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नई शिक्षा नीति के अंतर्गत MDSU में नए विषयों की शुरुआत, शुरू हुई प्रवेश प्रक्रिया

नई शिक्षा नीति के तहत अजमेर के महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी ने नए विषयों की शुरुआत की है. कुलपति प्रो. आरके सिंह ने कहा कि नए विषय विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होंगे. यूनिवर्सिटी में प्रवेश प्रक्रिया गुरुवार से शुरू हो गई है.

New education policy,  Maharishi Dayanand Saraswati University
महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी
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Published : Aug 6, 2020, 6:58 PM IST

अजमेर. जिले में महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी ने नई शिक्षा नीति को देखते हुए नए विषय शुरू किए हैं, जो विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होंगे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन विषयों से जुड़े विद्यार्थियों की डिग्री भी उपयोगी होगी. यूनिवर्सिटी के प्राचार्य आरके सिंह ने प्रेसवार्ता कर नई शिक्षा नीति में स्किल को महत्व दिए जाने और यूनिवर्सिटी में इसको लेकर नए विषय शुरू किए जाने को लेकर जानकारी दी. बता दें कि यूनिवर्सिटी में प्रवेश प्रक्रिया गुरुवार से शुरू हो गई है.

नई शिक्षा नीति के अंतर्गत MDSU में नए विषयों की शुरुआत

अजमेर में महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. आरके सिंह ने बताया कि विश्वभर में राजस्थान की संस्कृतिक विरासत सुविख्यात है. प्राचीन कलाओं ने दुनिया भर के कई विद्वानों और शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन हम अपनी कलाओं के अध्ययन प्रशिक्षण एवं शोध पर उतना ध्यान नहीं दे पा रहे हैं, जितना देना चाहिए था.

ललित कला संकाय में प्रोफेशनल पाठ्यक्रम की शुरुआत

अब यूनिवर्सिटी में भी ललित कलाओं के शिक्षण एवं प्रशिक्षण के लिए इस सत्र से ही ललित कला संकाय में 4 वर्षीय प्रोफेशनल पाठ्यक्रम की शुरुआत की है. इसमें बैचलर ऑफ विजुअल आर्ट एंड डिजाइन के पाठ्यक्रम में चित्रकला, मूर्तिकला व्यवसाय, कला एवं छाया कला शुरू किए गए हैं. उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति में ललित कला शिक्षा को सभी महाविद्यालयों में अनिवार्य करने का संकल्प लिया गया है. उन्होंने बताया कि राज्य के कला जगत में प्रोफेशनल कलाकारों की संख्या में वृद्धि हुई है. उम्मीद है कि इस नई पहल के बाद अजमेर के कला जगत में बड़े बदलाव आएंगे.

पढ़ें- सबसे आसान भाषा में समझें नई शिक्षा नीति का पूरा गणित, जानें कैसे होगा लागू, क्या होंगे बदलाव?

प्रोफेसर आरके सिंह ने बताया कि यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विभाग में बीएससी ऑनर्स इन एनवायरमेंट विषय की शुरुआत की जा रही है. इसमें 12वीं पास विद्यार्थी दाखिला ले सकेंगे. उन्होंने बताया कि इस पाठ्यक्रम के उपरांत कैरियर की असीम संभावना है, जिसमें सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों के विद्यार्थी भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्लेसमेंट ले सकते हैं.

सिंह ने बताया कि यूनिवर्सिटी में पहले से ही पर्यावरण में एमएससी डिप्लोमा इन इंडस्ट्रियल, पक्षी अध्ययन पर डिप्लोमा और सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं. इस पाठ्यक्रम में मॉड्यूलर लर्निंग स्कीम भी लागू की गई है. उन्होंने बताया कि जिले के किसानों एवं औद्योगिक क्षेत्रों के सहयोग के लिए पर्यावरण विभाग में शीघ्र ही मृदा जल एवं वायु परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भी स्थापित की जाएगी.

8 विषयों की विशेषज्ञता...

प्रोफेसर सिंह ने बताया कि सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग में संचालित एमएससी माइक्रोबायोलॉजी और एमएससी बायोटेक्नोलॉजी पाठ्यक्रम में वर्तमान में सर्वोत्तम माने जाने वाली च्वॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम की व्यवस्था लागू है. इस पाठ्यक्रम में 8 विषयों की विशेषज्ञता है. औद्योगिक सूक्ष्म जीव विज्ञान एवं जैव तकनीक पर्यावरण, सूक्ष्मजीव विज्ञान एवं मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, जैव ऊर्जा एवं जैव इंधन और फिजियोलॉजी के अतिरिक्त पर्यावरण के सूक्ष्म जीवों की विविधता, परिस्थितिक और आणविक जैविक के साथ अन्य किसी विषय में भी अपनी पसंद के कुछ अन्य विषय भी चुने जा सकेंगे.

सिंह ने बताया कि इस पाठ्यक्रम में मॉडलर लर्निंग (मल्टीपल एग्जिट एंड एंट्री) स्कीम भी लागू की गई है. इसके तहत यदि कोई छात्र किसी कारणवश पाठ्यक्रम पूरा नहीं कर सकता है तो जिस सेमेस्टर तक उसने सफलतापूर्वक परीक्षा उत्तीर्ण की है, वहां तक का प्रमाण पत्र प्रथम सेमेस्टर डिप्लोमा, द्वितीय सेमेस्टर डिप्लोमा और उच्च डिप्लोमा तृतीय सेमेस्टर प्राप्त कर सकता है. साथ ही 2 वर्ष में कभी भी वापस लौट कर आगे की पढ़ाई जारी रख सकता है.

पढ़ें- सीकर में SFI ने नई शिक्षा नीति का किया विरोध, जलाई प्रतियां

नवीन शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों की भूमिका को देखते हुए ही विद्यार्थियों के लिए उपयोगी पाठ्यक्रम की शुरुआत की जा रही है, ताकि ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों में स्कील डेवलपमेंट हो सके. इसकी शुरुआत एमडीएस यूनिवर्सिटी ने कर दी है.

नवीन शिक्षा नीति और विश्वविद्यालयों की भूमिका

  • संबद्धता एवं महाविद्यालय की परीक्षा संबंधी कार्यों में जाने वाली ऊर्जा बचेगी और विश्वविद्यालय फिर से ज्ञान सर्जन के केंद्र बनेंगे.
  • शोध आधारित ज्ञान सर्जन एवं अध्यापन शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाएगा.
  • विषय के चयन में बाध्यता समाप्त होने से अंतर विषयी शोध को बढ़ावा मिलेगा.
  • स्नातक स्तर पर शोध विद्यार्थी की रोजगार संभावनाएं बढ़ेगी.
  • एक ही नियामक आयोग होने से विभिन्न पाठ्यक्रमों में एकरूपता आएगी.
  • अकादमिक के साथ व्यवसायिक शिक्षा का समायोजन होगा.
  • नेशनल रिसर्च फंड की स्थापना से शोध परियोजनाओं को गति मिलेगी.

अजमेर. जिले में महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी ने नई शिक्षा नीति को देखते हुए नए विषय शुरू किए हैं, जो विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होंगे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन विषयों से जुड़े विद्यार्थियों की डिग्री भी उपयोगी होगी. यूनिवर्सिटी के प्राचार्य आरके सिंह ने प्रेसवार्ता कर नई शिक्षा नीति में स्किल को महत्व दिए जाने और यूनिवर्सिटी में इसको लेकर नए विषय शुरू किए जाने को लेकर जानकारी दी. बता दें कि यूनिवर्सिटी में प्रवेश प्रक्रिया गुरुवार से शुरू हो गई है.

नई शिक्षा नीति के अंतर्गत MDSU में नए विषयों की शुरुआत

अजमेर में महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. आरके सिंह ने बताया कि विश्वभर में राजस्थान की संस्कृतिक विरासत सुविख्यात है. प्राचीन कलाओं ने दुनिया भर के कई विद्वानों और शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन हम अपनी कलाओं के अध्ययन प्रशिक्षण एवं शोध पर उतना ध्यान नहीं दे पा रहे हैं, जितना देना चाहिए था.

ललित कला संकाय में प्रोफेशनल पाठ्यक्रम की शुरुआत

अब यूनिवर्सिटी में भी ललित कलाओं के शिक्षण एवं प्रशिक्षण के लिए इस सत्र से ही ललित कला संकाय में 4 वर्षीय प्रोफेशनल पाठ्यक्रम की शुरुआत की है. इसमें बैचलर ऑफ विजुअल आर्ट एंड डिजाइन के पाठ्यक्रम में चित्रकला, मूर्तिकला व्यवसाय, कला एवं छाया कला शुरू किए गए हैं. उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति में ललित कला शिक्षा को सभी महाविद्यालयों में अनिवार्य करने का संकल्प लिया गया है. उन्होंने बताया कि राज्य के कला जगत में प्रोफेशनल कलाकारों की संख्या में वृद्धि हुई है. उम्मीद है कि इस नई पहल के बाद अजमेर के कला जगत में बड़े बदलाव आएंगे.

पढ़ें- सबसे आसान भाषा में समझें नई शिक्षा नीति का पूरा गणित, जानें कैसे होगा लागू, क्या होंगे बदलाव?

प्रोफेसर आरके सिंह ने बताया कि यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विभाग में बीएससी ऑनर्स इन एनवायरमेंट विषय की शुरुआत की जा रही है. इसमें 12वीं पास विद्यार्थी दाखिला ले सकेंगे. उन्होंने बताया कि इस पाठ्यक्रम के उपरांत कैरियर की असीम संभावना है, जिसमें सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों के विद्यार्थी भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्लेसमेंट ले सकते हैं.

सिंह ने बताया कि यूनिवर्सिटी में पहले से ही पर्यावरण में एमएससी डिप्लोमा इन इंडस्ट्रियल, पक्षी अध्ययन पर डिप्लोमा और सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं. इस पाठ्यक्रम में मॉड्यूलर लर्निंग स्कीम भी लागू की गई है. उन्होंने बताया कि जिले के किसानों एवं औद्योगिक क्षेत्रों के सहयोग के लिए पर्यावरण विभाग में शीघ्र ही मृदा जल एवं वायु परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भी स्थापित की जाएगी.

8 विषयों की विशेषज्ञता...

प्रोफेसर सिंह ने बताया कि सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग में संचालित एमएससी माइक्रोबायोलॉजी और एमएससी बायोटेक्नोलॉजी पाठ्यक्रम में वर्तमान में सर्वोत्तम माने जाने वाली च्वॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम की व्यवस्था लागू है. इस पाठ्यक्रम में 8 विषयों की विशेषज्ञता है. औद्योगिक सूक्ष्म जीव विज्ञान एवं जैव तकनीक पर्यावरण, सूक्ष्मजीव विज्ञान एवं मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, जैव ऊर्जा एवं जैव इंधन और फिजियोलॉजी के अतिरिक्त पर्यावरण के सूक्ष्म जीवों की विविधता, परिस्थितिक और आणविक जैविक के साथ अन्य किसी विषय में भी अपनी पसंद के कुछ अन्य विषय भी चुने जा सकेंगे.

सिंह ने बताया कि इस पाठ्यक्रम में मॉडलर लर्निंग (मल्टीपल एग्जिट एंड एंट्री) स्कीम भी लागू की गई है. इसके तहत यदि कोई छात्र किसी कारणवश पाठ्यक्रम पूरा नहीं कर सकता है तो जिस सेमेस्टर तक उसने सफलतापूर्वक परीक्षा उत्तीर्ण की है, वहां तक का प्रमाण पत्र प्रथम सेमेस्टर डिप्लोमा, द्वितीय सेमेस्टर डिप्लोमा और उच्च डिप्लोमा तृतीय सेमेस्टर प्राप्त कर सकता है. साथ ही 2 वर्ष में कभी भी वापस लौट कर आगे की पढ़ाई जारी रख सकता है.

पढ़ें- सीकर में SFI ने नई शिक्षा नीति का किया विरोध, जलाई प्रतियां

नवीन शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों की भूमिका को देखते हुए ही विद्यार्थियों के लिए उपयोगी पाठ्यक्रम की शुरुआत की जा रही है, ताकि ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों में स्कील डेवलपमेंट हो सके. इसकी शुरुआत एमडीएस यूनिवर्सिटी ने कर दी है.

नवीन शिक्षा नीति और विश्वविद्यालयों की भूमिका

  • संबद्धता एवं महाविद्यालय की परीक्षा संबंधी कार्यों में जाने वाली ऊर्जा बचेगी और विश्वविद्यालय फिर से ज्ञान सर्जन के केंद्र बनेंगे.
  • शोध आधारित ज्ञान सर्जन एवं अध्यापन शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाएगा.
  • विषय के चयन में बाध्यता समाप्त होने से अंतर विषयी शोध को बढ़ावा मिलेगा.
  • स्नातक स्तर पर शोध विद्यार्थी की रोजगार संभावनाएं बढ़ेगी.
  • एक ही नियामक आयोग होने से विभिन्न पाठ्यक्रमों में एकरूपता आएगी.
  • अकादमिक के साथ व्यवसायिक शिक्षा का समायोजन होगा.
  • नेशनल रिसर्च फंड की स्थापना से शोध परियोजनाओं को गति मिलेगी.
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