अजमेर. पुष्कर में विश्व का इकलौता ब्रह्मा का मंदिर है. शास्त्रों में पुष्कर को सभी तीर्थों का गुरू बताया गया है. सदियों से देश के कोने-कोने से तीर्थ यात्री पुष्कर में आते रहे हैं. सदियों पहले जब परिवहन के साधन नहीं हुआ करते थे, तब कई यात्री अपने साथ पशु लेकर आते थे. धीरे-धीरे पुष्कर में पशुओं की खरीद-फरोख्त होने लगी.
खास तौर पर कार्तिक पूर्णिमा से पहले बड़ी संख्या में यात्री पुष्कर आते हैं. पुष्कर सरोवर में कार्तिक स्नान का काफी महत्व है. इस दरमियान जब पशुओं की खरीद-फरोख्त बढ़ने लगी तो पशु मेले का आयोजन होने लगा. पुष्कर के धोरों में मेले के दौरान सतरंगी लोक संस्कृति की छटा बिखरने लगी. विदेशी पर्यटक भी इससे आकर्षित होने लगे. पशुओं के साथ आने वाले पशु पालकों के परिवार को खुले आसमान के नीचे खाना बनाते हुए देखना विदेशी पर्यटकों को लुभाने लगा.
विदेशी सैलानियों को लुभाता है पुष्कर मेला
राजस्थान के विभिन्न ग्रामीण आए पुरुष एवं महिला पशुपालकों के परिधान और उनके पारंपरिक जेवर विदेशियों को लुभाने लगे. मेले के दौरान पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राजस्थान की लोक संस्कृति कार्यक्रमों के माध्यम से प्रदर्शित होने लगी और साल दर साल विदेशी मेहमानों की संख्या भी बढ़ने लगी. देसी विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ने से पुष्कर में पर्यटन उद्योग का विकास होने लगा, यह निरन्तर जारी है.
पुष्कर की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी
पुष्कर की अर्थव्यवस्था पूरी तरह देसी-विदेशी पर्यटकों पर निर्भर हो चुकी है. बीते पौने 2 वर्षों में पुष्कर के पर्यटन उद्योग को जबरदस्त झटका लगा है. कोरोना की वजह से विदेशी पर्यटकों का आवागमन बंद हो गया. वहीं देसी पर्यटकों की संख्या भी घट गई. वर्तमान में कोरोना प्रकोप थम गया है और हालात सामान्य हो चुके हैं. विदेशियों के आवागमन को भी छूट मिल चुकी है. पुष्कर के धार्मिक स्थान खुले हुए हैं. लेकिन धार्मिक आयोजनों पर अंकुश जारी है.
200 व्यक्तियों की गाइड लाइन के साथ कैसे होगा अंतर्राष्ट्रीय मेला
हालांकि 11 अक्टूबर को राज्य सरकार ने गाइडलाइन जारी करते हुए धार्मिक आयोजनों पर से भी अंकुश भी हटा दिया है, लेकिन 200 व्यक्तियों को ही धार्मिक आयोजनों में शामिल होने की स्वीकृति दी है, इससे अधिक लोगों के आने पर कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी. पुष्कर में अंतर्राष्ट्रीय पशु मेला 2021 के आयोजन के लिए जबरदस्त मांग उठ रही है. स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने मेला आयोजन की मांग को सीएम अशोक गहलोत तक पहुंचाया और इसका असर भी हुआ. पुष्कर मेले के आयोजन को राज्य सरकार ने स्वीकृति दे दी है लेकिन इस स्वीकृति के आदेश के साथ ही 11 अक्टूबर को जारी गाइडलाइन का हवाला भी आदेश में दिया गया है. इसे लेकर न केवल पशुपालकों में बल्कि स्थानीय व्यापारियों में दी पशोपेश की स्थिति बन गई है. यानी 200 व्यक्तियों की स्वीकृति में कैसे पुष्कर मेले का आयोजन होगा ?
सशर्त स्वीकृति ने डाला उलझन में
जिला प्रशासन पशुपालन विभाग की ओर से आए आदेश को लेकर मंथन में जुटा है. वहीं स्थानीय तौर पर गाइडलाइन जारी करने की तैयारी भी कर रहा है. लेकिन कलेक्टर सहित कोई भी प्रशासनिक अधिकारी फिलहाल पुष्कर पशु मेले के आयोजन को लेकर कैमरे के सामने आने को तैयार नहीं है. बताया जा रहा है कि पुष्कर पशु मेला का आयोजन होगा लेकिन इस दौरान होने वाले सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होंगे. यानी मेले को गाइडलाइन के दायरे में बांध दिया गया है.
पुष्कर के जनप्रतिनिधि मेले को लेकर जारी हुई स्वीकृति से गदगद हैं, लेकिन सशर्त मिली स्वीकृति समझ से परे है. ऐसे में लोग मेला आयोजन को लेकर पशोपेश में हैं. पुष्कर के सामाजिक कार्यकर्ता अरुण पाराशर बताते हैं कि सरकार ने पुष्कर मेले के नाम पर पशुपालकों व्यापारियों और तीर्थ पुरोहितों को लॉलीपॉप थमा दिया है. जबकि मेला 200 व्यक्तियों के दायरे में कैसे संभव है ? सरकार को मेले के महत्व और पशुपालक व्यापारियों और तीर्थ पुरोहितों की स्थिति को जानते हुए मेला आयोजन की स्वीकृति में शिथिलता प्रदान करनी चाहिए थी.
दिवाली के दूसरे दिन से जुटने लगते हैं पशुपालक
अंतरराष्ट्रीय पुष्कर पशु मेले में अपने पशुओं को बेचने के लिए राजस्थान के विभिन्न ग्रामीण अंचलों से पशुपालक दिवाली के दूसरे दिन से आना शुरू होते हैं. लेकिन अभी तक मेला आयोजन की स्थिति स्पष्ट नहीं होने से पशुपालकों में संशय की स्थिति है. वहीं यूपी-बिहार हरियाणा पंजाब और अन्य राज्यों से पशुओं को खरीदने आने वाले व्यापारियों में भी पशोपेश की स्थिति बनी हुई है. फिलहाल पुष्कर मेला स्थल पर पशु मेले के आयोजन को लेकर कोई इंतजाम शुरू नहीं हुए हैं.
2 वर्ष से पशुपालक परेशान
कोरोना की वजह से पुष्कर में 2 वर्ष से अंतर्राष्ट्रीय पशु मेले का आयोजन नहीं हो रहा है. इस कारण ग्रामीण अंचलों में रहने वाले पशुपालक परेशान हैं. मेला आयोजित नहीं होने की वजह से वह अपने पशु नहीं बेच पा रहे हैं. इस कारण उनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो चुकी है. वहीं पशुओं को पालन करने में भी उनको काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. मेले में फुटकर व्यापार करने वाले व्यापारी भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. पुष्कर पशु मेला आयोजित होने से न केवल पशुपालकों को बल्कि बड़ी संख्या में फुटकर व्यापारियों को भी एकमुश्त फायदा मिलता है, जिससे वे साल भर अपना गुजारा कर लेते हैं.
धार्मिक मेले की तो हो ही नहीं रही बात
पुष्कर के अंतरराष्ट्रीय पशु मेले को लेकर सरकार ने सशर्त स्वीकृति दे दी है. लेकिन पुष्कर के धार्मिक महत्व को सदियों से प्रदर्शित करने वाले धार्मिक मेले के आयोजन के बारे में कोई बात ही नहीं हो रही है. बता दें कि कार्तिक एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक पांच दिवसीय कार्तिक मेले का आयोजन पुष्कर में होता है. जिसमें बड़ी संख्या में देशी पर्यटक आते हैं. इस दौरान पुष्कर के पवित्र सरोवर में स्नान का काफी महत्व है. इन 5 दिनों में लाखों देसी तीर्थयात्री का पुष्कर आवागमन रहता है. इससे पुष्कर के पर्यटन उद्योग को गति मिलती है. मगर इस बार पुष्कर के धार्मिक मेले को लेकर अभी तक राज्य सरकार की ओर से कोई गाइडलाइन जारी नहीं हुई है. इससे तीर्थ पुरोहितों में भी संशय की स्थिति बनी हुई है.
2019 में हुआ था पुष्कर मेले का आयोजन
2019 में पुष्कर के मेला स्थल पर मिट्टी के धोरों में लोक संस्कृति साकार हुई थी. इस दौरान पुष्कर मेले का आयोजन पूरी भव्यता के साथ किया गया था. खास बात यह है कि पुष्कर मेले के आयोजन को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कोई बजट नहीं आता. बावजूद इसके पुष्कर मेले का आयोजन हमेशा से शानदार तरीके से होता आया है. इस दौरान कई सांस्कृतिक आयोजन और प्रतियोगिताएं भी होती हैं जो देसी विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं. बता दें कि 2019 में करीब 5 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार पशु मेले में हुआ था. इस दौरान 3 हजार के लगभग ऊंट और साढ़े तीन हजार के लगभग घोड़े बिकने के लिए आए थे. इसके अलावा गधे, भैंस, बकरे बकरियां भी थे.
मेले से पर्यटन उद्योग को मिलता है मुनाफा
अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर मेले के साथ ही धार्मिक पुष्कर मेले के आयोजन से पुष्कर के पर्यटन उद्योग को पंख लग जाते हैं. होटल, रेस्टोरेंट्स, कैमल सफारी, कपड़े, आभूषण, पशुओं की श्रंगार की सामग्री के अलावा अन्य व्यापार को भी गति मिलती है. 2019 में मेले के दौरान ही 150 करोड़ का कारोबार हुआ था. लेकिन मेले के लिए इस बार दी गई सशर्त स्वीकृति ने सभी को पसोपेश में डाल दिया है.