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Ajay Devgan gets relief : अजमेर कंज्यूमर कोर्ट से अभिनेता अजय देवगन को मिली राहत, जानिए क्या है पूरा मामला...

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Published : May 24, 2022, 10:54 AM IST

Updated : May 24, 2022, 11:54 AM IST

बॉलीवुड अभिनेता अजय देवगन को अजमेर की कंज्यूमर कोर्ट से सोमवार को बड़ी राहत (Ajay Devgan gets relief from Ajmer consumer court) मिली है. कोर्ट ने 'दे दे प्यार दे' फिल्म के पोस्टर को लेकर अजय देवगन के खिलाफ दायर केस पर फैसला सुनाते हुए उन्हें निर्दोष बताया है. अजमेर के दर्शक तरुण अग्रवाल ने फिल्म के पोस्टर में दिखाए गए स्टंट सीन को फिल्म में नहीं दिखाने से खफा होकर देवगन के खिलाफ केस किया था.

Film actor Ajay Devgan gets relief
Film actor Ajay Devgan gets relief

अजमेर. पोस्टर में दिखाए गए सीन को फिल्म में नहीं दिखाने के लिए अभिनेता जिम्मेदार नहीं हैं. जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग अजमेर ने ऐसे ही एक प्रकरण में फिल्म अभिनेता अजय देवगन को 'दे दे प्यार दे' फिल्म के पोस्टर में दिखाए गए स्टंट सीन को फिल्म में नहीं दिखाने के लिए जिम्मेदार नहीं माना और उसे परिवाद में से पक्षकार के रूप से हटाने के आदेश (Ajay Devgan gets relief from Ajmer consumer court) दिए हैं.

मामले के अनुसार परिवादी तरुण अग्रवाल ने उपभोक्ता आयोग में इस आशय का एक परिवाद प्रस्तुत किया कि वह लव प्रोडक्शन निर्मित मूवी 'दे दे प्यार दे' के पोस्टर में बताए गए स्टंट सीन को देखकर फिल्म देखने गया था, लेकिन फिल्म के पोस्टर में बताया गया सीन फिल्म में नहीं था. परिवादी अग्रवाल ने इसके लिए लव फिल्मस प्रोडक्शन, अभिनेता अजय देवगन और माया मंदिर सिनेमा को भ्रामक विज्ञापन दिखाने के लिए जिम्मेदार बताया था. साथ ही व्यापक खंडन जारी करने, भविष्य में ऐसे भ्रामक विज्ञापन जारी नहीं करने और भ्रामक विज्ञापन और अनुचित व्यापार व्यवहार से उसे पहुंची मानसिक एवं आर्थिक क्षति के बतौर 4 लाख 51 हजार रुपए और परिवाद खर्च के 11 हजार दिलाने की मांग की थी. परिवादी अग्रवाल का नोटिस मिलने के बाद फिल्म अभिनेता अजय देवगन ने वकील अमित गांधी और प्रांजुल चोपड़ा के जरिए उपभोक्ता आयोग में एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर उसे परिवाद में से हटाने की प्रार्थना की थी.

पढ़ें- सहारा इंडिया के मालिक सुब्रत राय को 'सुप्रीम' राहत, SC ने गिरफ्तारी वारंट पर लगाई रोक

फिल्म के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी अभिनेता की नहीं- अभिनेता अजय देवगन की ओर से तर्क दिया गया कि उसने 'दे दे प्यार दे' फिल्म में केवल मात्र अभिनय किया है. फिल्म के प्रचार प्रसार के लिए वह जिम्मेदार नहीं है. उसे अनुचित रुप से पक्षकार बनाया गया है. अभिनेता की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि परिवादी ने प्रतिफल देकर उससे किसी प्रकार की सेवाएं नहीं ली है. इसलिए परिवादी उसका उपभोक्ता नहीं है. अजय देवगन के वकील का तर्क था कि भ्रामक विज्ञापन के लिए परिवादी को केंद्रीय उपभोक्ता प्राधिकरण में शिकायत करनी चाहिए थी. इसके विपरीत परिवादी का तर्क था कि अभिनेता अजय देवगन ने यह जानते हुए कि यह दृश्य फिल्म में नहीं है उसके बावजूद उसने पोस्टर को फिल्म के मुख्य विज्ञापन के तौर पर सोशल मीडिया व अन्य प्लेटफार्म पर प्रचारित किया है. इसलिए वह भ्रामक विज्ञापन के लिए जिम्मेदार हैं.

बिना आधार के बनाया पक्षकार- उपभोक्ता आयोग अजमेर के अध्यक्ष रमेश कुमार शर्मा और सदस्य दिनेश चतुर्वेदी ने दोनों पक्षों की बहस सुनकर अपने निर्णय में लिखा कि अजय देवगन केवल अभिनेता मात्र हैं. संबंधित फिल्म में कौन सा सीन रखना है, कौन सा काटना है, किस प्रकार के होर्डिंग लगाने हैं, किस प्रकार अखबार में उसका विज्ञापन प्रकाशित कराना है, इन सब बातों के लिए फिल्म अभिनेता का कोई लेना देना नहीं होता है. परिवादी ने उसे बिना आधार के पक्षकार बनाया है.

आयोग ने निर्णय में लिखा कि सीपीसी के आदेश 1 नियम 10 (दो) के प्रावधान की रोशनी में अभिनेता अजय देवगन का प्रार्थना पत्र स्वीकार किया. उसे परिवाद में से पक्षकार के बतौर हटाए जाने के आदेश दिए जाते हैं. आयोग ने 14 दिन के भीतर परिवादी को संशोधित परिवाद शीर्षक प्रस्तुत करने के आदेश भी दिए.

अजमेर. पोस्टर में दिखाए गए सीन को फिल्म में नहीं दिखाने के लिए अभिनेता जिम्मेदार नहीं हैं. जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग अजमेर ने ऐसे ही एक प्रकरण में फिल्म अभिनेता अजय देवगन को 'दे दे प्यार दे' फिल्म के पोस्टर में दिखाए गए स्टंट सीन को फिल्म में नहीं दिखाने के लिए जिम्मेदार नहीं माना और उसे परिवाद में से पक्षकार के रूप से हटाने के आदेश (Ajay Devgan gets relief from Ajmer consumer court) दिए हैं.

मामले के अनुसार परिवादी तरुण अग्रवाल ने उपभोक्ता आयोग में इस आशय का एक परिवाद प्रस्तुत किया कि वह लव प्रोडक्शन निर्मित मूवी 'दे दे प्यार दे' के पोस्टर में बताए गए स्टंट सीन को देखकर फिल्म देखने गया था, लेकिन फिल्म के पोस्टर में बताया गया सीन फिल्म में नहीं था. परिवादी अग्रवाल ने इसके लिए लव फिल्मस प्रोडक्शन, अभिनेता अजय देवगन और माया मंदिर सिनेमा को भ्रामक विज्ञापन दिखाने के लिए जिम्मेदार बताया था. साथ ही व्यापक खंडन जारी करने, भविष्य में ऐसे भ्रामक विज्ञापन जारी नहीं करने और भ्रामक विज्ञापन और अनुचित व्यापार व्यवहार से उसे पहुंची मानसिक एवं आर्थिक क्षति के बतौर 4 लाख 51 हजार रुपए और परिवाद खर्च के 11 हजार दिलाने की मांग की थी. परिवादी अग्रवाल का नोटिस मिलने के बाद फिल्म अभिनेता अजय देवगन ने वकील अमित गांधी और प्रांजुल चोपड़ा के जरिए उपभोक्ता आयोग में एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर उसे परिवाद में से हटाने की प्रार्थना की थी.

पढ़ें- सहारा इंडिया के मालिक सुब्रत राय को 'सुप्रीम' राहत, SC ने गिरफ्तारी वारंट पर लगाई रोक

फिल्म के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी अभिनेता की नहीं- अभिनेता अजय देवगन की ओर से तर्क दिया गया कि उसने 'दे दे प्यार दे' फिल्म में केवल मात्र अभिनय किया है. फिल्म के प्रचार प्रसार के लिए वह जिम्मेदार नहीं है. उसे अनुचित रुप से पक्षकार बनाया गया है. अभिनेता की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि परिवादी ने प्रतिफल देकर उससे किसी प्रकार की सेवाएं नहीं ली है. इसलिए परिवादी उसका उपभोक्ता नहीं है. अजय देवगन के वकील का तर्क था कि भ्रामक विज्ञापन के लिए परिवादी को केंद्रीय उपभोक्ता प्राधिकरण में शिकायत करनी चाहिए थी. इसके विपरीत परिवादी का तर्क था कि अभिनेता अजय देवगन ने यह जानते हुए कि यह दृश्य फिल्म में नहीं है उसके बावजूद उसने पोस्टर को फिल्म के मुख्य विज्ञापन के तौर पर सोशल मीडिया व अन्य प्लेटफार्म पर प्रचारित किया है. इसलिए वह भ्रामक विज्ञापन के लिए जिम्मेदार हैं.

बिना आधार के बनाया पक्षकार- उपभोक्ता आयोग अजमेर के अध्यक्ष रमेश कुमार शर्मा और सदस्य दिनेश चतुर्वेदी ने दोनों पक्षों की बहस सुनकर अपने निर्णय में लिखा कि अजय देवगन केवल अभिनेता मात्र हैं. संबंधित फिल्म में कौन सा सीन रखना है, कौन सा काटना है, किस प्रकार के होर्डिंग लगाने हैं, किस प्रकार अखबार में उसका विज्ञापन प्रकाशित कराना है, इन सब बातों के लिए फिल्म अभिनेता का कोई लेना देना नहीं होता है. परिवादी ने उसे बिना आधार के पक्षकार बनाया है.

आयोग ने निर्णय में लिखा कि सीपीसी के आदेश 1 नियम 10 (दो) के प्रावधान की रोशनी में अभिनेता अजय देवगन का प्रार्थना पत्र स्वीकार किया. उसे परिवाद में से पक्षकार के बतौर हटाए जाने के आदेश दिए जाते हैं. आयोग ने 14 दिन के भीतर परिवादी को संशोधित परिवाद शीर्षक प्रस्तुत करने के आदेश भी दिए.

Last Updated : May 24, 2022, 11:54 AM IST
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