अजमेर. कोरोना काल में कोरोना वॉरियर्स ने दिन-रात काम कर इस महामारी से लड़ने में प्रशासन और लोगों की मदद की. उस दौरान प्रशासन की तरफ से उनको पक्की नौकरी और मेहनताने के भुगतान का वादा किया गया था. लेकिन काम पूरा होने के बाद जिम्मेदार अधिकारियों ने कोरोना वॉरियर्स से मुंह फेर लिया और उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया. ऐसा ही एक मामला सामने आया है अजमेर से. एंबुलेंस चलाने वाले शुभम ने कोरोना से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार का जिम्मा उठाया था. अजमेर नगर निगम ने शुभम को उसके इस काम के लिए पक्की नौकरी और एक शव के दाह संस्कार के लिए 2 हजार रुपए का वादा किया था. लेकिन अब नगर निगम शुभम को उसका मेहनताना देने से मना कर रहा है.
शुभम ने ईटीवी भारत से अपना दर्द बयां किया. शुभम ने कहा कि जब कोरोना मरीजों के शवों को कोई हाथ भी नहीं लगा रहा था तब वह उन शवों को एंबुलेंस से श्मशान घाट ले जाता था और उनका दाह संस्कार करता था. उसने कोरोना काल में 188 शवों का अंतिम संस्कार किया. जिसके बदले में निगम ने उसे प्रति शव 2 हजार रुपए और नौकरी का वादा किया था. जब शुभम अपने पैसे लेने निगम के ऑफिस पहुंचा तो उसे लगातार चक्कर कटवाए जा रहे हैं.
शुभम को कोरोना काल में अच्छा काम करने के लिए सम्मानित भी किया गया है. 15 अगस्त को उसे नगर निगम ने ही प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया था. लेकिन जब उसका मेहनताना देने की बात आई तो सभी अधिकारियों और प्रशासन ने मुंह फेर लिया. 188 शवों के 3 लाख 76 हजार रुपए अभी तक निगम ने उसे भुगतान नहीं किए हैं. आर्थिक तंगी के चलते शुभम एंबुलेंस भी नहीं चला पा रहा है. उसने बताया कि जिला कलेक्टर को भी उसने ज्ञापन देकर मामले से अवगत करवाया था. लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है.
तत्कालीन नगर निगम उपायुक्त गजेंद्र सिंह रलावता ने शुभम को मेहनताना व नौकरी दिलवाने का वादा किया था. लेकिन अब वह रिटायर हो चुके हैं और निगम के उपायुक्त खुशाल यादव से भी शुभम ने न्याय की गुहार लगाई है. लेकिन अभी तक उसकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है