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स्पेशल स्टोरी: तीर्थ राज पुष्कर ही है सृष्टि की चेतना माता गायत्री का उद्भव स्थान...यहीं पर ब्रह्मा ने की थी गायत्री मंत्र की रचना - अजमेर समाचार

विश्व में इकलौता जगत पिता ब्रह्मा का स्थान पुष्कर है. जगत पिता ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता माना जाता है. वहीं ब्रह्मा की पत्नी सावित्री भौतिक सृष्टि एवं ब्रह्मा की दूसरी पत्नी गायत्री को सृष्टि में चेतन की अधिष्ठात्री माना जाता है. मान्यता है कि जब-जब सृष्टि का अंत हुआ है, तब-तक पुष्कर से ही सृष्टि का पुनः निर्माण ब्रह्मा ने किया है. देखिए पुष्कर से स्पेशल रिपोर्ट

Pushkar Brahma temple, Brahma composed Gayatri Mantra,
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Published : Nov 12, 2019, 7:40 PM IST

Updated : Nov 13, 2019, 11:52 AM IST

अजमेर. जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. यह वही पुष्कर है जहां ब्रह्मा ने सृष्टि यज्ञ किया था और यज्ञ से पहले गायत्री मंत्र की रचना की थी. गायत्री मंत्र को ही सावित्री मंत्र भी माना जाता है.

शास्त्रों के अनुसार गायत्री माता गोप कन्या थी. सृष्टि यज्ञ में जब माता सावित्री को आने में विलंब हुआ तब ब्रह्मा ने गोप कन्या से विवाह कर सृष्टि यज्ञ किया. बताया जाता है कि इससे रुष्ट होकर सावित्री माता ने ब्रह्मा सहित उन सभी देवताओं को श्राप दे दिया. तब ब्रह्मा ने ही अपने कमंडल से जल छिड़ककर श्राप विमोचनी को उद्भव किया. श्राप विमोचनी गायत्री ही है, जो वर्तमान में मर्यादा पर्वत पर विराजमान होकर पाप विमोचनी से विख्यात है.

स्पेशल स्टोरी: तीर्थ राज पुष्कर ही है सृष्टि की चेतना माता गायत्री का उद्भव स्थान

पढ़ें- खास रिपोर्ट: कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक पुष्कर में होता है देवताओं का वास, जानिए क्या है मान्यता

सबसे पहले यज्ञ की परंपरा हुई शुरु
शास्त्रों के मुताबिक पुष्कर में ही सबसे पहले यज्ञ की परंपरा शुरु हुई थी. मान्यता यह भी है कि सृष्टि का जब-जब खात्मा हुआ है, तब तब जगतपिता ब्रह्मा ने पुष्कर से ही सृष्टि की रचना की है.

पढ़ें- राजस्थान का ऐसा मंदिर जहां भूत-प्रेत लगाते है हाजिरी!, खुद बजरंग बली सुनाते हैं सजा

पुष्कर में ही ऋषि विश्वामित्र की तपस्या हुई थी भंग
बताया जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने कई जगहों पर गायत्री माता को प्रसन्न करने के लिए तप किए. अंत में ऋषि विश्वामित्र ने पुष्कर में आकर गायत्री मंत्र को सिद्ध करने में सफलता पाई. हालांकि उनकी साधना में भगवान इंद्र ने विघ्न डालने के लिए देवलोक से अप्सरा मेनका को भेजा. पुष्कर ही वह स्थान है जहां ऋषि विश्वामित्र की तपस्या को मेनका ने भंग किया था. इससे क्रोधित होकर जब ऋषि विश्वामित्र ने मामले की पड़ताल की तो उनका तब भंग करने में ऋषि नारद की भूमिका सामने आई.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: भरतपुर के बंसी पहाड़पुर से जा रहा राम मंदिर निर्माण के लिए पत्थर, जानिए क्या है खासियत

नारद को ऋषि विश्वामित्र ने दिया था श्राप
बताया जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने नारद को तपस्या भंग करने पर श्राप दिया था. जिसमें नारद को हमेशा पुष्कर में रहने और यहां साधकों की साधना में विघ्न डालने का उन्हें श्राप मिला था. कब से मान्यता है कि पुष्कर में साधना करना बहुत ही कठिन है, लेकिन गायत्री मंत्र से की गई साधना जल्दी फलीभूत होती है.

पढ़ें- जयपुर के नरेना में स्थापित ये पैनोरमा दिलाता है सिख इतिहास और उनके बलिदान की याद

सभी तीर्थों का गुरु माना जाता हैं पुष्कर
पुष्कर ऋषि मुनि साधु संतों के लिए तपोस्थली रही है. आज भी कई ऋषियों के तप स्थान पुष्कर में मौजूद है, जो पुष्कर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. पुष्कर तीर्थ को सभी तीर्थों का गुरु माना जाता है. यहां ब्रह्मा विष्णु महेश सहित सभी देवी देवताओं का वास एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है. यहीं वजह है कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस दौरान पुष्कर आते हैं और धर्म लाभ कमाते हैं.

अजमेर. जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. यह वही पुष्कर है जहां ब्रह्मा ने सृष्टि यज्ञ किया था और यज्ञ से पहले गायत्री मंत्र की रचना की थी. गायत्री मंत्र को ही सावित्री मंत्र भी माना जाता है.

शास्त्रों के अनुसार गायत्री माता गोप कन्या थी. सृष्टि यज्ञ में जब माता सावित्री को आने में विलंब हुआ तब ब्रह्मा ने गोप कन्या से विवाह कर सृष्टि यज्ञ किया. बताया जाता है कि इससे रुष्ट होकर सावित्री माता ने ब्रह्मा सहित उन सभी देवताओं को श्राप दे दिया. तब ब्रह्मा ने ही अपने कमंडल से जल छिड़ककर श्राप विमोचनी को उद्भव किया. श्राप विमोचनी गायत्री ही है, जो वर्तमान में मर्यादा पर्वत पर विराजमान होकर पाप विमोचनी से विख्यात है.

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सबसे पहले यज्ञ की परंपरा हुई शुरु
शास्त्रों के मुताबिक पुष्कर में ही सबसे पहले यज्ञ की परंपरा शुरु हुई थी. मान्यता यह भी है कि सृष्टि का जब-जब खात्मा हुआ है, तब तब जगतपिता ब्रह्मा ने पुष्कर से ही सृष्टि की रचना की है.

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पुष्कर में ही ऋषि विश्वामित्र की तपस्या हुई थी भंग
बताया जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने कई जगहों पर गायत्री माता को प्रसन्न करने के लिए तप किए. अंत में ऋषि विश्वामित्र ने पुष्कर में आकर गायत्री मंत्र को सिद्ध करने में सफलता पाई. हालांकि उनकी साधना में भगवान इंद्र ने विघ्न डालने के लिए देवलोक से अप्सरा मेनका को भेजा. पुष्कर ही वह स्थान है जहां ऋषि विश्वामित्र की तपस्या को मेनका ने भंग किया था. इससे क्रोधित होकर जब ऋषि विश्वामित्र ने मामले की पड़ताल की तो उनका तब भंग करने में ऋषि नारद की भूमिका सामने आई.

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नारद को ऋषि विश्वामित्र ने दिया था श्राप
बताया जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने नारद को तपस्या भंग करने पर श्राप दिया था. जिसमें नारद को हमेशा पुष्कर में रहने और यहां साधकों की साधना में विघ्न डालने का उन्हें श्राप मिला था. कब से मान्यता है कि पुष्कर में साधना करना बहुत ही कठिन है, लेकिन गायत्री मंत्र से की गई साधना जल्दी फलीभूत होती है.

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सभी तीर्थों का गुरु माना जाता हैं पुष्कर
पुष्कर ऋषि मुनि साधु संतों के लिए तपोस्थली रही है. आज भी कई ऋषियों के तप स्थान पुष्कर में मौजूद है, जो पुष्कर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. पुष्कर तीर्थ को सभी तीर्थों का गुरु माना जाता है. यहां ब्रह्मा विष्णु महेश सहित सभी देवी देवताओं का वास एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है. यहीं वजह है कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस दौरान पुष्कर आते हैं और धर्म लाभ कमाते हैं.

Intro:अजमेर। विश्व में इकलौता जगत पिता ब्रह्मा का स्थान पुष्कर है। जगत पिता बर्नाकू सृष्टि का रचयिता माना जाता है। वही ब्रह्मा की पत्नी सावित्री भौतिक सृष्टि एवं ब्रह्मा की दूसरी पत्नी गायत्री को सृष्टि में चेतन की अधिष्ठात्री माना जाता है। मान्यता है कि जब जब सृष्टि का अंत हुआ है तब तक पुष्कर से ही सृष्टि का पुनः निर्माण ब्रह्मा ने किया है। देखिए पुष्कर से विशेष खबर

जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। यह वही पुष्कर है जहां ब्रह्मा ने सृष्टि यज्ञ किया था और यज्ञ से पहले गायत्री मंत्र की रचना की थी। गायत्री मंत्र को ही सावित्री मंत्र भी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार गायत्री माता गोप कन्या थी। सृष्टि यज्ञ में जब माता सावित्री को आने में विलंब हुआ तब ब्रह्मा ने गोप कन्या से विवाह कर सृष्टि यज्ञ किया। बताया जाता है कि इससे रुष्ट होकर सावित्री माता ने ब्रह्मा सहित उन सभी देवताओं को श्राप दे दिया। तब ब्रह्मा ने ही अपने कमंडल से जल छिड़ककर श्राप विमोचनी को उद्भव किया। श्राप विमोचनी गायत्री ही है जो वर्तमान में मर्यादा पर्वत पर विराजमान होकर पाप विमोचनी से विख्यात है। शास्त्रों के मुताबिक पुष्कर में ही सबसे पहले यज्ञ की परंपरा शुरू हुई थी। मान्यता यह भी है कि सृष्टि का जब-जब खात्मा हुआ है तब तब जगतपिता ब्रह्मा ने पुष्कर से ही सृष्टि की रचना की है....
बाइट- घनश्याम पालीवाल- व्यवस्थापक गायत्री विद्यापीठ

बताया जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने कई जगहों पर गायत्री माता को प्रसन्न करने के लिए तप किए। अंत में ऋषि विश्वामित्र ने पुष्कर में आकर गायत्री मंत्र को सिद्ध करने में सफलता पाई। हालांकि उनकी साधना में भगवान इंद्र ने विघ्न डालने के लिए देवलोक से अप्सरा मेनका को भेजा। पुष्कर ही वह स्थान है जहां ऋषि विश्वामित्र की तपस्या को मेनका ने भंग किया था। इससे क्रोधित होकर जब ऋषि विश्वामित्र ने मामले की पड़ताल की तो उनका तब भंग करने में ऋषि नारद की भूमिका सामने आई। बताया जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने नारद को तपस्या भंग करने पर श्राप दिया था। जिसमें नारद को हमेशा पुष्कर में रहने और यहां साधकों की साधना में विघ्न डालने का उन्हें श्राप मिला था। कब से मान्यता है कि पुष्कर में साधना करना बहुत ही कठिन है। लेकिन गायत्री मंत्र से की गई साधना जल्दी फलीभूत होती है....
बाइट- पंडित सतीश चंद्र तिवारी तीर्थ पुरोहित

पुष्कर ऋषि मुनि साधु संतों के लिए तपोस्थली रही है। आज भी कई ऋषियों के तप स्थान पुष्कर में मौजूद है जो पुष्कर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। पुष्कर तीर्थ को सभी तीर्थों का गुरु माना जाता है। यहां ब्रह्मा विष्णु महेश सहित सभी देवी देवताओं का वास एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस दौरान पुष्कर आते हैं और धर्म लाभ कमाते हैं।


Body:प्रियांक शर्मा
अजमेर


Conclusion:
Last Updated : Nov 13, 2019, 11:52 AM IST
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