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'ईद-उल-अजहा' पर कोरोना हावी, बकरों की खरीद में आई भारी गिरावट - corona effect on Bakrid

ईद-उल-अजहा यानी बकरीद एक अगस्त को मनाया जाएगा. लेकिन यह पर्व भी कोरोना की भेंट चढ़ चुका है. अजमेर में बाजार खाली पड़े हुए हैं. जहां हर साल लाखों की तादाद में बकरे बेचने के लिए लोग बाहर से आते थे वहीं इस साल मंडी में कहीं भी रौनक नजर नहीं आ रही है.

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ईद-उल-अजहा पर कोरोना का ग्रहण
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Published : Jul 30, 2020, 12:02 PM IST

अजमेर. कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है. इसका असर अब त्योहारों पर भी दिखने लगा है. कोविड-19 की वजह से सभी त्योहारों की रौनक फीकी पड़ गई है. मुसलमानों का खास त्योहार ईद-उल-अजहा यानी बकरीद एक अगस्त को मनाया जाएगा. इस बार कोरोना का प्रभाव ईद-उल-अजहा पर भी नजर आ रहा है. अजमेर के दौराई स्थित बकरा मंडी में इस बार कोरोना की मार से बाजार खाली पड़े हुए हैं.

ईद-उल-अजहा पर कोरोना का ग्रहण

अजमेर की बकरा मंडी में टोंक, जोधपुर, मुंबई और उत्तर प्रदेश से बकरे बेचने के लिए आते हैं, लेकिन इस बार कोरोना के मार के कारण लोग कम ही आ रहे हैं. इस बार ईद-उल-अजहा का पर्व कोरोना की भेंट चढ़ चुका है. वहीं, खरीददारी में भी भारी गिरावट आई है. जो बकरे पिछले साल 30 हजार से 40 हजार तक में बिक जाया करते थे आज वही बकरे मात्र 10 हजार से 15 हजार में बिक रहे हैं.

यह भी पढ़ें : COVID-19: प्रदेश में 9 मौतें और 365 नए मामले, कुल आंकड़ा 40 हजार के पार

अजमेर के बाजार में काफी किस्मों के बकरे मौजूद रहते हैं. कद, लम्बाई और बड़े-बड़े कानों वाले बकरों की डिमांड सबसे अधिक रहती है, जिसमें तुर्की और दुम्बे नस्ल के बकरों को लोग अत्यधिक पसंद करते हैं. लेकिन इस बार बकरा मंडी में ईद की रौनक नहीं दिखाई दे रही है.

क्यों मनाई जाती है बकरीद...

इस्लाम मजहब की मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी. हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे. लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया. अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी. कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा. इसलिए ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है.

अजमेर. कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है. इसका असर अब त्योहारों पर भी दिखने लगा है. कोविड-19 की वजह से सभी त्योहारों की रौनक फीकी पड़ गई है. मुसलमानों का खास त्योहार ईद-उल-अजहा यानी बकरीद एक अगस्त को मनाया जाएगा. इस बार कोरोना का प्रभाव ईद-उल-अजहा पर भी नजर आ रहा है. अजमेर के दौराई स्थित बकरा मंडी में इस बार कोरोना की मार से बाजार खाली पड़े हुए हैं.

ईद-उल-अजहा पर कोरोना का ग्रहण

अजमेर की बकरा मंडी में टोंक, जोधपुर, मुंबई और उत्तर प्रदेश से बकरे बेचने के लिए आते हैं, लेकिन इस बार कोरोना के मार के कारण लोग कम ही आ रहे हैं. इस बार ईद-उल-अजहा का पर्व कोरोना की भेंट चढ़ चुका है. वहीं, खरीददारी में भी भारी गिरावट आई है. जो बकरे पिछले साल 30 हजार से 40 हजार तक में बिक जाया करते थे आज वही बकरे मात्र 10 हजार से 15 हजार में बिक रहे हैं.

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अजमेर के बाजार में काफी किस्मों के बकरे मौजूद रहते हैं. कद, लम्बाई और बड़े-बड़े कानों वाले बकरों की डिमांड सबसे अधिक रहती है, जिसमें तुर्की और दुम्बे नस्ल के बकरों को लोग अत्यधिक पसंद करते हैं. लेकिन इस बार बकरा मंडी में ईद की रौनक नहीं दिखाई दे रही है.

क्यों मनाई जाती है बकरीद...

इस्लाम मजहब की मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी. हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे. लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया. अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी. कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा. इसलिए ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है.

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