तक इस मांग को पूरा नहीं किया है.
सरकारी अस्पताल के रूप में मान्यता दिलाने की मांग
एक बार फिर पीएमओ सुनील चौहान ने श्रम मंत्री को पत्र लिखकर गीतानंद शिशु अस्पताल को सरकारी अस्पताल के रूप में मान्यता दिलाने की मांग की है. श्रम मंत्री टीकाराम जूली ने चिकित्सा मंत्री से मिलकर शिशु अस्पताल के रूप में मान्यता दिलाने का आश्वासन दिया है.
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सोनिया गांधी ने किया था उद्घाटन
नर्सिंग एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष शर्मा ने बताया, कि अस्पताल नियम विरुद्ध संचालित हो रहा है. मोहनलाल सिंधी ने बताया, कि 6 सितंबर 2003 को कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसका उद्घाटन किया था. तब से आज तक अस्पताल गलत संचालित हो रहा है. कई सरकार बदल गई और चिकित्सा मंत्री को ज्ञापन दिए गए, लेकिन आज तक इसको अस्पताल की मान्यता नहीं मिली. इसकी वजह से इस अस्पताल में स्टाफ और सुविधाएं नहीं हैं.