अजमेर. बारिश के बाद पहाड़ों पर मिट्टी खिसकने से वहां बने मकानों को खतरा उत्पन्न हो गया है. इन पहाड़ियों पर अवैध रुप से मकान बन रहे हैं. वहीं एक पूरी बस्ती यहां बस चुकी है. बावजूद इसके प्रशासन और नगर निगम का कोई ध्यान नहीं है. जबकि मकान ढहने से लोगों को जान माल का नुकसान पहले भी हो चुका है.
इस बार छोटी नागफनी स्थित लक्ष्मी मोहल्ले में पहाड़ी पर कमरे का निर्माण हो रहा था. तेज बारिश के दौरान निर्माणाधीन मकान का मलबा नीचे स्थित एक अन्य मकान पर जा गिरा, जिससे दोनों ही मकान मलबे में तब्दील हो गए. निचले मकान में रह रहे अब्दुल हमीद उसकी पत्नी बेटी और नवासा मलबे में दब गए. मकान ढहने की सूचना मिलते ही एसडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंची. स्थानीय लोगों की मदद से रेस्क्यू का काम शुरू कर दिया. एसपी सरिता सिंह और एडीएम सिटी अरविंद सेंगवा सहित नगर निगम के कर्मचारी और अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. रेस्क्यू हादसे के बाद लगातार जारी है. लेकिन मलबे में अभी भी तीन लोग दबे हुए हैं, जिन्हें मलबा हटाकर निकालने की कोशिश की जा रही है.
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बता दें कि छोटी नागफनी का यह पूरा इलाका पहाड़ी पर बसा हुआ है. राजनीति के चलते यहां पर अवैध रुप से बसी कच्ची बस्ती में रहने वाले लोगों को अपने मकानों का अजमेर विकास प्राधिकरण ने पट्टा भी दे दिया है. जबकि हर साल बारिश के दिनों में पहाड़ियों पर बने मकानों में हादसे होते रहे हैं. बावजूद, इसके नगर निगम ने केवल सूचना और आधा देने के अलावा और कुछ नहीं किया. जबकि जिन मकानों को लेकर खतरा है. उन मकानों को चिन्हित कर वहां बसे लोगों को कई अन्य जगह बसाने की कोशिश प्रशासन ने कभी नहीं की. प्रशासनिक लापरवाही का यह बड़ा उदाहरण है.
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ऐसे में क्षेत्र के पार्षद कुंदन वैष्णव ने बताया कि नगर निगम ने ऐसे मकानों को चिन्हित नहीं किया. न ही प्रशासन ने कभी यहां बसी कच्ची बस्तियों को कहीं और जगह शिफ्ट करने के बारे में सोचा. वैष्णव ने कहा कि यही वजह है कि इस तरह के हादसे पहले भी होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे. यह और बात है कि इस बार हादसे में तीन लोगों पर संकट आ गया है.
घटनास्थल पर पहुंचे एडीएम सिटी अरविंद सेंगवा ने मौके का जायजा लिया. सेंगवा ने बताया कि प्रथम दृष्टया यह मामला कंस्ट्रक्शन क्वालिटी खराब होने से हादसा होना लग रहा है. उन्होंने कहा कि नगर निगम ने बारिश से पहले लोगों को चेताया था. प्रशासन और नगर निगम एक दूसरे की लापरवाही पर पर्दा डाल रहा है. जबकि स्पष्ट है कि पहाड़ों पर बने मकान न केवल अवैध हैं. बल्कि प्रशासनिक लापरवाही से यहां बस्तियां बस गई हैं. ऐसे में इन हादसों को रोक पाना अब प्रशासन के भी बस में नहीं रहा है.