अजमेर. मैं रहूं या ना रहूं पर ये वादा है तुमसे मेरा कि मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा. कुछ ऐसे ही हौसले के साथ जंग-ए-आजादी में कूदे थे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अर्जुन लाल सेठी. अर्जुन लाल सेठी की देशभक्ति और अंग्रेजों से लोहा लेने की कहानी (freedom fighter Arjun Lal Sethi story) आज भी देशवासियों में जोश भरती है.
ब्रितानिया हुकूमत के समय राजस्थान में अजमेर ही केंद्र शासित प्रदेश था. यहां होने वाली हर गतिविधि की गूंज अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंचती थी. अजमेर के केसरगंज क्षेत्र में बना गोल चक्कर, देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए लड़ रहे क्रांतिकारियों की हर गतिविधियों का गवाह रहा है. महान क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी के अलावा स्थानीय नेताओं ने अजमेर में स्वतंत्रता आंदोलन की कमान संभाल रखी थी. एक बार अंग्रेजों के खिलाफ मीटिंग के दौरान गोल चक्कर पर गोली भी चली थी.
हिन्दू और मुस्लिमों के 2 बड़े धार्मिक स्थल पुष्कर का ब्रह्म मंदिर और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भी अजमेर में हैं. लिहाजा क्रांतिकारी श्रद्धालुओं के वेश में अजमेर आते और अपना प्रयोजन सिद्ध कर लौट जाते थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी अजमेर आकर रुके थे. चंद्रशेखर आजाद आथेड़ की बगीची स्थित पहाड़ी पर एक कुटिया में रहे थे. भगत सिंह भी ब्यावर आए थे.
राजस्थान में सशस्त्र क्रांति के कर्णधार अर्जुन लाल सेठी ने भी अजमेर में रहकर क्रांति की अलख जगाई. सेठी ने साल 1905 में बंगाल विभाजन का विरोध किया. साल 1907 में जैन शिक्षा सोसायटी नाम से अजमेर में एक स्कूल की स्थापना की. साल 1908 में इस स्कूल को जैन वर्धमान पाठशाला के नाम से जयपुर स्थानांतरित किया. इसका उद्देश्य युवकों को क्रांतिकारी प्रशिक्षण देना था. 12 दिसंबर 1912 को दिल्ली में गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग के जुलूस पर बम फेंकने वाले क्रांतिकारी जोरावर सिंह बारहट और प्रताप सिंह ने उनकी पाठशाला में ही प्रशिक्षित किए गए थे. सेठी ने ही इस बम कांड की योजना बनाई थी.
पढ़ें. अर्जुन राम की शौर्य गाथा, जिनके साहस के सामने घुटने टेक दिए थे दुश्मन
अजमेर में पहाड़ी पर एक गुप्त रास्ता था. इस गुप्त मार्ग के बीच एक बड़ी सी जगह थी, जहां क्रांतिकारी बम बनाया करते थे. अर्जुन लाल सेठी ने युवा क्रांतिकारियों को हर मोर्चे पर लड़ाई के लिए तैयार किया. 20 मार्च 1913 को क्रांतिकारियों के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से एक महंत की हत्या के केस में सेठी को जेल भेज दिया गया. 5 अगस्त 1914 को 5 साल की सजा हुई. साल 1920 में सेठी जेल से रिहा हुए और अजमेर को अपना स्थायी ठिकाना बना लिया.
पढ़ें. जिंदा है बॉर्डर फिल्म का असली हीरो भैरों सिंह, जांबाजी के लिए मेडल तो मिले लेकिन सुविधाएं नहीं
अर्जुन लाल सेठी ने साल 1922-23 में राजस्थान में अजमेर-मेरवाड़ा प्रांतीय कांग्रेस की बागडोर संभाली. बताया जाता है कि इस दौरान महात्मा गांधी स्वयं अर्जुन लाल सेठी से मिलने अजमेर पहुंचे थे. अर्जुन लाल सेठी की ज़िंदगी का आख़िरी वक्त गुमनामी में बीता. 3 दिसंबर 1941 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
अफसोस यह है कि अर्जुन लाल सेठी जैसे क्रांतिकारी की एक मूर्ति भी अजमेर में नहीं है. हालांकि उनके नाम से शहर के बाहर एक कॉलोनी जरूर विकसित हो चुकी है. अजमेर की धरा पर इस महान क्रांतिकारी का नाम बस एक बोर्ड पर लिखा हुआ है.