अजमेर. कोरोना वायरस से हुए लॉकडाउन के बाद गरीब श्रमिकों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. जैसे-तैसे पलायन कर सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय कर घरों को लौट रहे श्रमिकों को हर कदम पर अग्नि परीक्षा देनी पड़ रही है. वहीं अब जिलों की सीमा सील हो चुकी हैं. ऐसे में जिलों में फंसे श्रमिक रोड किनारे जीवन जीने को मजबूर हैं.
अजमेर में ऐसे सैकड़ों श्रमिक है. जिनके पास सिर छुपाने तक की जगह नहीं है. ऐसे में सड़क किनारे बेहाल श्रमिको के लिए शेल्टर होम और उन्हें दवा भोजन आदि की व्यवस्था करवाने के दावे खोखले साबित हो रहे हैं. अजमेर शास्त्री नगर चुंगी चौकी के पास राजकीय कुकुट प्रशिक्षण संस्था के बाहर सड़क के किनारे फुटपाथ पर जीवन बसर कर रहे करीब सवा सौ श्रमिक बारां जिले के हैं. अजमेर में बारां जिले के ही प्रभारी मंत्री प्रमोद जैन भाया है.
रोजी-रोटी कमाने निकले थे बाहर
ईटीवी भारत से बातचीत में श्रमिकों ने बताया कि रोजी-रोटी कमाने के लिए वे सभी नागौर जिले के डीडवाना में गए थे. जहां फसल कटाई का काम पूरा होने के बाद लॉकडाउन की वजह से वे वही अटक गए. जो कुछ पैसे थे वो उनके खाने पीने में खर्च हो गए. रोजगार और पैसा नहीं होने की वजह से मजबूरी के चलते उन्हें वापस अपने क्षेत्र बारां लौटना पड़ा. पैदल चलकर वो अजमेर लौट रहे हैं. श्रमिकों ने बताया कि दान दाता कुछ खाना दिन में एक बार देकर जाते हैं, जबकि प्रशासन की ओर से कोई भी व्यक्ति नहीं आया है. उन्होंने बताया कि उन्हें खाना नहीं चाहिए, उन्हें बस अपने गांव लौटना है.
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गौरतलब है कि सरकार के निर्देश पर जिले की सभी सीमाएं सील कर दी गई है. वहीं बेहाल श्रमिकों के लिए शेल्टर होम बनाने की व्यवस्था करने और श्रमिकों की स्क्रीनिंग के अलावा उनके भोजन और मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था करने के प्रशासन को निर्देश मिले थे. बावजूद इसके इन बेहाल श्रमिकों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जा रही.