अजमेर. देश में आज के समय में कोरोना की चपेट में लगभग हर व्यवसाय आ चुका है. चाहे वो छोटा व्यवसाय हो या फिर बड़ा, कोरोना की बढ़ती रफ्तार के कारण हर वर्ग के व्यवसाय की रफ्तार धीमी हो चुकी है. जिसके कारण व्यवसाय से जुड़े लोगों के सामने आर्थिक संकट की समस्या खड़ी हो गई है. अजमेर के रंगमंच कलाकारों पर भी कोरोना का असर दिखाई दे रहा है. देश में फैले कोरोना के कारण छोटे और बड़े पर्दे के कलाकारों के पास आज के समय में कोई काम नहीं है.
कहते हैं कि मनोरंजन के बिना जीवन नीरस है. जीवन में उत्साह और उमंग का रस घोलने के लिए मनोरंजन सभी के लिए आवश्यक है. वर्षों से मनोरंजन के लिए रंगमंच कला को लोग बेहद पसंद करते आए हैं. बड़े और छोटे पर्दे के दौर में भी रंगमंच कला की अपनी ही विशेषता रही है, लेकिन वैश्विक कोरोना महामारी ने रंगमंच कला पर ब्रेक लगा दिया है. रंगकर्मियों का रोजगार छिन गया है और उनके जीवन में उत्साह के रंग फीके पड़ गए हैं.
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कोरोना की चपेट में रंगमंच कलाकार...
कोरोना महामारी ने इंसान के स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि उसके रोजगार पर भी अटैक किया है. लॉकडाउन में हाथ पर हाथ धरे बैठे कई लोगों को अनलॉक 1 के बाद रोजगार पुनः मिल गया, लेकिन ऐसे कई लोग हैं जिनका आय का स्त्रोत कोरोना ने अनलॉक 1 के बाद भी बंद कर दिया है. रंगमंच पर अपने अभिनय कला से लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ने वाले रंगकर्मियों की जिंदगी के रंग भी कोरोना ने फीके कर दिये हैं. रंगमंच पर अभिनय से तालिया बटोरने वाले ये कलाकार इन विकट परिस्थितियों में भी अपने स्वाभिमान को जिंदा रखे हुए है.
बता दें कि अजमेर में 35 रंगकर्मी है. इनमें से कई कलाकार ऐसे है जो छोटे बड़े पर्दे के अलावा कई राज्यों में थिएटर कर चुके हैं. इनके अलावा 150 कलाकार ऐसे भी है जो नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से अपनी आजीविका चलाते हैं. रंगकर्मी कलाकार का सबसे बड़ा आय का स्त्रोत सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर होने वाले कार्यक्रम, एनजीओ, निजी संस्थाएं और विभिन्न सरकारी विभागों की ओर से चलाए जाने वाले जन जागरूकता कार्यक्रम होते हैं या प्राइवेट स्कूलों में उनके वाले कार्यक्रमो में बच्चों को रंग मंच की कला सिखाना है.
बिना दर्शकों के ये कला है अधूरी...
अजमेर के मशहूर थिएटर कलाकार राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि रंगमंच कला की परफॉर्मेंस सामूहिक कलाकारों के साथ होती है. वहीं, बिना दर्शकों के ये कला अधूरी है. कोरोना ने रंगकर्मियों की आजीविका छीन ली है. वहीं, वर्तमान हालातों को देखते हुए नहीं लगता कि आगामी कई महीनों तक रंग मंच के कलाकारों को अपनी आजीविका चलाने के लिए परफॉर्मेंस करने का मौका मिलेगा.
राजेन्द्र सिंह ने बताया कि बदलते हालातों में कई रंग कर्मियों को आर्थिक संकट में डाल दिया है. सरकार की और से थिएटर और नुक्कड़ नाटक के कलाकारों को कोई सहायता नहीं मिली है. अजमेर में 20 सालों से रंगमंच पर अपनी कला से अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके योबी जॉर्ज बताते है कि कोरोना ने रंग मंच के कलाकारों के जीवन को बदलकर रख दिया है. कला से आजीविका पर निर्भर कलाकारों को घर चलाने के लिए अन्य रोजगार ढूंढना पड़ रहा है.
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बिना काम के अजीविका कैसे चले...
उन्होंने बताया कि भविष्य में सरकारी विभागों और निजी संस्थाओं से कब काम मिलेगा फिलाल यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि भीड़ बिना परफॉर्मेंस नहीं और काम बिना आजीविका कैसे चले. जिनके पास आजीविका के लिए वैकल्पिक माध्यम है उनके लिए ठीक है, लेकिन जो कलाकार पूरी तरह से रंग मंच कला पर ही निर्भर थे उन्हें बहुत ही मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा है. सभी कलाकार इस पसोपेश में है कि अब क्या होगा.
देश में कोरोना ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया है. अनलॉक 1 के बाद भी रंग मंच के कलाकारों को कोई राहत नहीं है और आगे भी नहीं लगता कि रंग मंच कला से कलाकारों को कोरोना संक्रमण की वजह से काम मिलेगा. यही वजह है कि मंच पर अभिनय कला के माध्यम से भवनाओं के विभिन्न रंग बिखरने वाले इन कलाकारों के जीवन में उत्साह के रंग फीके पड़ गए है.