प्रियांक शर्मा-अजमेर. धार्मिक पर्यटन नगरी अजमेर को कौन नहीं जानता! मंदिर से लेकर दरगाह शरीफ इसकी पहचान हैं (Railway In Ajmer). पहचान तो एक और है. जिसमें रेलवे का बहुत बड़ा योगदान है. जी हां, मीलों का सफर तय करती छुकछुक गाड़ी जिसकी वजह से हजारों लोग रोटी रोटी कमा रहे हैं और अजमेर के आर्थिक विकास को भी निरंतर गति प्रदान कर रहे हैं. रेलवे 10-20 साल से नहीं बल्कि पूरे 100 सालों से खास भूमिका इस शहर की तरक्की में अदा करती आई है. अजमेर में स्थापित रेल कारखाने और उत्तर पश्चिमी रेल कार्यालय इस संभाग के आर्थिक विकास के लिए वरदान साबित हुए हैं.
जरा इतिहास टटोलते हैं!: राजस्थान की हृदय स्थली खूबसूरत नगरी अजमेर की स्थापना अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पूर्वजों ने की थी. राजस्थान के ह्रदय में स्थित होने के कारण इस जिले का ऐतिहासिक, सामरिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक महत्व रहा है. चौहान वंश के बाद मुगल बादशाहों, मराठाओं और अंग्रेजों की भी पसंदीदा नगरी रही है अजमेर. संपूर्ण राजपूताने पर यहां से निगरानी रखना मुगल, मराठा और अंग्रेजों के लिए आसान था. यही वजह है कि मुगल, मराठाओं और अंग्रेज रियासतों के समय अजमेर का विकास हुआ. अंग्रेजी हुकूमत ने अजमेर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया. उस दौर में ही रेलवे के बड़े कारखाने स्थापित किए गए. यूपी के एक रेल कारखाने को इसमें मर्ज किया गया.
और देशभर से लोग आ बसे: कारखानों में रोजी रोटी की तलाश बहुतों को यहां ले आई. इनमें अवध के लोगों की संख्या ज्यादा थी. बाद में यूपी से बड़ी संख्या में लोग कारखाने में नौकरी करने के उद्देश्य से अजमेर आ बसे. इतना ही नहीं देश के कोने-कोने से रेलवे में काम करने के लिए अंग्रेज लोगों को यहां लाकर बसाते थे. यही वजह है कि सभी धर्म, जाति और प्रांत के लोगों के अजमेर में बसने के कारण इस जिले को मिनी इंडिया कहा जाने लगा.
खुल गया तरक्की का रास्ता: रेल कारखाने स्थापित होने के साथ रोजगार के आयाम बढ़ने लगे. अंग्रेजी हुकूमत ने रेलवे कारखाने के साथ ही कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की. चूंकि विभिन्न प्रांतों से लोग पधारे तो स्वास्थ्य को लेकर भी विशेष व्यवस्था की गई. उस दौर में चिकित्सा क्षेत्र में भी कई काम हुए. उत्तर भारत का सबसे बड़ा रेल कारखाना और उत्तर पश्चिमी रेलवे कार्यालय स्थापित होने से अजमेर में व्यापार बढ़ने लगा. आवागमन का साधन सुलभ हुआ लोग व्यापार के लिए यहां आने जाने लगे तो धार्मिक पर्यटन को भी पंख लग गए. इससे पर्यटन उद्योग भी फलने फूलने लगा.
तीर्थ नगरी खिल उठी: गंगा जमुनी तहजीब को भी नए मुकाम पर रेल ने ही पहुंचाया. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबका गहरा नाता रहा है यहां से. अजमेर का नाम लेते ही पुष्कर का जिक्र छिड़ता है. जगत पिता ब्रम्हा का एक मात्र स्थान तीर्थ गुरु पुष्कर सदियों से हिंदू धर्मानुयायियों के लिए बड़ी आस्था का केंद्र रहा है. यहां देश के कोने-कोने से लोग पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं विभिन्न श्रद्धास्थलों का दर्शन करते हैं. तीर्थ यात्रा के लिए भी यहां अजमेर होते हुए पहुंचा जा सकता है. 800 बरस पहले सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के अजमेर आने और यहीं पर रहकर दुनिया से पर्दा करने के बाद उनके चाहने वालों का भी दरगाह शरीफ पर आने का सिलसिला शुरू हो गया.
70 से अधिक ट्रेनें रुकती हैं यहां: देश में जब रेलवे का जाल फैलने लगा तब अजमेर को भी उसका फायदा मिलने लगा. अजमेर से देश के लगभग सभी राज्यों की कनेक्टिविटी बढ़ गई और बड़ी संख्या में हर दिन लोग बड़ी तादाद में यहां पहुंचने लगे. धार्मिक यात्रा के साथ लोग यहां व्यापार के सिलसिले में आने लगे. आज की तारीख में पुष्कर का टेक्सटाइल बिजनेस विश्व मानचित्र पर खास दखल रखता है. यहां के टेक्सटाइल को विश्व का 40 से अधिक देशों में काफी नाम और मान है. इन पटरियों ने कईयों की किस्मत खोल दी. होटल, रेस्त्रां, किशनगढ़ का मार्बल, ब्यावर सीमेंट के अलावा तमाम छोटे बड़े व्यवसायों ने यहां आंखे खोलीं, बड़े हुए और परिपक्व हुए. आज अजमेर में 70 से अधिक ट्रेनों का ठहराव है. इतना ही नही व्यापारिक दृष्टि से बड़ी संख्या में मालगाड़ी भी यहां रुकती हैं.
कैरिज और लोको कारखाने का स्वर्णिम इतिहास: अजमेर में 1853 में राजपूताना मालवा रेलवे मंडल की स्थापना हुई. 1876 में अंग्रेजों ने आगरा ईदगाह से रेल कारखाने को अजमेर में स्थापित कराया. उसे लोको कारखाने का नाम दिया गया. देश का पहला लोको इंजन 1895 में यहीं बना था. लोको कारखाने के 20 वर्ष बाद कैरिज कारखानों की स्थापना हुई. आज उत्तर भारत में रेलवे का सबसे बड़ा कारखाना अजमेर में ही है. लोको और कैरिज कारखाने के सीडब्ल्यूएम अशोक अबरोल स्वर्णिम इतिहास की कहानी सुनाते हैं- द्वितीय विश्व युद्ध के समय इन कारखानों में राइफल और बम के खोल भी बना करते थे. देश का पहला स्टीम इंजन भी यहीं गढ़ा गया. बाद में डीजल इंजन बनने लगे और अब इलेक्ट्रिक इंजन भी तैयार होने लगे हैं. कैरिज में कोच तैयार किये जाते हैं. पैलेस ऑन व्हील्स के कोच भी यहीं तैयार किए गए हैं. स्पष्ट है कि रेल ने अजमेर के आर्थिक हालातों को दुरुस्त करने में अहम किरदार अदा किया. कारखानों को सवा सदी से भी अधिक का वक़्त गुजर चुका है और समय के साथ इन कारखानों ने भी खुद को ढाल वक्त की रफ्तार के साथ चलना सिख लिया है.