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देश और दुनिया तक पहुंच रही है अजमेर के सोहन हलवे की मिठास

सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के 808वें उर्स की महफिल समां गुस्ल का सिलसिला सोमवार रात से शुरू हो गया. ऐसे में दरगाह के पास तो कई खाने-पीने की चीजे हैं. जिनमें से एक है 'सोहन हलवा'. बता दें कि सोहन हलवा दरगाह में आने वालों की खास पसंद में से एक है.

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जायरीनों की पहली पसंद है अजमेर का सोहन हलवा
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Published : Feb 29, 2020, 3:10 PM IST

अजमेर. प्रदेश का अजमेर शहर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के लिए जाना जाता है. वहीं अगर खान पाने की बात करें तो भी अजमेर जिला कम नहीं है. बता दें कि अजमेर में मिलने वाले सोहन हलवे की मिठास देश और दुनिया में फैल रही है. यही नहीं ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह आने वाले जायरीन लौटते वक्त सोहन हलवे को प्रसाद के रूप में ले जाते हैं और रिश्तेदारों में बांटते हैं.

क्यों है खास

अजमेर के सोहन हलवे की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह महीनों तक खराब नहीं होता. जबकि दूसरी मिठाइयां कुछ दिनों में खराब हो जाती है. अजमेर में सोहन हलवे की सैकड़ों दुकानें हैं. जिनमें ज्यादातर दुकाने दरगाह क्षेत्र में है. दरगाह आने वाले जायरीन वापस अपने घर लौटते वक्त अपने परिवार और रिश्तेदारों के लिए सोहन हलवा ले जाते हैं. जायरीन के लिए सोहन हलवे की दुकानें देर रात तक खुली रहती हैं.

जायरीनों की पहली पसंद अजमेर का सोहन हलवा

मुंह में जाते ही घुल जाता सख्त सोहन हलवा

दुकानदार बताते है कि अजमेर में सोहन हलवे की कई फैक्ट्रियां है, जहां सोहन हलवा बनता है. उसके बाद उसे बेचने के लिए दुकान पर लाया जाता हैं. सोहन हलवे के स्वाद की बात करें तो दिखने और छूने में सख्त सोहन हलवा मुंह में जाते ही घुल जाता है. सोहन हलवे की एक और खास बात यह है कि इसको खाने से शरीर में स्फूर्ति आती है और यह भूख को भी शांत करता है.

यह भी पढे़ं- अजमेर: भारी सुरक्षा के बीच ख्वाजा की नगरी पहुंचा 212 पाक जायरीनों का जत्था

दुकानदार बताते है कि सोहन हलवे में आटा या मैदा, घी, शक्कर, मेवे के साथ ग्लूकोज मिला कर बनाया जाता है. बाजार में सोहन हलवा 150 रुपए प्रतिकिलो से लेकर 500 रुपए किलो तक मिलता है. अजमेर में सोहन हलवा कब से बनना शुरू हुआ इसको लेकर जितने मुंह उतनी बाते हैं, लेकिन उन बातों में एक समान बात यह है कि सोहन हलवा खास है.

बता दें कि सदियों पहले जब लोग लंबी यात्राएं करते थे. उस वक्त सोहन हलवे को अपने साथ रखते थे. ताकि सोहन हलवा खराब ना और यात्रा के दौरान शरीर को ऊर्जा मिलती रहे. बताया जाता है कि बादशाह अकबर जब अजमेर आए थे तब उनके लश्कर में भी सोहन हलवा भोजन के रूप में हुआ करता था.

अजमेर. प्रदेश का अजमेर शहर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के लिए जाना जाता है. वहीं अगर खान पाने की बात करें तो भी अजमेर जिला कम नहीं है. बता दें कि अजमेर में मिलने वाले सोहन हलवे की मिठास देश और दुनिया में फैल रही है. यही नहीं ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह आने वाले जायरीन लौटते वक्त सोहन हलवे को प्रसाद के रूप में ले जाते हैं और रिश्तेदारों में बांटते हैं.

क्यों है खास

अजमेर के सोहन हलवे की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह महीनों तक खराब नहीं होता. जबकि दूसरी मिठाइयां कुछ दिनों में खराब हो जाती है. अजमेर में सोहन हलवे की सैकड़ों दुकानें हैं. जिनमें ज्यादातर दुकाने दरगाह क्षेत्र में है. दरगाह आने वाले जायरीन वापस अपने घर लौटते वक्त अपने परिवार और रिश्तेदारों के लिए सोहन हलवा ले जाते हैं. जायरीन के लिए सोहन हलवे की दुकानें देर रात तक खुली रहती हैं.

जायरीनों की पहली पसंद अजमेर का सोहन हलवा

मुंह में जाते ही घुल जाता सख्त सोहन हलवा

दुकानदार बताते है कि अजमेर में सोहन हलवे की कई फैक्ट्रियां है, जहां सोहन हलवा बनता है. उसके बाद उसे बेचने के लिए दुकान पर लाया जाता हैं. सोहन हलवे के स्वाद की बात करें तो दिखने और छूने में सख्त सोहन हलवा मुंह में जाते ही घुल जाता है. सोहन हलवे की एक और खास बात यह है कि इसको खाने से शरीर में स्फूर्ति आती है और यह भूख को भी शांत करता है.

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दुकानदार बताते है कि सोहन हलवे में आटा या मैदा, घी, शक्कर, मेवे के साथ ग्लूकोज मिला कर बनाया जाता है. बाजार में सोहन हलवा 150 रुपए प्रतिकिलो से लेकर 500 रुपए किलो तक मिलता है. अजमेर में सोहन हलवा कब से बनना शुरू हुआ इसको लेकर जितने मुंह उतनी बाते हैं, लेकिन उन बातों में एक समान बात यह है कि सोहन हलवा खास है.

बता दें कि सदियों पहले जब लोग लंबी यात्राएं करते थे. उस वक्त सोहन हलवे को अपने साथ रखते थे. ताकि सोहन हलवा खराब ना और यात्रा के दौरान शरीर को ऊर्जा मिलती रहे. बताया जाता है कि बादशाह अकबर जब अजमेर आए थे तब उनके लश्कर में भी सोहन हलवा भोजन के रूप में हुआ करता था.

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