अलवर. अलवर जिला एनसीआर के अंतर्गत आता है. खास बात ये है कि जिले को एनसीआर में शामिल होने का फायदा मिलने के बजाए नुकसान (Drawbacks of Alwar coming under NCR) उठाना पड़ता है. एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के चलते आए दिन यहां औद्योगिक गतिविधियों पर रोक (industrial units affected in alwar) लगा दी जाती है. इसके अलावा प्रदूषण फैलाने वाले क्रशर ईंट-भट्ठे और अन्य धूल-मिट्टी फैलाने वाली गतिविधियों के कारण इस पर भी रोक लगा दी जाती है जिससे विकास कार्य प्रभावित होता है.
औद्योगिक गतिविधियों के बार-बार बंद होने से अलवर के लोगों का कामकाज भी प्रभावित होता है. एनसीआर में होने के कारण जिले में अन्य जगहों से महंगा पेट्रोल है. एनसीआर में 10 साल पुराने डीजल के वाहनों को बंद किया गया है. इसका नुकसान भी अलवर के ही लोगों को अधिक उठाना पड़ेगा.
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वर्ष 1986 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित किए गए थे. इसमें राजस्थान के अलवर, हरियाणा के गुड़गांव, पलवल, फरीदाबाद, रेवाड़ी, उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, मेरठ जिलों को एनसीआर में शामिल किया गया था. डेवलपमेंट के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का गठन हुआ था. भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए दिल्ली पर बढ़ते दबाव के कारण दिल्ली से सटे शहरों को डेवेलप करते हुए उनमें संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध कराने की योजना थी लेकिन एनसीआर प्लानिंग बोर्ड इसमें सफल नहीं हो सका.
अलवर एनसीआर के अन्य शहरों से दूर है इसलिए उसे इसका फायदा नहीं मिल पाया. प्रदेश सरकार और अलवर की डेवलपमेंट अथॉरिटी एनसीआर प्लानिंग बोर्ड से लोन लेकर विकास कार्य भी नहीं कर पाई. प्रदेश सरकार की तरफ से एनसीआर प्लानिंग बोर्ड को प्रस्ताव नहीं भेजे जाते हैं. ऐसे में अलवर को एनसीआर का फायदा नहीं मिलता है बल्कि नुकसान उठाना पड़ता है.
एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के चलते साल के अंत में दिवाली के मौके पर औद्योगिक गतिविधियों को बंद कर दिया जाता है. अलवर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी है इसलिए सबसे ज्यादा औद्योगिक इकाइयां भी यहीं है. एनसीआर में रोक के चलते औद्योगिक इकाइयों में कामकाज भी प्रभावित होता है. अलवर में अरावली पर्वतमाला है. इसलिए 350 से ज्यादा खनिज पट्टे आवंटित किए गए हैं. इन पर खनन गतिविधि भी होती है, लेकिन एनसीआर में रोक लगने पर यहां पर भी खनन कार्य रोक दिया जाता है. इससे हजारों लोग जुड़े हुए हैं. इसके अलावा अलवर क्षेत्र में होने वाले निर्माण और विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं.
एनसीआर के अतंर्गत आने के कारण अलवर में अन्य जगहों से महंगा पेट्रोल और डीजल मिलता है. अलवर के पड़ोसी राज्यों के शहरों में पेट्रोल और डीजल सस्ता है. इसलिए अलवर क्षेत्र के पेट्रोल पंप संचालकों को नुकसान होता है. आसपास से गुजरने वाले लोग अलवर को पार करने के बाद पेट्रोल भरवाते है लिए पास के राज्यों के शहरों में जाते हैं.
हाल ही में एनसीआर ने 10 साल पुराने डीजल वाहनों और 15 साल पुराने पेट्रोल-वाहनों के प्रयोग पर रोक लगा दी है. इसका नुकसान भी अलवर के लोगों को अधिक उठाना पड़ेगा क्योंकि वाहनों के रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाएंगे. अलवर में अन्य जगहों की तुलना में महंगे वाहन मिलते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां यूरो 6 व यूरो 7 जैसी नई तकनीक के वाहन मिलते हैं. इसके अलावा भी कई अन्य गतिविधियां एनसीआर के चलते अलवर में चलती है. इसका फायदा मिलने की जगह अलवर के लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
अलवर में हजारों औद्योगिक इकाई
अलवर जिले के छोटे-बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में करीब 25,000 से अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं जिनमें लाखों लोग काम करते हैं. अलवर एनसीआर में आता है. ऐसे में आए दिन बढ़ते प्रदूषण के चलते इन इकाइयों को भी बंद कर दिया जाता है. उनके संचालन पर भी रोक लगा दी जाती है. इसके चलते कामकाज प्रभावित होता है. इस कारण कई औद्योगिक इकाइयां पलायन भी कर चुकी हैं.
कई तरह के लगते हैं टैक्स
अलवर एनसीआर का हिस्सा है. ऐसे में जिले के लोगों को कई अतिरिक्त टैक्स भी चुकाने पड़ते हैं. ट्रांसपोर्ट की बात हो या अन्य गतिविधियों की सभी पर अलवर की जनता से ज्यादा टैक्स वसूला जाता है. जबकि अलवर से प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार को करोड़ों रुपए का टैक्स मिलता है.
पेट्रोल पंप संचालक और शराब के ठेका संचालकों को होता है नुकसान
हरियाणा और उत्तर प्रदेश सीमा पर पड़ने वाले पेट्रोल पंप और शराब ठेका संचालकों को खासा नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि शराब और पेट्रोल-डीजल यूपी और हरियाणा में राजस्थान से सस्ते हैं. ऐसे में सीमावर्ती क्षेत्रों में पेट्रोल पंप संचालक और शराब संचालकों को काफी नुकसान झेलना पड़ता है.