अजमेर. सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 808 वें उर्स की पूर्व संध्या पर रविवार को दरगाह स्थित खानकाह शरीफ में देश भर की प्रमुख दरगाहों के सज्जादानशींनो सूफियों और धर्म प्रमुखों की वार्षिक सभा संबोधित हुई. इस दौरान दरगाह के आध्यात्मिक प्रमुख दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने देश के मौजूदा हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए दरगाह दीवान ने कहा कि आज देश में हिंसा, युद्ध और आक्रामकता का बोलबाला है.
जब इस तरह की अमानवीय और क्रूर स्थितियां समग्रता से होती हैं, तो उसका समाधान भी समग्रता से ही खोजना पड़ता है. हिंसक परिस्थितियां और मानसिकताएं जब प्रबल हैं तो अहिंसा का मूल्य स्वयं बढ़ जाता है. हिंसा किसी भी तरह की हो अच्छी नहीं होती. मगर हैरानी की बात यह है कि आज हिंसा के कारण लोग सामाजिक अलगाव और अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं.
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उन्होंने कहा कि राजनीतिक स्वार्थ के चलते समाज को किस्म के खतरों का भय दिखाकर उसे सड़क पर उतारने का काम एक लंबे अरसे से होता चला आ रहा है. यह अब भी हो रहा है. जब इस आशंका को दूर करने का काम होना चाहिए. तब उसे गहराने का काम किया जा रहा है. यह नकारात्मक राजनीति तो बर्बादी का रास्ता है. दुर्भाग्य से यह नकारात्मक राजनीति शिक्षा संस्थानों में भी देखने को मिल रही है.
नकारात्मक राजनीति में फंसा कोई समाज ढंग से तरक्की नहीं कर सकता. समाज को समृद्ध करने वाले शिक्षा संस्थान आज राजनीतिक टकराव और अशांति का केंद्र बन रहे हैं, जबकि इस्लाम में शांति को सबसे बड़ी अच्छाई कहा गया है.
हर भारतीय को खास तौर से देश के मुसलमानों को सकारात्मकता की डोर थामने की जरूरत है और साथ ही ऐसे खुदगर्ज नेताओं और स्वार्थी तथाकथित धर्म के ठेकेदारो से खुद को बचाने की भी जरूरत है. जिन्हें समाज की कम और अपने स्वार्थ की चिंता ज्यादा है.
शांति के माहौल को कमजोर करने वाली किसी चीज का इस्लाम में कोई स्थान नहीं है. मानव इतिहास साक्षी है कि शांति का माहौल और सकारात्मकता दुनिया में प्रगति और विकास का आधार है. इस्लाम की शिक्षाओं का सार यही है कि जिस समाज में अशांति होगी, वहां लोग सामान्य गतिविधियों से दूर होकर राष्ट्र की मुख्यधारा से पिछड़ जाएंगे.
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पैगंबर मोहम्मद साहब ने ज्ञान प्राप्त करने पर बहुत अधिक जोर दिया और उसे सभी के लिए जरूरी बताया. लेकिन आज मुस्लिम समाज में शिक्षा की कमी का मसला बार-बार उठता है. ऐसा क्यों है, इस पर आम मुसलमानों को ही सोचना होगा क्योंकि उनके तथाकथित नेता तो इस पर विचार ही नहीं करना चाहते.
उन्होंने कहा कि सूफियों के प्यार भरे इस्लामी सन्देश की ही ऐसी कशिश है कि आज भी देश में ऐसी सैकड़ों दरगाहें हैं. जिनकी देखरेख गैर मुस्लिम कर रहे हैं. सूफियों की प्रेम करूणा की वजह ही है कि भारत से पूरी दुनिया में इस्लाम के शांति और भाईचारे का पैगाम का प्रसार हुआ है. इसलिए सूफी परंपरा का साम्प्रदायिकरण करना गलत है.
उन्होंने कहा कि सूफीवाद ने बड़ी ही कोमलता और प्रेम से स्वयं को पूरे विश्व में स्थापित कर लिया है. भारत में इसे लाने का श्रेय महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को जाता है. जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी अजमेर में बिताई और आज भी अजमेर शरीफ को धर्म-सम्प्रदाय के भेद-भाव से परे उनके पवित्र दरगाह के शहर के रूप में ही जाना जाता है.
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इस पारंपरिक आयोजन में देश की प्रमुख चिष्तिया दरगाहों के सज्जादगान और धर्म प्रमुखों में शाह हसनी मियां नियाजी बरेली शरीफ, मोहम्मद गुलबर्गा शरीफ कर्नाटक, अहमद निजामी दिल्ली, सैयद तुराब अली हलकट्टा शरीफ आध्रप्रदेष, सैयद जियाउद्दीन अमेटा शरीफ गुजरात, बादषाह मियां जियाई जयपुर, सैयद बदरूद्दीन दरबारे बारिया चटगांव बंगलादेष, सहित भागलपुर बिहार, फुलवारी शरीफ यु.पी., उत्तरांचल प्रदेष से गंगोह शरीफ दरबाह साबिर पाक कलियर के अलीषाह मियां, गुलबर्गा शरीफ में स्थित ख्वाजा बंदा नवाज गेसू दराज की दरगाह के, नायब सज्जादानशीन सैयद यद्दुलाह हसैनी, दरगाह सूफी कमालुद्दीन चिष्ती के सज्जानषीन गुलाम नजमी फारूकी, नागौर शरीफ के पीर अब्दुल बाकी, दिल्ली स्थित दरगाह हजरत निजामुद्दीन के सैयद मोहम्मद निजामी, सहित देशभर के सज्जादगान मौजूद थे.