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खुद की पहचान बनाने के लिए पंचायती राज चुनाव में महिलाएं आजमा रहीं भाग्य

महिलाओं को भी सियासत अब धीरे-धीरे रास आने लगी है. ग्रामीण महिलाएं अब घूंघट के बंधन से बाहर आने लगी हैं, जिस तरह से पंचायती राज चुनाव का दौर शुरू हुआ है. इसमें महिलाएं भी अपना भाग्य आजमा रही हैं. महिलाएं अपनी पहचान बनाने के लिए पंचायती राज चुनाव में पूर्ण रूप से अपनी भागीदारी निभा रही हैं.

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महिलाओं को खुद की पहचान बनाने का मिला मौका
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Published : Dec 5, 2020, 12:52 PM IST

अजमेर. आमजन के बीच जाकर सेवा करने का जज्बा तो वहीं घूंघट प्रथा से बाहर निकलने की चुनौती से महिलाएं बाहर आने लगी हैं. अजमेर की कई महिलाएं राजनीतिक क्षेत्र में अपनी अलग ही पहचान बना चुकी हैं. घरों की चारदीवारी में सिमटी रहने वाली महिलाओं के जहन में अब सियासत की डगर पर चलने के जुनून में भी अपना अलग ही घर बना लिया है. अब महिलाएं राजनीति को भी कैरियर के रूप में देखने और समझने लगी हैं.

महिलाओं को खुद की पहचान बनाने का मिला मौका

जनता के बीच जाकर खुद को बताने और उन्हें समझाकर जनसेवा से जुड़ने का मकसद पूरा करने के लिए कुछ पंचायती राज चुनाव से शुरूआत कर रही हैं तो कुछ अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने की कोशिश कर रही हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि अजमेर जिला परिषद के चुनाव में भी इस बार महिला उम्मीदवार पुरुषों के मुकाबले अधिक देखी जा रही हैं.

यह भी पढ़ें: Special : Work From Home बढ़ा रहा मोटापा, सात महीने में बढ़ गया वजन...क्या कहते हैं एक्सपर्ट

जिला परिषद सदस्यों के चुनाव के तहत जिले में तीन चरणों का मतदान पूरा हो चुका है. लेकिन इन चुनावों में पुरुष महिलाओं से पीछे हैं. जिला परिषद के कुल 32 सीटों के लिए 77 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं, जिनमें पुरुषों की संख्या जहां 37 तो वहीं महिलाओं का आंकड़ा 40 है. कुछ वार्ड तो ऐसे हैं, जिनमें पुरुषों के लिए सीट आरक्षित है. उन्हें छोड़कर अन्य पर महिला उम्मीदवार भी खड़ी हुई हैं. पंचायती राज चुनाव में महिला उम्मीदवारों का बढ़ता रुझान राजनीति को एक नई दिशा देने के साथ ही संस्कारित करने की संभावना के रूप में भी देखा जा सकता है.

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नई राह में मुश्किलें कम नहीं

नई राह में मुश्किलें कम नहीं

पंचायती राज की राजनीति में महिलाओं के लिए नई राह है तो वहीं मुश्किलें भी कम नहीं हैं. आज भी कुछ महिला उम्मीदवार घूंघट प्रथा को साथ लिए हुए हैं. महिलाएं अपने से बड़ों के लिए और पारिवारिक, सामाजिक संस्कार के कारण घूंघट प्रथा से निकलने में भी उनके लिए एक चुनौती है. इसी के साथ परिजनों पर आश्रित न होकर खुद को ही निर्णायक बनने का हुनर भी दिखाने लगी हैं.

यह भी पढ़ें: 'घूंघट हमारी मजबूरी नहीं है, यह बुजुर्गों का सम्मान और राजस्थान की परंपरा है'

जिस तरह से पहले के जमाने में महिलाओं के घर से बाहर आने पर वह घूंघट हटाने पर जिस तरह से प्रतिबंध था तो वहीं अब महिलाएं भी धीरे-धीरे हर क्षेत्र में वह हर कार्य में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने लगी हैं. लेकिन यह बात सही है कि पंचायती राज चुनाव में ग्रामीण महिलाओं को अपना हुनर दिखाने का और अपनी पहचान दिखाने का एक मौका मिला है. कई महिला प्रत्याशी घूंघट में ही अपने क्षेत्रों में अपनी हिम्मत दिखाते हुए नजर आई हैं.

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हर क्षेत्र में महिलाएं बढ़-चढ़कर ले रहीं हिस्सा

राजनीति क्षेत्र के अलावा सरकारी क्षेत्र में भी महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगी हैं. हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पूर्ण रूप से देखी जा सकती है. प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी, राजस्व अधिकारी, जिला कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार जैसे कई अन्य जगहों पर भी महिलाओं की भागीदारी अधिक देखी जा रही है.

अजमेर. आमजन के बीच जाकर सेवा करने का जज्बा तो वहीं घूंघट प्रथा से बाहर निकलने की चुनौती से महिलाएं बाहर आने लगी हैं. अजमेर की कई महिलाएं राजनीतिक क्षेत्र में अपनी अलग ही पहचान बना चुकी हैं. घरों की चारदीवारी में सिमटी रहने वाली महिलाओं के जहन में अब सियासत की डगर पर चलने के जुनून में भी अपना अलग ही घर बना लिया है. अब महिलाएं राजनीति को भी कैरियर के रूप में देखने और समझने लगी हैं.

महिलाओं को खुद की पहचान बनाने का मिला मौका

जनता के बीच जाकर खुद को बताने और उन्हें समझाकर जनसेवा से जुड़ने का मकसद पूरा करने के लिए कुछ पंचायती राज चुनाव से शुरूआत कर रही हैं तो कुछ अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने की कोशिश कर रही हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि अजमेर जिला परिषद के चुनाव में भी इस बार महिला उम्मीदवार पुरुषों के मुकाबले अधिक देखी जा रही हैं.

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जिला परिषद सदस्यों के चुनाव के तहत जिले में तीन चरणों का मतदान पूरा हो चुका है. लेकिन इन चुनावों में पुरुष महिलाओं से पीछे हैं. जिला परिषद के कुल 32 सीटों के लिए 77 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं, जिनमें पुरुषों की संख्या जहां 37 तो वहीं महिलाओं का आंकड़ा 40 है. कुछ वार्ड तो ऐसे हैं, जिनमें पुरुषों के लिए सीट आरक्षित है. उन्हें छोड़कर अन्य पर महिला उम्मीदवार भी खड़ी हुई हैं. पंचायती राज चुनाव में महिला उम्मीदवारों का बढ़ता रुझान राजनीति को एक नई दिशा देने के साथ ही संस्कारित करने की संभावना के रूप में भी देखा जा सकता है.

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नई राह में मुश्किलें कम नहीं

नई राह में मुश्किलें कम नहीं

पंचायती राज की राजनीति में महिलाओं के लिए नई राह है तो वहीं मुश्किलें भी कम नहीं हैं. आज भी कुछ महिला उम्मीदवार घूंघट प्रथा को साथ लिए हुए हैं. महिलाएं अपने से बड़ों के लिए और पारिवारिक, सामाजिक संस्कार के कारण घूंघट प्रथा से निकलने में भी उनके लिए एक चुनौती है. इसी के साथ परिजनों पर आश्रित न होकर खुद को ही निर्णायक बनने का हुनर भी दिखाने लगी हैं.

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जिस तरह से पहले के जमाने में महिलाओं के घर से बाहर आने पर वह घूंघट हटाने पर जिस तरह से प्रतिबंध था तो वहीं अब महिलाएं भी धीरे-धीरे हर क्षेत्र में वह हर कार्य में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने लगी हैं. लेकिन यह बात सही है कि पंचायती राज चुनाव में ग्रामीण महिलाओं को अपना हुनर दिखाने का और अपनी पहचान दिखाने का एक मौका मिला है. कई महिला प्रत्याशी घूंघट में ही अपने क्षेत्रों में अपनी हिम्मत दिखाते हुए नजर आई हैं.

अजमेर में पंचायत चुनाव, पंचायती राज चुनाव 2020, पंचायती राज चुनाव में महिलाओं की भागीदारी, घूंघट के बंधन से बाहर निकल रहीं महिलाएं, हर क्षेत्र में हिस्सा ले रही महिलाएं, ajmer latest news,  राजनीति में महिलाएं, Women in politics, Women coming out of the veil
हर क्षेत्र में महिलाएं बढ़-चढ़कर ले रहीं हिस्सा

राजनीति क्षेत्र के अलावा सरकारी क्षेत्र में भी महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगी हैं. हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पूर्ण रूप से देखी जा सकती है. प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी, राजस्व अधिकारी, जिला कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार जैसे कई अन्य जगहों पर भी महिलाओं की भागीदारी अधिक देखी जा रही है.

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