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अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में अदा की गई बसंत की रस्म - Ajmer Latest News

अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का सालाना उर्स (Ajmer Dargah Urs 2022) मनाया जा रहा है. सोमवार को दरगाह में बसंत उत्सव मनाया गया. दरगाह दीवान की सदारत में ख्वाजा गरीब नवाज की मजार पर बसंत के फूलों का गुलदस्ता पेश किया गया. इससे पहले दरगाह के शाही कव्वालों ने बसंत के कलाम पेश किए. दरगाह में मुल्क में खुशहाली, साम्प्रदायिक सद्भाव और कौमी एकता के लिए दुआ मांगी गई.

Basant Festival Celebrated In Ajmer Dargah
दरगाह में अदा की गई बसंत की रस्म
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Published : Feb 7, 2022, 1:41 PM IST

अजमेर. मुस्लिम कैलेंडर की हिजरी संवत के रबी उल के आखिरी महीने की 5 तारीख को हर वर्ष की तरह एक बार भी दरगाह में बसंत (Basant Festival Celebrated In Ajmer Dargah) पेश किया गया. दरगाह के निजाम गेट से शाही कव्वाल और उनके साथी दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन अली खान की सदारत में पेश होती आई है. शाही कव्वाल, अकीदतमंद, दरगाह के खादिम और दरगाह दीवान के साहबजादे सैयद नसीर उद्दीन चिश्ती जुलूस के रूप में शाही कव्वालों के साथ आस्ताने पंहुचे. जहाँ ख्वाजा गरीब नवाज की मजार पर बसंत के फूलों से सजा गुलदस्ता पेश किया गया.

शाही कव्वालों ख्वाजा गरीब नवाज के सम्मान में अमीर खुसरो के हिंदी ब्रज भाषा में लिखे कलाम पेश किए. बताया जाता है कि ख्वाजा गरीब नवाज को बसंत के फूल बेहद ही पसंद थें यही वजह है कि परंपरा को निभाते हुए आज भी दरगाह में बसंत के फूलों का गुलदस्ता पेश किया जाता है. दरगाह दीवान के साहबजादे सैयद नसीरउद्दीन चिश्ती ने बताया कि दरगाह में बसंत की रस्म पेश की गई है. बसंत की रस्म गंगा जमुनी तहजीब की एक बहुत बड़ी मिसाल है.

दरगाह में अदा की गई बसंत की रस्म

पढ़ें : चिश्ती का 810वां उर्स: राज्यपाल कलराज मिश्र की ओर से दरगाह में चढ़ाई गई चादर

बसंत पेश करने की शुरुआत निजामुद्दीन औलिया के वक्त अमीर खुसरो ने शुरू की थी. तब से लेकर आज तक सभी चिश्तिया खानखाहो पर बसंत की रस्म अदा की जाती है. सभी मजहब के लोग मिल जुलकर रहते हैं यह हमारे मुल्क की सबसे बड़ी ताकत है. दरगाह और अन्य खानखाहो से यह देखा जा सकता है कि आज भी हम किस तरह से एक दूसरे के त्योहारों को साथ में मनाते हैं और प्यार मोहब्बत अमन के साथ ही रहते हैं.

पढ़ें : ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 810वां उर्स : सोनिया गांधी की ओर से गहलोत और माकन ने अजमेर शरीफ दरगाह पर पेश की चादर...

शाही कव्वाल चौकी के सदस्य अख्तर हुसैन बताते हैं कि शाही कव्वाल की ओर से यह रस्म अदा की जाती है. इसमें किसी की सदारत नहीं होती. इस रस्म में सभी शामिल होते हैं. यह बसंत की रस्म वर्षों से अदा की जा रही है. सन 1947 से पहले लाखन कोटडी शाही कव्वाल की हवेली से बसंत का गुलदस्ता आता था. वक्त बदलने के साथ का बुलंद दरवाजे से जुलूस के रूप में बसंत दरगाह में पेश होती है. उन्होंने बताया कि इस अवसर पर शाही कव्वालों की ओर से अमीर खुसरो के लिखे गीत गए जाते है.

अजमेर. मुस्लिम कैलेंडर की हिजरी संवत के रबी उल के आखिरी महीने की 5 तारीख को हर वर्ष की तरह एक बार भी दरगाह में बसंत (Basant Festival Celebrated In Ajmer Dargah) पेश किया गया. दरगाह के निजाम गेट से शाही कव्वाल और उनके साथी दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन अली खान की सदारत में पेश होती आई है. शाही कव्वाल, अकीदतमंद, दरगाह के खादिम और दरगाह दीवान के साहबजादे सैयद नसीर उद्दीन चिश्ती जुलूस के रूप में शाही कव्वालों के साथ आस्ताने पंहुचे. जहाँ ख्वाजा गरीब नवाज की मजार पर बसंत के फूलों से सजा गुलदस्ता पेश किया गया.

शाही कव्वालों ख्वाजा गरीब नवाज के सम्मान में अमीर खुसरो के हिंदी ब्रज भाषा में लिखे कलाम पेश किए. बताया जाता है कि ख्वाजा गरीब नवाज को बसंत के फूल बेहद ही पसंद थें यही वजह है कि परंपरा को निभाते हुए आज भी दरगाह में बसंत के फूलों का गुलदस्ता पेश किया जाता है. दरगाह दीवान के साहबजादे सैयद नसीरउद्दीन चिश्ती ने बताया कि दरगाह में बसंत की रस्म पेश की गई है. बसंत की रस्म गंगा जमुनी तहजीब की एक बहुत बड़ी मिसाल है.

दरगाह में अदा की गई बसंत की रस्म

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बसंत पेश करने की शुरुआत निजामुद्दीन औलिया के वक्त अमीर खुसरो ने शुरू की थी. तब से लेकर आज तक सभी चिश्तिया खानखाहो पर बसंत की रस्म अदा की जाती है. सभी मजहब के लोग मिल जुलकर रहते हैं यह हमारे मुल्क की सबसे बड़ी ताकत है. दरगाह और अन्य खानखाहो से यह देखा जा सकता है कि आज भी हम किस तरह से एक दूसरे के त्योहारों को साथ में मनाते हैं और प्यार मोहब्बत अमन के साथ ही रहते हैं.

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शाही कव्वाल चौकी के सदस्य अख्तर हुसैन बताते हैं कि शाही कव्वाल की ओर से यह रस्म अदा की जाती है. इसमें किसी की सदारत नहीं होती. इस रस्म में सभी शामिल होते हैं. यह बसंत की रस्म वर्षों से अदा की जा रही है. सन 1947 से पहले लाखन कोटडी शाही कव्वाल की हवेली से बसंत का गुलदस्ता आता था. वक्त बदलने के साथ का बुलंद दरवाजे से जुलूस के रूप में बसंत दरगाह में पेश होती है. उन्होंने बताया कि इस अवसर पर शाही कव्वालों की ओर से अमीर खुसरो के लिखे गीत गए जाते है.

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