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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेषः यहां महिलाएं ही रोशन कर रहीं आधी आबादी...आत्मनिर्भर बनकर रोशन कर रही दूसरों के घर

बदलते युग के साथ ही महिलाएं भी अब घर की दहलीज से बाहर निकलकर सपनों को सच कर रही हैं. क्षेत्र चाहे कोई भी हो, हर जगह अपनी मेहनत और लगन के बल पर महिलाएं सफलता का नया कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं. इसी कड़ी में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अजमेर की बेरफुट कॉलेज इंटरनेशनल संस्था (Barefoot College International organization) काम कर रही है. संस्था कम पढ़ी-लिखी या अनपढ़ महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अभूतपूर्व प्रयास कर रही हैं...पढ़िये ये खास रिपोर्ट

Barefoot College International organization
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Published : Mar 7, 2022, 10:37 PM IST

अजमेर. महिलाएं आज पुरुषों से कम नहीं हैं. हर क्षेत्र में सफलता के शिखर को छूकर भारत के गौरव को आगे बढ़ाने वाली महिलाओं की एक नहीं हजार कहानियां हैं, जिनसे हर कोई प्रेरित होता है. ऐसी ही एक कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत अजमेर के एक ऐसे संस्था के बारे में बताने जा रहा है, जो कम पढ़ी लिखी या अनपढ़ महिलाओं का जीवन संवार रहा है.

अजमेर जिले के किशनगढ़ के एक गांव हरमाड़ा में स्थित बेरफुट कॉलेज इंटरनेशनल (Barefoot College International organization) महिलाओं को सोलर सिस्टम से संबंधित उपकरण बनाने का प्रशिक्षण देती है. यहां से प्रशिक्षण पाने के बाद महिलाएं दूसरों के घरों को रोशन करने के साथ ही अपनी जैसी अन्य महिलाओं के जीवन में व्याप्त अंधेरे को भी दूर कर रही हैं. प्रशिक्षण प्राप्त महिलाएं अन्य महिलाओं को भी इस काम को लेकर प्रशिक्षण देकर उन्हें सशक्त बना रही हैं. गांवों में अनपढ़ या कम पढ़ी लिखी महिलाओं के लिए स्वयं रोजगार के अवसर कम ही होते हैं. ऐसी महिलाओं को कई स्वयंसेवी संस्थाएं प्रशिक्षित कर उन्हें तकनीक और रोजगार से जोड़ रही हैं. बेरफुट कॉलेज इंटरनेशल संस्था में महिलाओं को सोलर उपकरण बनाने के साथ डिजिटल का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है.

Barefoot College International organization

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2015 से अस्तित्व में आई संस्था ने देश में ही नही बल्कि विदेशों में रहने वाली हजारों महिलाओं के जीवन को संवारा है. संस्था में प्रशिक्षण प्राप्त महिलाएं अपने अपने क्षेत्रों में गरीब तबके के लोगों के घरों को सोलर सिस्टम से न केवल रोशन कर रही है बल्कि उन्हें भी स्वंय रोजगार के लिए प्रेरित कर रही हैं. प्रशिक्षण के दौरान महिलाओं को सोलर सिस्टम के तहत विभिन्न उपकरण बनाने और उनकी रिपेयरिंग करने का काम सिखाया जाता है. इतना ही नहीं 5 माह के प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत महिलाओं को स्मार्टफोन और कंप्यूटर की ट्रेनिंग भी दी जा रही है. वही इंटरप्राइजेज, न्यूट्रिशन, स्वास्थ्य के बारे में भी जानकारी दी जाती है.

महिलाएं ही महिलाओं को करती है प्रशिक्षित
संस्था में खास बात यह है कि यहां प्रशिक्षित हुई महिलाएं ही संस्था में काम कर अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षित कर रही हैं. देश के कोने कोने से महिलाएं संस्था के कैम्पस में आकर प्रशिक्षण लेती हैं. यहां से प्रशिक्षण लेने के बाद जब ये महिलाएं वापस लौटती हैं तो हाथ में हुनर और मन में आत्मविश्वास रहता है. ऐसी महिलाएं खुद को रोजगार से जोड़कर न केवल दुसरों के लिए मददगार साबित हो रही हैं, बल्कि परिवार को भी सम्बल दे रही हैं. संस्था के प्रतिनिधि हर्ष तिवारी बताते हैं कि एक महिला का संपर्क महिलाओं और परिवार से अधिक रहता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए संस्था देश के 17 राज्यों में काम कर रही है.

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वहीं 90 देशों में भी संस्था काम कर रही है. बेरफुट कॉलेज इंटरनेशनल संस्था के कार्यक्रम की शुरुआत सबसे पहले सोलर सिस्टम के प्रशिक्षण से होती है. उन्होंने बताया कि संस्था में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली महिलाएं कम पढ़ी लिखी होती हैं या बिल्कुल पढ़ी-लिखी नहीं होती. संस्था के देश में 3 कैंपस हैं. जिनमें किशनगढ़ में हरमाड़ा, आजमगढ़ औऱ झारखंड में हजारीबाग में है. वहां पर पहले 5 महीने सोलर इंटरप्राइजेज और डिजिटल लिटरेसी का प्रशिक्षण महिलाओं को दिया जाता है.

स्वयं रोजगार से जुड़ने के लिए करती है प्रेरित
संस्था में 5 माह का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जब महिलाएं अपने गांव जाती हैं और वहां किसी जरूरतमंद के घर पर सोलर सिस्टम के जरिए बिजली लाती हैं तो उसे देख गांव के लोगों का नजरिया बदल जाता है. प्रशिक्षण प्राप्त महिलाएं गांव में अन्य महिलाओं को भी सोलर सिस्टम का प्रशिक्षण देती हैं. वह यह ज्ञान अपने तक सीमित नहीं रखती हैं बल्कि अपनी जैसी और भी महिलाओं को प्रशिक्षित करती हैं. जिससे गांव और समाज महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. संस्था प्रतिनिधि हर्ष तिवारी ने बताया कि सीएसआर के तहत दानदाता महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दान करते हैं. उसी पैसे से महिलाओं को प्रशिक्षण कार्यक्रम से जोड़ा जाता है.

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महिलाएं साहस करें तो वह आर्थिक संबल भी दे सकती हैं
असम से संस्था में प्रशिक्षण के लिए आई अंजलि के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था. अंजलि कम पढ़ी लिखी है. ट्रेनिंग के लिए परिवार और रिश्तेदारों ने मना किया था, लेकिन पति ने सहयोग किया. जिस कारण वह आज संस्था में सोलर उपकरण बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर पा रही है. अंजलि ने बताया कि मेरी जैसी महिलाएं घर परिवार संभालने में ही रह जाती हैं. वह कुछ कर सकें इसके लिए साहस नहीं जुटा पाती. मैं उन महिलाओं से कहना चाहूंगी कि वह साहस जुटाएं और आगे बढ़ें और खुद को साबित कर अपने परिवार को संबल दें.

हरमाड़ा गांव की शहनाज बानो बताती हैं कि गांव और समाज में महिलाओं को घरों से बाहर जाने की इतनी छूट नहीं थी. लेकिन उसने प्रयास किया और प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद संस्था में ही देश विदेश से आने वाली महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही है. शुरुआत में भाषा संबंधी दिक्कतें रहती हैं तो इशारों से समझाया जाता है. लेकिन धीरे धीरे बाहर से आने वाली महिलाओं का जुड़ाव होने लगता और ट्रेनिंग तक एक भावनात्मक रिश्ता बन जाता है. उन्होंने कहा कि महिलाएं ठान लें तो कुछ भी कर सकती हैं. घर संभालने के साथ महिलाएं आर्थिक रूप से परिवार को मजबूती दी दे सकती हैं. प्रशिक्षण के बाद महिलाओं की जिंदगी बदल गई है.

महिलाओं को मिलता है डिजिटल एवं तकनीकी प्रशिक्षण: हरमाड़ा से मोनिका शर्मा बताती है कि 2015 में आईटी में डिजिटल टूल का प्रशिक्षण संस्था से उन्होंने लिया था. मोनिका बताती हैं कि महिला सशक्तिकरण के तहत संस्था की ओर से अनेक कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है, उसमें से डिजिटल टूल का प्रशिक्षण देने का काम उसे मिला है. महिलाओं को पहले स्मार्टफोन का प्रशिक्षण देने के साथ कंप्यूटर भी सिखा रही हैं. उन्होंने बताया कि डिजिटल टूल के प्रशिक्षण में महिलाओं को प्लेटफॉर्म भी उपलब्ध करवाया जाता है, जिससे महिलाएं अपने जीवन को सरल बना सकें.

वर्तमान तकनीकी युग को देखते हुए महिलाओं को तकनीक से कैसे जोड़ा जाए? इसको लेकर कार्य किया जा रहा है. संस्था प्रतिनिधि ग्लोरिया बताती हैं कि संस्था से जुड़ी महिलाएं और प्रशिक्षण लेने के लिए आने वाली महिलाएं यह सभी महिला सशक्तिकरण को लेकर काम करती हैं. प्रशिक्षण में महिलाओं के कौशल विकास और उन्हें रोजगार, स्वास्थ से संबंधित जानकारी दी जाती है0 उन्होंने बताया कि संस्था में स्टाफ सभी आसपास के गांव की महिलाएं ही हैं.

अजमेर. महिलाएं आज पुरुषों से कम नहीं हैं. हर क्षेत्र में सफलता के शिखर को छूकर भारत के गौरव को आगे बढ़ाने वाली महिलाओं की एक नहीं हजार कहानियां हैं, जिनसे हर कोई प्रेरित होता है. ऐसी ही एक कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत अजमेर के एक ऐसे संस्था के बारे में बताने जा रहा है, जो कम पढ़ी लिखी या अनपढ़ महिलाओं का जीवन संवार रहा है.

अजमेर जिले के किशनगढ़ के एक गांव हरमाड़ा में स्थित बेरफुट कॉलेज इंटरनेशनल (Barefoot College International organization) महिलाओं को सोलर सिस्टम से संबंधित उपकरण बनाने का प्रशिक्षण देती है. यहां से प्रशिक्षण पाने के बाद महिलाएं दूसरों के घरों को रोशन करने के साथ ही अपनी जैसी अन्य महिलाओं के जीवन में व्याप्त अंधेरे को भी दूर कर रही हैं. प्रशिक्षण प्राप्त महिलाएं अन्य महिलाओं को भी इस काम को लेकर प्रशिक्षण देकर उन्हें सशक्त बना रही हैं. गांवों में अनपढ़ या कम पढ़ी लिखी महिलाओं के लिए स्वयं रोजगार के अवसर कम ही होते हैं. ऐसी महिलाओं को कई स्वयंसेवी संस्थाएं प्रशिक्षित कर उन्हें तकनीक और रोजगार से जोड़ रही हैं. बेरफुट कॉलेज इंटरनेशल संस्था में महिलाओं को सोलर उपकरण बनाने के साथ डिजिटल का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है.

Barefoot College International organization

पढ़ें. समाज की दुत्कार, पिता की फटकार के बीच मां के सहारे ने बदल दी दुनिया...पैरा खिलाड़ी सोनिया ने खेल की दुनिया में बनाई खास पहचान

2015 से अस्तित्व में आई संस्था ने देश में ही नही बल्कि विदेशों में रहने वाली हजारों महिलाओं के जीवन को संवारा है. संस्था में प्रशिक्षण प्राप्त महिलाएं अपने अपने क्षेत्रों में गरीब तबके के लोगों के घरों को सोलर सिस्टम से न केवल रोशन कर रही है बल्कि उन्हें भी स्वंय रोजगार के लिए प्रेरित कर रही हैं. प्रशिक्षण के दौरान महिलाओं को सोलर सिस्टम के तहत विभिन्न उपकरण बनाने और उनकी रिपेयरिंग करने का काम सिखाया जाता है. इतना ही नहीं 5 माह के प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत महिलाओं को स्मार्टफोन और कंप्यूटर की ट्रेनिंग भी दी जा रही है. वही इंटरप्राइजेज, न्यूट्रिशन, स्वास्थ्य के बारे में भी जानकारी दी जाती है.

महिलाएं ही महिलाओं को करती है प्रशिक्षित
संस्था में खास बात यह है कि यहां प्रशिक्षित हुई महिलाएं ही संस्था में काम कर अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षित कर रही हैं. देश के कोने कोने से महिलाएं संस्था के कैम्पस में आकर प्रशिक्षण लेती हैं. यहां से प्रशिक्षण लेने के बाद जब ये महिलाएं वापस लौटती हैं तो हाथ में हुनर और मन में आत्मविश्वास रहता है. ऐसी महिलाएं खुद को रोजगार से जोड़कर न केवल दुसरों के लिए मददगार साबित हो रही हैं, बल्कि परिवार को भी सम्बल दे रही हैं. संस्था के प्रतिनिधि हर्ष तिवारी बताते हैं कि एक महिला का संपर्क महिलाओं और परिवार से अधिक रहता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए संस्था देश के 17 राज्यों में काम कर रही है.

पढ़ें. किसी वॉरियर से कम नहीं महिला सफाई कर्मचारी...परिवार संभालने के साथ कर रहीं ड्यूटी... लेकिन सुरक्षा के प्रति 'जिम्मेदार' लापरवाह

वहीं 90 देशों में भी संस्था काम कर रही है. बेरफुट कॉलेज इंटरनेशनल संस्था के कार्यक्रम की शुरुआत सबसे पहले सोलर सिस्टम के प्रशिक्षण से होती है. उन्होंने बताया कि संस्था में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली महिलाएं कम पढ़ी लिखी होती हैं या बिल्कुल पढ़ी-लिखी नहीं होती. संस्था के देश में 3 कैंपस हैं. जिनमें किशनगढ़ में हरमाड़ा, आजमगढ़ औऱ झारखंड में हजारीबाग में है. वहां पर पहले 5 महीने सोलर इंटरप्राइजेज और डिजिटल लिटरेसी का प्रशिक्षण महिलाओं को दिया जाता है.

स्वयं रोजगार से जुड़ने के लिए करती है प्रेरित
संस्था में 5 माह का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जब महिलाएं अपने गांव जाती हैं और वहां किसी जरूरतमंद के घर पर सोलर सिस्टम के जरिए बिजली लाती हैं तो उसे देख गांव के लोगों का नजरिया बदल जाता है. प्रशिक्षण प्राप्त महिलाएं गांव में अन्य महिलाओं को भी सोलर सिस्टम का प्रशिक्षण देती हैं. वह यह ज्ञान अपने तक सीमित नहीं रखती हैं बल्कि अपनी जैसी और भी महिलाओं को प्रशिक्षित करती हैं. जिससे गांव और समाज महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. संस्था प्रतिनिधि हर्ष तिवारी ने बताया कि सीएसआर के तहत दानदाता महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दान करते हैं. उसी पैसे से महिलाओं को प्रशिक्षण कार्यक्रम से जोड़ा जाता है.

पढ़ें. जयपुर की बेटी अनन्या को मिला PM बॉक्स में बैठकर गणतंत्र दिवस की परेड देखने का न्यौता

महिलाएं साहस करें तो वह आर्थिक संबल भी दे सकती हैं
असम से संस्था में प्रशिक्षण के लिए आई अंजलि के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था. अंजलि कम पढ़ी लिखी है. ट्रेनिंग के लिए परिवार और रिश्तेदारों ने मना किया था, लेकिन पति ने सहयोग किया. जिस कारण वह आज संस्था में सोलर उपकरण बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर पा रही है. अंजलि ने बताया कि मेरी जैसी महिलाएं घर परिवार संभालने में ही रह जाती हैं. वह कुछ कर सकें इसके लिए साहस नहीं जुटा पाती. मैं उन महिलाओं से कहना चाहूंगी कि वह साहस जुटाएं और आगे बढ़ें और खुद को साबित कर अपने परिवार को संबल दें.

हरमाड़ा गांव की शहनाज बानो बताती हैं कि गांव और समाज में महिलाओं को घरों से बाहर जाने की इतनी छूट नहीं थी. लेकिन उसने प्रयास किया और प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद संस्था में ही देश विदेश से आने वाली महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही है. शुरुआत में भाषा संबंधी दिक्कतें रहती हैं तो इशारों से समझाया जाता है. लेकिन धीरे धीरे बाहर से आने वाली महिलाओं का जुड़ाव होने लगता और ट्रेनिंग तक एक भावनात्मक रिश्ता बन जाता है. उन्होंने कहा कि महिलाएं ठान लें तो कुछ भी कर सकती हैं. घर संभालने के साथ महिलाएं आर्थिक रूप से परिवार को मजबूती दी दे सकती हैं. प्रशिक्षण के बाद महिलाओं की जिंदगी बदल गई है.

महिलाओं को मिलता है डिजिटल एवं तकनीकी प्रशिक्षण: हरमाड़ा से मोनिका शर्मा बताती है कि 2015 में आईटी में डिजिटल टूल का प्रशिक्षण संस्था से उन्होंने लिया था. मोनिका बताती हैं कि महिला सशक्तिकरण के तहत संस्था की ओर से अनेक कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है, उसमें से डिजिटल टूल का प्रशिक्षण देने का काम उसे मिला है. महिलाओं को पहले स्मार्टफोन का प्रशिक्षण देने के साथ कंप्यूटर भी सिखा रही हैं. उन्होंने बताया कि डिजिटल टूल के प्रशिक्षण में महिलाओं को प्लेटफॉर्म भी उपलब्ध करवाया जाता है, जिससे महिलाएं अपने जीवन को सरल बना सकें.

वर्तमान तकनीकी युग को देखते हुए महिलाओं को तकनीक से कैसे जोड़ा जाए? इसको लेकर कार्य किया जा रहा है. संस्था प्रतिनिधि ग्लोरिया बताती हैं कि संस्था से जुड़ी महिलाएं और प्रशिक्षण लेने के लिए आने वाली महिलाएं यह सभी महिला सशक्तिकरण को लेकर काम करती हैं. प्रशिक्षण में महिलाओं के कौशल विकास और उन्हें रोजगार, स्वास्थ से संबंधित जानकारी दी जाती है0 उन्होंने बताया कि संस्था में स्टाफ सभी आसपास के गांव की महिलाएं ही हैं.

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