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अजमेरः सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर बसंत उत्सव का आयोजन

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Published : Jan 31, 2020, 11:47 PM IST

अजमेर में शुक्रवार को सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में बसंत उत्सव का आयोजन किया गया. जिसमें देश भर से आए जायरीनों के अलावा दरगाह दीवान और खादिम ने हिस्सा लिया.

Basant Utsav organized, बसंत उत्सव का आयोजन
सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर बसंत उत्सव का आयोजन

अजमेर. बसंत उत्सव की धूम जहां हर तरफ मची हुई है, तो वहीं अजमेर में सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में सूफियाना अंदाज में बसंत उत्सव का आयोजन किया गया. इस रस्म को ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हर साल शाही कव्वाल द्वारा निभाया जाता है.

सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर बसंत उत्सव का आयोजन

जिसमें देश भर से आए जायरीन के अलावा दरगाह दीवान और खादिम भी हिस्सा लेते हैं और कहा जाता है कि सूफी संतों को मनाने के लिए इस रस्म को ख्वाजा के दरबार में मनाई जाती है, जो कि सैकड़ों वर्षो से इसी प्रकार चली आ रही है.

हाथों में बस्ती रंग के सरसों फूल और दिल में इल्तेजा लिए बसंत के रंग में रंगे लोग ख्वाजा गरीब नवाज के दर पर बसंत की रस्म को अदा कर रहे हैं. सदियों पुरानी चली आ रही है, यह हजरत अमीर खुसरो की परंपरा है. जिसे आज भी ख्वाजा साहब के दर पर दरगाह के शाही कव्वाल उसी अंदाज में अदा करते हैं.

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गरीब नवाज के अंगना बसंत की बहार "ख्वाजा के दर पर आज है बसंत " के गीतों के माहौल को सूफियाना ख्वाजा गरीब नवाज को प्रसन्न कर अपनी अकीदत का नजराना पेश करते हुए लोग अपने आप को खुशनसीब मानते हैं. इस बसंत की रस्म में खास बात यह रही कि दरगाह से जुड़े सभी लोग इसमें शामिल नजर आए.

इस बसंत उत्सव में शाही कव्वाल ने उन कलामो को कव्वाली के अंदाज में पेश करते है. जो अमीर खुसरो ने हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की खिदमत में पेश किया था. जो हाथों में हरे रंग की सरसों और पीले रंग के फूलों का गुलदस्ता गवाह है. हजरत अमीर खुसरो की उस परंपरा का जो सदियों पहले अदा की गई थी. इस उत्सव में बसंत के गीत गाते हुए शाही कव्वाल और दरगाह प्रमुख के बेटे नसरुद्दीन अली खान और खादीमों की मौजूदगी में ख्वाजा साहब की चौखट पर बसंत का नजराना पेश किया गया.

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बसंत की परंपरा उस वक्त शुरू हुई, जब सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने वालिद की मौत के गम में मुस्कुराना भूल गए थे. अपने पीरो मुर्शिद धर्मगुरु की उदासी को देखते हुए हजरत अमीर खुसरो ने उस वक्त कुछ महिलाओं को सरसों के फूल लेकर बसंत गाते हुए, वहां से निकलते देखा. इस नजारे को देखकर हजरत अमीर खुसरो ने दिल में ख्याल आया क्यों ना वह भी अपने पीर की खिदमत में कुछ इस तरह की बसंत गीत गाते हुए फूलों का गुलदस्ता अपने शिष्य को पेश करूं. अमीर खुसरो ने जब अपने पीर की खिदमत में ऐसा किया तो वह मुस्कुरा दिए तब से इस परंपरा को इसी प्रकार से निभाया जा रहा है.

अजमेर. बसंत उत्सव की धूम जहां हर तरफ मची हुई है, तो वहीं अजमेर में सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में सूफियाना अंदाज में बसंत उत्सव का आयोजन किया गया. इस रस्म को ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हर साल शाही कव्वाल द्वारा निभाया जाता है.

सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर बसंत उत्सव का आयोजन

जिसमें देश भर से आए जायरीन के अलावा दरगाह दीवान और खादिम भी हिस्सा लेते हैं और कहा जाता है कि सूफी संतों को मनाने के लिए इस रस्म को ख्वाजा के दरबार में मनाई जाती है, जो कि सैकड़ों वर्षो से इसी प्रकार चली आ रही है.

हाथों में बस्ती रंग के सरसों फूल और दिल में इल्तेजा लिए बसंत के रंग में रंगे लोग ख्वाजा गरीब नवाज के दर पर बसंत की रस्म को अदा कर रहे हैं. सदियों पुरानी चली आ रही है, यह हजरत अमीर खुसरो की परंपरा है. जिसे आज भी ख्वाजा साहब के दर पर दरगाह के शाही कव्वाल उसी अंदाज में अदा करते हैं.

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गरीब नवाज के अंगना बसंत की बहार "ख्वाजा के दर पर आज है बसंत " के गीतों के माहौल को सूफियाना ख्वाजा गरीब नवाज को प्रसन्न कर अपनी अकीदत का नजराना पेश करते हुए लोग अपने आप को खुशनसीब मानते हैं. इस बसंत की रस्म में खास बात यह रही कि दरगाह से जुड़े सभी लोग इसमें शामिल नजर आए.

इस बसंत उत्सव में शाही कव्वाल ने उन कलामो को कव्वाली के अंदाज में पेश करते है. जो अमीर खुसरो ने हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की खिदमत में पेश किया था. जो हाथों में हरे रंग की सरसों और पीले रंग के फूलों का गुलदस्ता गवाह है. हजरत अमीर खुसरो की उस परंपरा का जो सदियों पहले अदा की गई थी. इस उत्सव में बसंत के गीत गाते हुए शाही कव्वाल और दरगाह प्रमुख के बेटे नसरुद्दीन अली खान और खादीमों की मौजूदगी में ख्वाजा साहब की चौखट पर बसंत का नजराना पेश किया गया.

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बसंत की परंपरा उस वक्त शुरू हुई, जब सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने वालिद की मौत के गम में मुस्कुराना भूल गए थे. अपने पीरो मुर्शिद धर्मगुरु की उदासी को देखते हुए हजरत अमीर खुसरो ने उस वक्त कुछ महिलाओं को सरसों के फूल लेकर बसंत गाते हुए, वहां से निकलते देखा. इस नजारे को देखकर हजरत अमीर खुसरो ने दिल में ख्याल आया क्यों ना वह भी अपने पीर की खिदमत में कुछ इस तरह की बसंत गीत गाते हुए फूलों का गुलदस्ता अपने शिष्य को पेश करूं. अमीर खुसरो ने जब अपने पीर की खिदमत में ऐसा किया तो वह मुस्कुरा दिए तब से इस परंपरा को इसी प्रकार से निभाया जा रहा है.

Intro:अजमेर/ बसंत उत्सव की धूम जहां हर तरफ मची हुई है तो वहीं अजमेर में सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में सूफियाना अंदाज में बसंत उत्सव का आयोजन किया गया इस रस्म को ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हर साल शाही कव्वाल द्वारा निभाया जाता है जिसमें देश भर से आए जायरीन के अलावा दरगाह दीवान और खादिम भी हिस्सा लेते हैं और कहा जाता है कि सूफी संतों को मनाने के लिए इस रस्म को ख्वाजा के दरबार में मनाई जाती है जो कि सैकड़ों वर्षो से इसी प्रकार चली आ रही है




हाथों में बस्ती रंग के सरसों फूल और दिल में इल्तेजा लिए बसंत के रंग में रंगे लोग ख्वाजा गरीब नवाज के दर पर बसंत की रस्म को अदा कर रहे हैं सदियों पुरानी चली आ रही है यह हजरत अमीर खुसरो की परंपरा है जिसे आज भी ख्वाजा साहब के दर पर दरगाह के शाही कव्वाल उसी अंदाज में अदा करते हैं गरीब नवाज के अंगना बसंत की बहार "ख्वाजा के दर पर आज है बसंत " के गीतों के माहौल को सूफियाना ख्वाजा गरीब नवाज को प्रसन्न कर अपनी अकीदत का नजराना पेश करते हुए लोग अपने आप को खुशनसीब मानते हैं इस बसंत की रस्म में खास बात यह रही कि दरगाह से जुड़े सभी लोग इसमें शामिल नजर आए



इस बसंत उत्सव में शाही कव्वाल ने उन कलामो को कव्वाली के अंदाज में पेश करते है जो अमीर खुसरो ने हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की खिदमत में पेश किया था जो हाथों में हरे रंग की सरसों और पीले रंग के फूलों का गुलदस्ता गवाह है हजरत अमीर खुसरो की उस परंपरा का जो सदियों पहले अदा की गई थी इस उत्सव में बसंत के गीत गाते हुए शाही कव्वाल व दरगाह प्रमुख के बेटे नसरुद्दीन अली खान और खादीमो की मौजूदगी में ख्वाजा साहब की चौखट पर बसंत का नजराना पेश किया गया



बसंत की परंपरा उस वक्त शुरू हुई जब सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने वालिद की मौत के गम में मुस्कुराना भूल गए थे अपने पीरो मुर्शिद धर्मगुरु की उदासी को देखते हुए हजरत अमीर खुसरो ने उस वक्त कुछ महिलाओं को सरसों के फूल लेकर बसंत गाते हुए वहां से निकलते देखा इस नजारे को देखकर हजरत अमीर खुसरो ने दिल में ख्याल आया क्यों ना वह भी अपने पीर की खिदमत में कुछ इस तरह की बसंत गीत गाते हुए फूलों का गुलदस्ता अपने शिष्य को पेश करूं अमीर खुसरो ने जब अपने पीर की खिदमत में ऐसा किया तो वह मुस्कुरा दिए तब से इस परंपरा को इसी प्रकार से निभाया जा रहा है


सूफी संत के द्वार पर मोहम्मद का पैगाम देती इस परंपरा को आज भी ख्वाजा गरीब नवाज के दर पर मुस्लिम समुदाय के लोग बनाते हैं और दरगाह के निजाम गेट से खादिमा दरगाह दीवान के बेटे की मौजूदगी में बसंत उत्सव की रस्म को शाही कव्वाल सूफियाना कव्वाली के साथ दरगाह मैदा की जाती है सूफी संत महबूब अली की मायूसी को दूर करने के लिए आमिर खुसरो द्वारा बसंत का तोहफा पेश किया गया था


बाईट- एस एफ हशन चिश्ती - दरगाह शरीफ खादिम

बाईट- नसरुद्दीन अली खान दरगाह प्रमुख पुत्र

बाईट- अख्तर हुसैन शाही कव्वाल पुत्र



Body:अजमेर


Conclusion:अजमेर
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