अजमेर. बंगाली समाज के लिए दुर्गा पूजा सबसे बड़ा त्योहार है. माता की स्थापना से लेकर 9 दिन पूजा-अर्चना और आराधना सब कुछ खास है. अजमेर में बंगाली समाज 35 वर्षों से पारंपरिक रूप से दुर्गा पूजा उत्सव मानता आ रहा है. इंडोर स्टेडियम में विजयदशमी के दिन माता को सिंदूर लगाकर और मुंह मीठा करवा कर विदाई दी गई.
मान्यता है कि माँ दुर्गा अपने परिवार के साथ पहले नवरात्रा को सुसराल आती है. सुसराल में माता की आव भगत होती है. बंगाली समाज भी माता के साथ गणेश कार्तिकेय लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाओं की स्थापना करते हैं. 9 दिन तक दुर्गा पूजन उत्सव धूमधाम से परंपरा के अनुसार मनाया जाता है. विजयदशमी के दिन माता को विदाई दी जाती है. अजमेर के इंडोर स्टेडियम में बंगाली समाज ने अपनी परंपराओं के अनुसार माता के सिंदूर लगाया साथ ही माता का मुंह मीठा भी करवाया. बाद में उपस्थित सभी महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाया.
अजमेर में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना से लेकर विसर्जन तक बंगाली समाज वो सभी धार्मिक परम्पराएं निभाता है, जो पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजन उत्सव में निभाई जाती है. यही वजह है कि जयपुर में भी दुर्गा पूजन उत्सव होने के बावजूद समाज के लोग अजमेर में आकर उत्सव में शरीक होते है. उत्साह और आपसी प्रेम उत्सव की सबसे बड़ी विशेषता है.
उत्सव के आयोजन में सबसे ज्यादा भूमिका महिलाओ की रहती है. विजय दशमी के दिन माता को सिंदूर लगाकर महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती है. समाज के बुजुर्ग विभूति दत्ता बताते है कि अजमेर में 35 वर्षो से दुर्गा पूजन उत्सव का आयोजन हो रहा है. 9 दिन माता की पूजा अर्चना की जाती है वहीं विजयदशमी के दिन समाज की महिलाएं माता को सिंदूर लगाती है. इसके बाद विवाहित महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर माता से सुहागिन होने का आशीर्वाद मांगती है.